कहानी: मुफ्त-ही-मुफ्त

Sooraj Krishna Shastri
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कहानी: मुफ्त-ही-मुफ्त
कहानी: मुफ्त-ही-मुफ्त


कहानी: मुफ्त-ही-मुफ्त

भीखू भाई बड़े कंजूस थे। एक दिन उनका मन नारियल खाने का हुआ, लेकिन इसके लिए वे न तो बाजार जाना चाहते थे और न ही पैसे खर्च करना।

बाजार की खोज

वे सीधे खेत में गए और बूढ़े बरगद के नीचे बैठकर सोचने लगे कि नारियल कैसे मिले। फिर अचानक उठे, घर आए, जूते पहने, और छड़ी उठाकर बाजार की ओर निकल पड़े, केवल यह जानने के लिए कि नारियल कितने में बिक रहे हैं।

बाजार में उन्होंने नारियल वाले से दाम पूछा। दुकानदार ने बताया, "एक नारियल दो रुपये का है।" यह सुनते ही भीखू भाई की आँखें फैल गईं। उन्होंने भाव-ताव करते हुए कहा, "बहुत ज्यादा है, एक रुपये में दे दो।" नारियल वाला तैयार नहीं हुआ।

भीखू भाई ने पूछा, "अच्छा, तो बताओ, एक रुपये में कहाँ मिलेगा?" दुकानदार ने जवाब दिया, "मंडी में।" यह सुनते ही भीखू भाई तुरंत मंडी की ओर चल पड़े।

मंडी में सौदेबाजी

मंडी में व्यापारियों की ऊँची-ऊँची आवाजें गूंज रही थीं। भीखू भाई ने इधर-उधर देखा और नारियल बेचने वाले को ढूँढ निकाला। उन्होंने फिर से दाम पूछा।

"सिर्फ एक रुपये में, जो चाहो ले जाओ," नारियल वाले ने कहा।

भीखू भाई ने पचास पैसे बढ़ाते हुए कहा, "पचास पैसे काफी हैं, मैं यही दूँगा।"

नारियल वाला नारियल वापस खींचते हुए बोला, "बंदरगाह पर शायद पचास पैसे में मिल जाए!"

बंदरगाह से बगीचे तक

अब भीखू भाई बंदरगाह की ओर चल पड़े। वहाँ उन्होंने एक नाव वाले के पास कुछ नारियल रखे देखे और पूछ लिया, "एक नारियल कितने में दोगे?"

नाव वाले ने जवाब दिया, "पचास पैसे में।"

भीखू भाई को यह भी महंगा लगा। उन्होंने कहा, "इतनी दूर पैदल आया हूँ, पच्चीस पैसे बहुत हैं।"

नाव वाला नहीं माना, लेकिन उसने सलाह दी, "नारियल बगीचे में चले जाओ, वहाँ सस्ता मिलेगा।"

बगीचे में मुफ्त का लालच

भीखू भाई नारियल के बगीचे में पहुँचे। वहाँ एक माली से पूछा, "यहाँ नारियल कितने में मिलेगा?"

माली ने कहा, "पच्चीस पैसे का एक नारियल।"

भीखू भाई को यह भी महंगा लगा। उन्होंने माली से कहा, "मैं बहुत थक गया हूँ, मेरी बात मानो, एक नारियल मुफ्त में दे दो।"

माली मुस्कुराया और बोला, "अगर मुफ्त में चाहिए तो पेड़ पर चढ़ जाओ और जितने चाहो तोड़ लो।"

पेड़ पर चढ़ने की मुसीबत

भीखू भाई खुशी-खुशी नारियल के पेड़ पर चढ़ गए। ऊपर पहुँचकर वे सबसे बड़ा नारियल तोड़ने लगे। जैसे ही उन्होंने हाथ बढ़ाया, अचानक उनके पैर फिसल गए। घबराकर उन्होंने नारियल कसकर पकड़ लिया और उनके दोनों पैर हवा में झूलने लगे।

नीचे खड़े माली से मदद की गुहार लगाई, पर वह हँसकर बोला, "जो मुफ्त चाहता है, उसे मेहनत भी खुद ही करनी पड़ती है!"

बचाव का अजीब तरीका

उसी समय, एक ऊँट पर सवार आदमी वहाँ से गुजरा। भीखू भाई ने उससे मदद माँगी।

ऊँटवाला बोला, "ठीक है, मैं तुम्हारी मदद करता हूँ।"

वह ऊँट की पीठ पर खड़ा हुआ और भीखू भाई के पैरों को पकड़ लिया। लेकिन तभी ऊँट ने पास के हरे-भरे पत्ते खाने के लिए गर्दन झुका ली और अपनी जगह से हट गया। नतीजा यह हुआ कि ऊँटवाला भीखू भाई से लटक गया।

अब दो लोग पेड़ से झूल रहे थे।

घोड़ेवाले की एंट्री

थोड़ी देर बाद एक घुड़सवार वहाँ पहुँचा। दोनों झूलते लोगों ने उससे मदद माँगी।

घुड़सवार ने सोचा, "मैं घोड़े पर खड़े होकर इनकी मदद कर सकता हूँ।"

वह घोड़े की पीठ पर खड़ा हुआ और भीखू भाई के पैरों को पकड़ लिया। लेकिन घोड़ा भी ऊँट की तरह हरियाली देखकर आगे बढ़ गया। अब घुड़सवार भी झूलने लगा।

अब नारियल के पेड़ से तीन लोग झूल रहे थे।

लालच का अंत

घुड़सवार ने घबराकर कहा, "काका, कसकर पकड़े रहना, मैं तुम्हें सौ रुपये दूँगा!"

ऊँटवाला चिल्लाया, "मैं दौ सौ रुपये दूँगा, लेकिन नारियल मत छोड़ना!"

भीखू भाई सौ और दो सौ रुपये सुनकर खुशी से झूम उठे। लालच में उन्होंने अपनी दोनों बाहें फैला दीं और…

नारियल हाथ से छूट गया!

नतीजा यह हुआ कि घुड़सवार, ऊँटवाला और भीखू भाई—तीनों धड़ाम से जमीन पर गिर पड़े।

और उसी क्षण, वह बड़ा नारियल सीधे भीखू भाई के सिर पर आ गिरा!

शिक्षा:

"अत्यधिक लालच कभी-कभी हमें हास्यास्पद और कठिन परिस्थितियों में डाल सकता है। मुफ्त का सुख हमेशा नुकसानदेह हो सकता है!"


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