संस्कृत श्लोक "त्रयः कालकृताः पाशाः शक्यन्ते न निवर्तितुम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🙏 जय श्रीराम 🌸 सुप्रभातम् 🙏
आज के प्रेरक नीति-वाक्य में मानव-जीवन की तीन अनिवार्य नियतियाँ वर्णित हैं — जिन्हें कोई भी टाल नहीं सकता।
✨ श्लोक ✨
त्रयः कालकृताः पाशाः शक्यन्ते न निवर्तितुम् ।
विवाहो जन्म मरणं यथा यत्र च येन च ॥
trayaḥ kālakṛtāḥ pāśāḥ śakyante na nivartitum ।
vivāho janma maraṇaṁ yathā yatra ca yena ca ॥
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संस्कृत श्लोक "त्रयः कालकृताः पाशाः शक्यन्ते न निवर्तितुम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
📚 शब्दार्थ व व्याकरण:
पद | अर्थ | व्याकरण |
---|---|---|
त्रयः | तीन | पुंलिंग, प्रथमा |
कालकृताः | समय द्वारा निर्धारित | विशेषण |
पाशाः | बन्धन / जकड़ | पुंलिंग, प्रथमा बहुवचन |
शक्यन्ते | (वे) संभव नहीं हैं | वर्तमान काल, बहुवचन |
न निवर्तितुम् | टाले नहीं जा सकते | कृदन्त, तुमुन् प्रत्यय |
विवाहः | विवाह | एकवचन |
जन्म | जन्म | नपुंसक, एकवचन |
मरणम् | मृत्यु | नपुंसक, एकवचन |
यथा यत्र येन च | जैसे, जहाँ, और जिसके साथ | अव्यय व सर्वनाम |
🌿 भावार्थ:
विवाह, जन्म और मरण — ये तीन बंधन समय के द्वारा पूर्व-निर्धारित होते हैं।
इनका स्थान, समय, और सहभागी कौन होगा — यह भी नियति के अधीन है।
कोई भी इन्हें टाल नहीं सकता, परिवर्तित नहीं कर सकता।
🪔 तात्त्विक दृष्टि से:
यह श्लोक हमें जीवन की तीन मुख्य घटनाओं के प्रति स्वीकृति और समर्पण की भावना सिखाता है:
- जन्म – कब, कहाँ, और किस कुल में होगा — यह हमारे पूर्वकर्मों पर आधारित होता है।
- विवाह – जीवन-सहचर किसे मिलेगा, यह सामाजिक नहीं, आध्यात्मिक मेल का विषय है।
- मरण – शरीर का त्याग कब, कहाँ, और किस रूप में होगा — यह नियति के अधीन है।
इनमें से कोई भी मनुष्य की इच्छानुसार नहीं चलता, इसलिए अहंकार, शोक, और क्रोध का कोई स्थान नहीं।
🧘♂️ जीवन में शिक्षा:
- भाग्य से लड़ने के बजाय उसे समझने और स्वीकारने का अभ्यास करना चाहिए।
- यह दृष्टिकोण शांति, विवेक, और संतुलन प्रदान करता है।
- जो जीवन को नियति के साथ स्वीकारता है, वही अविचल मनोबल का स्वामी होता है।
🪷 प्रेरणास्पद वाक्य:
"जो होना है, वह होकर रहेगा – लेकिन जो समझता है, वही सहज रह पाता है।"
"नियति अटल है, पर मन की प्रतिक्रिया हमारे हाथ में है।"
🌞 आपका दिन मंगलमय, संयममय और आत्मविवेकपूर्ण हो!
📿 जय श्रीराम!