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संस्कृत श्लोक: "मृद्घटवत् सुखभेद्यो दुःसन्धानश्च दुर्जनो भवति " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "मृद्घटवत् सुखभेद्यो दुःसन्धानश्च दुर्जनो भवति " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक:
मृद्घटवत् सुखभेद्यो दुःसन्धानश्च दुर्जनो भवति।
सुजनस्तु कनकघटवद् दुर्भेद्यश्चाशु सन्धेयः॥
हिन्दी अनुवाद:
दुर्जन (दुष्ट व्यक्ति) मिट्टी के घड़े की तरह आसानी से टूट जाता है और उसे जोड़ना बहुत कठिन होता है। किंतु सज्जन (संत व्यक्ति) सोने के घड़े के समान होता है, जो आसानी से नहीं टूटता और यदि टूट भी जाए, तो शीघ्र ही पुनः जुड़ जाता है।
शाब्दिक विश्लेषण:
- मृद्घटवत् – मिट्टी के घड़े के समान
- सुखभेद्यः – आसानी से टूटने वाला
- दुःसन्धानः – जिसे जोड़ना कठिन हो
- दुर्जनः – बुरा व्यक्ति, दुष्ट व्यक्ति
- सुजनः – सज्जन, सद्गुणी व्यक्ति
- कनकघटवत् – सोने के घड़े के समान
- दुर्भेद्यः – जिसे तोड़ना कठिन हो
- आशु – शीघ्रता से
- सन्धेयः – जिसे फिर से जोड़ा जा सके
व्याकरणीय विश्लेषण:
- सुखभेद्यः – तत्पुरुष समास, जिसका आसानी से भेदन (तोड़ना) किया जा सके।
- दुःसन्धानः – तत्पुरुष समास, जिसका पुनः जोड़ना कठिन हो।
- दुर्जनः / सुजनः – रूप में समानता, "दु:" और "सु:" उपसर्गों के प्रयोग से विरोधाभास दिखाना।
- दुर्भेद्यः – तत्पुरुष समास, जिसका भेदन (तोड़ना) कठिन हो।
- सन्धेयः – कृदंत रूप (धातु "संधि" से)।
आधुनिक संदर्भ में व्याख्या:
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संबंधों में स्थायित्व और अस्थायित्व –
- बुरे लोग छोटी-छोटी बातों में रिश्ते तोड़ देते हैं और फिर उन्हें जोड़ना मुश्किल हो जाता है।
- अच्छे लोग संबंधों को संजोते हैं, और यदि कोई मतभेद हो भी जाए, तो वे उसे जल्दी सुलझा लेते हैं।
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मनोवैज्ञानिक दृष्टि से –
- नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग जल्दी गुस्सा होते हैं, जल्दी आहत होते हैं और फिर उनका मन बदलना कठिन होता है।
- सकारात्मक प्रवृत्ति के लोग सहनशील होते हैं और मन में कटुता नहीं पालते।
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सामाजिक और कार्यक्षेत्र में उपयोगिता –
- कार्यस्थल पर ऐसे लोग जो सहनशील और धैर्यवान होते हैं, वे टीम वर्क में अधिक सफल होते हैं।
- नकारात्मक सोच वाले लोग जल्दी समस्याओं से घबरा जाते हैं और दूसरों से कट जाते हैं।
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व्यक्तित्व निर्माण –
- यदि कोई सज्जन व्यक्ति किसी कारणवश गलतफहमी में आ भी जाए, तो वह शीघ्र ही परिस्थिति को सुधार लेता है।
- लेकिन दुर्जन व्यक्ति एक बार क्रोधित या अहंकारी हो जाए, तो उसे वापस सही मार्ग पर लाना कठिन होता है।
निष्कर्ष:
इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सज्जनों की श्रेणी में आने का प्रयास करना चाहिए। हमें सहनशीलता, धैर्य और प्रेम से संबंधों को बनाए रखना चाहिए। यदि कोई गलती हो भी जाए, तो उसे शीघ्र सुधार लेना चाहिए, न कि उसे स्थायी रूप से बिगड़ने देना चाहिए।