संस्कृत श्लोक: "यदशक्यं न तच्छक्यं यच्छक्यं शक्यमेव तत् " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "यदशक्यं न तच्छक्यं यच्छक्यं शक्यमेव तत् " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "यदशक्यं न तच्छक्यं यच्छक्यं शक्यमेव तत् " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

 

संस्कृत श्लोक: "यदशक्यं न तच्छक्यं यच्छक्यं शक्यमेव तत् " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

श्लोक:

यदशक्यं न तच्छक्यं यच्छक्यं शक्यमेव तत्।
नोदके शकटं याति न च नौर्गच्छति स्थले॥


हिन्दी अनुवाद:

जो कार्य असंभव है, वह कभी संभव नहीं हो सकता, और जो कार्य संभव है, वह निश्चित रूप से किया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप, गाड़ी (बैलगाड़ी) पानी में नहीं चल सकती और नाव भूमि पर नहीं चल सकती।


शाब्दिक विश्लेषण:

  • यदशक्यं – जो असंभव है
  • न तच्छक्यं – वह संभव नहीं है
  • यच्छक्यं – जो संभव है
  • शक्यमेव तत् – वह निश्चित रूप से संभव है
  • नोदके – जल में नहीं
  • शकटं याति – गाड़ी नहीं चल सकती
  • न च नौर्गच्छति स्थले – और न ही नाव भूमि पर जा सकती है

व्याकरणीय विश्लेषण:

  • यदशक्यं – यत् + अशक्यम् (यत्-प्रत्यय से बना विशेषण रूप)
  • यच्छक्यं – यत् + शक्यम् (यत्-प्रत्यय से बना विशेषण रूप)
  • नोदके – "न" (निषेध) + "उदके" (सप्तमी विभक्ति में "जल" शब्द)
  • शकटं याति – "शकटम्" (कर्मपद) + "याति" (गमन धातु का लट् लकार रूप)
  • न च नौर्गच्छति स्थले – "न" (निषेध) + "च" (संपर्क सूचक अव्यय) + "नौः" (स्त्रीलिंग, नाव) + "गच्छति" (गमन धातु) + "स्थले" (सप्तमी विभक्ति में "भूमि")

आधुनिक संदर्भ में व्याख्या:

  1. व्यवहारिक दृष्टिकोण

    • इस श्लोक में हमें यह सिखाया गया है कि हमें अपने प्रयास उन कार्यों में लगाने चाहिए जो व्यावहारिक रूप से संभव हैं।
    • यदि हम असंभव चीजों को करने की जिद पकड़ लेते हैं, तो केवल समय और ऊर्जा की बर्बादी होगी।
  2. व्यक्तिगत जीवन में

    • हम सभी को अपने कौशल, क्षमता और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए।
    • यदि कोई व्यक्ति बिना योग्यता के किसी असंभव कार्य को करने की कोशिश करता है, तो वह असफलता ही पाएगा।
  3. प्रयास और बुद्धिमानी का संतुलन

    • प्रयास करना आवश्यक है, लेकिन बुद्धिमान प्रयास करना और सही दिशा में करना अधिक महत्वपूर्ण है।
    • उदाहरण: एक व्यक्ति बिना अभ्यास के ही कठिन परीक्षा पास करने की उम्मीद करे, तो यह मूर्खता होगी।
  4. प्राकृतिक नियमों को स्वीकार करना

    • इस श्लोक में प्राकृतिक नियमों का भी उल्लेख किया गया है—हर वस्तु का एक स्वाभाविक स्थान और उपयोग होता है।
    • जैसे जल पर नाव चल सकती है, परंतु भूमि पर नहीं; गाड़ी भूमि पर चल सकती है, परंतु जल में नहीं।
    • इसी प्रकार, हमें जीवन में अपनी योग्यताओं और सीमाओं को पहचानकर ही कार्य करना चाहिए।

निष्कर्ष:

इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें व्यर्थ की जिद छोड़कर, जो कार्य संभव और व्यावहारिक हैं, उन्हीं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। असंभव कार्यों में प्रयास करना केवल मूर्खता होगी, जबकि संभव कार्यों को सही दिशा में करने से सफलता अवश्य मिलेगी।

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