स्वास्थ्य: विभिन्न धातुओं के बर्तनों में भोजन करने के लाभ एवं हानि

Sooraj Krishna Shastri
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स्वास्थ्य: विभिन्न धातुओं के बर्तनों में भोजन करने के लाभ एवं हानि
स्वास्थ्य: विभिन्न धातुओं के बर्तनों में भोजन करने के लाभ एवं हानि

स्वास्थ्य: विभिन्न धातुओं के बर्तनों में भोजन करने के लाभ एवं हानि

धातु के बर्तनों का हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आयुर्वेद एवं आधुनिक विज्ञान दोनों ही यह स्वीकार करते हैं कि विभिन्न धातुओं के पात्रों में भोजन करने से शरीर पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ते हैं। आइए, विभिन्न धातुओं के बर्तनों के लाभ एवं हानियों को विस्तार से समझें।


1. सोना (स्वर्ण)

लाभ:

  • स्वर्ण एक उष्ण (गर्म) धातु है, जिससे शरीर की शक्ति एवं सहनशक्ति बढ़ती है।
  • स्वर्ण पात्र में भोजन करने से शरीर आंतरिक एवं बाह्य रूप से बलवान, मजबूत एवं ताकतवर बनता है।
  • नेत्र ज्योति (आंखों की रोशनी) को बढ़ाने में सहायक।
  • मानसिक स्थिरता एवं तेज बुद्धि प्रदान करता है।

हानि:

  • स्वर्ण के पात्र अत्यंत महंगे होते हैं, इसलिए सामान्यतः सभी के लिए सुलभ नहीं।
  • अत्यधिक गर्म प्रकृति होने के कारण अत्यधिक उपयोग से शरीर में पित्त दोष बढ़ सकता है।

2. चाँदी (रजत)

लाभ:

  • चाँदी एक शीतल (ठंडी) धातु है, जो शरीर को आंतरिक रूप से ठंडक प्रदान करती है।
  • चाँदी के पात्र में भोजन करने से मस्तिष्क की तीव्रता बढ़ती है।
  • नेत्रों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी, दृष्टि को तेज करता है।
  • पित्त दोष, कफ एवं वायुदोष को नियंत्रित करता है।
  • शरीर को तनाव मुक्त एवं संतुलित रखता है।

हानि:

  • अधिक ठंडी प्रकृति के कारण सर्दी एवं कफ प्रधान व्यक्तियों को इसका अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए।

3. कांसा (ब्रॉन्ज)

लाभ:

  • बुद्धि एवं स्मरणशक्ति को तेज करता है।
  • रक्त को शुद्ध करता है एवं रक्तपित्त को शांत करता है।
  • भूख बढ़ाने में सहायक है।
  • शरीर की ऊर्जा को संतुलित बनाए रखता है।
  • केवल 3% पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

हानि:

  • कांसे के बर्तन में खट्टी चीजें (नींबू, दही, इमली आदि) नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि यह धातु के साथ क्रिया कर विषैली हो सकती हैं।

4. तांबा (कॉपर)

लाभ:

  • तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से शरीर रोगमुक्त रहता है।
  • रक्त शुद्ध करता है एवं शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालता है।
  • लीवर एवं पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है।
  • स्मरणशक्ति को बढ़ाने में सहायक।

हानि:

  • तांबे के बर्तन में दूध, दही या खट्टी चीजें नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि इससे विषाक्त प्रभाव उत्पन्न हो सकता है।

5. पीतल (ब्रास)

लाभ:

  • पीतल के बर्तनों में खाना पकाने से कृमि रोग, कफ एवं वायुदोष की समस्या दूर होती है।
  • पीतल के बर्तनों में भोजन करने से केवल 7% पोषक तत्व नष्ट होते हैं, जिससे भोजन अधिक पौष्टिक रहता है।

हानि:

  • पीतल में अम्लीय (खट्टी) चीजें नहीं रखनी चाहिए, अन्यथा यह शरीर को हानि पहुँचा सकता है।

6. लोहा (आयरन)

लाभ:

  • शरीर की शक्ति को बढ़ाता है एवं पोषक तत्वों को संतुलित करता है।
  • रक्ताल्पता (एनीमिया) को दूर करता है, शरीर में लोह तत्व (Iron) की पूर्ति करता है।
  • पांडु रोग, पीलिया एवं सूजन को दूर करता है।
  • लोहे के पात्र में रखा दूध पीना स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना जाता है।

हानि:

  • लोहे के बर्तन में भोजन करने से बुद्धि मंद हो सकती है।
  • लोहे के बर्तनों में अम्लीय पदार्थ रखने से यह जंग लगने का कारण बन सकता है।

7. स्टील

लाभ:

  • स्टील के बर्तन अम्ल एवं गर्मी के साथ कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं।
  • इससे न कोई विशेष लाभ होता है और न ही कोई विशेष हानि।

हानि:

  • इसमें पकाए गए भोजन में अधिक पोषक तत्व नहीं रहते।
  • अत्यधिक चमकाने वाले स्टील बर्तन में क्रोमियम एवं निकेल की उपस्थिति से दीर्घकालिक उपयोग हानिकारक हो सकता है।

8. एल्युमिनियम

हानि:

  • एल्युमिनियम बर्तनों में पकाया गया भोजन शरीर को गंभीर रूप से हानि पहुँचा सकता है।
  • यह आयरन एवं कैल्शियम को सोखता है, जिससे हड्डियाँ कमजोर होती हैं।
  • लीवर एवं नर्वस सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  • अधिक उपयोग से किडनी फेल्योर, अस्थमा, टीबी, डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं।
  • एल्युमिनियम के प्रेशर कुकर में खाना बनाने से 87% पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

9. मिट्टी (क्ले पॉट्स)

लाभ:

  • मिट्टी के बर्तनों में भोजन पकाने से 100% पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं।
  • यह भोजन को धीरे-धीरे पकाता है, जिससे स्वाद एवं पौष्टिकता बनी रहती है।
  • शरीर के समस्त दोषों को संतुलित करने में सहायक।
  • विशेष रूप से दूध एवं दूध से बने उत्पादों के लिए सर्वोत्तम।

हानि:

  • उचित देखभाल न करने पर मिट्टी के बर्तन जल्दी टूट सकते हैं।
  • अधिक नमी के कारण इनमें फंगस या जीवाणु उत्पन्न हो सकते हैं।

जल पात्र के संदर्भ में आयुर्वेदिक मत

भावप्रकाश ग्रंथ (पूर्वखंड: 4) में उल्लेखित श्लोक:

जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।
पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।
काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।

अर्थ:

  • जलपान के लिए तांबे का पात्र सर्वश्रेष्ठ है।
  • यदि तांबे का पात्र न हो, तो मिट्टी का पात्र भी उपयुक्त है।
  • स्फटिक (क्रिस्टल) एवं काँच के पात्र भी जल के लिए उत्तम माने गए हैं।
  • टूटे-फूटे बर्तनों से या अंजलि से जल पीना अनुचित माना गया है।

निष्कर्ष

  • स्वर्ण एवं चाँदी मानसिक एवं शारीरिक शक्ति प्रदान करते हैं।
  • तांबा एवं कांसा शरीर के दोषों को संतुलित करते हैं।
  • पीतल एवं लोहा रक्तशुद्धि एवं रोगनाशक प्रभाव रखते हैं।
  • स्टील तटस्थ है, जबकि एल्युमिनियम हानिकारक है।
  • मिट्टी के बर्तन सर्वोत्तम माने गए हैं।

संतुलित जीवन के लिए उपयुक्त धातु के बर्तनों का चयन करें और भोजन को अधिक स्वास्थ्यवर्धक बनाएं।

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