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संस्कृत श्लोक: "प्राज्ञो हि जल्पतां पुंसां श्रुत्वा वाचः शुभाशुभाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "प्राज्ञो हि जल्पतां पुंसां श्रुत्वा वाचः शुभाशुभाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक:
प्राज्ञो हि जल्पतां पुंसां श्रुत्वा वाचः शुभाशुभाः।
गुणवद् वाक्यमादत्ते हंसः क्षीरमिवाम्भसः॥
हिन्दी अनुवाद:
बुद्धिमान व्यक्ति चारों ओर से लोगों की शुभ-अशुभ बातें सुनकर भी केवल गुणवान वचनों को ही ग्रहण करता है, जैसे हंस दूध और पानी के मिश्रण से केवल दूध को ग्रहण करता है।
शाब्दिक विश्लेषण:
- प्राज्ञः – बुद्धिमान, विवेकी
- हि – निश्चय ही, वास्तव में
- जल्पतां – प्रलाप करने वालों की (व्यर्थ बोलने वालों की)
- पुंसाम् – पुरुषों की, लोगों की
- श्रुत्वा – सुनकर
- वाचः – वचन, बातें
- शुभाशुभाः – शुभ (अच्छी) और अशुभ (बुरी)
- गुणवत् – गुणयुक्त, श्रेष्ठ
- वाक्यम् – वचन, बात
- आदत्ते – ग्रहण करता है, अपनाता है
- हंसः – हंस पक्षी
- क्षीरमिव – दूध की तरह
- आम्भसः – पानी से
व्याकरणीय विश्लेषण:
- श्रुत्वा – लिट् प्रत्ययांत कृदंत (कृदंत रूप), अव्यय रूप में प्रयुक्त
- आदत्ते – आत्मनेपदी धातु (आ + दा + ते) – ग्रहण करता है
- क्षीरमिवाम्भसः – इव उपमानार्थक अव्यय, "दूध की तरह"
आधुनिक संदर्भ में व्याख्या:
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विवेकशीलता और चयन की शक्ति –
- एक बुद्धिमान व्यक्ति यह तय करता है कि कौन-सी बातें उसके लिए लाभदायक हैं और कौन-सी व्यर्थ हैं।
- यह सिद्धांत आज के सूचना-युग में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ हर तरफ अनेक विचार और बातें सुनने को मिलती हैं।
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हंस की विशेषता और आध्यात्मिक दृष्टि –
- हंस को भारतीय दर्शन में विशेष स्थान प्राप्त है, क्योंकि उसके बारे में कहा जाता है कि वह दूध और पानी के मिश्रण से केवल दूध ग्रहण कर सकता है।
- इसी तरह, विवेकी व्यक्ति भी संसार में फैली हुई नकारात्मकता को छोड़कर केवल सकारात्मकता को अपनाता है।
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व्यवहारिक जीवन में उपयोगिता –
- सामाजिक जीवन में – हर व्यक्ति के संपर्क में अच्छे और बुरे लोग आते हैं, लेकिन हमें केवल अच्छे विचारों को अपनाना चाहिए।
- मीडिया और सोशल मीडिया – इंटरनेट और सोशल मीडिया पर कई तरह की जानकारी मिलती है। विवेकशील व्यक्ति वही अपनाता है जो सत्य और हितकारी हो।
- प्रोफेशनल लाइफ में – कार्यस्थल पर भी अनेक प्रकार की बातें होती हैं। एक सफल व्यक्ति वही सीखता और अपनाता है जो उसके करियर के लिए फायदेमंद हो।
निष्कर्ष:
यह श्लोक हमें विवेक और बुद्धिमानी का पाठ पढ़ाता है। हमें हर बात को बिना सोचे-समझे स्वीकार नहीं करना चाहिए, बल्कि जो हितकारी हो, उसे ही अपनाना चाहिए। जैसे हंस दूध और पानी में भेद कर सकता है, वैसे ही हमें भी सही और गलत में अंतर करना आना चाहिए।