Guru Seva Shlok: संस्कृत श्लोक "गुरुं प्रयोजनोद्देशादर्चयन्ति न भक्तितः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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Guru Seva Shlok: संस्कृत श्लोक "गुरुं प्रयोजनोद्देशादर्चयन्ति न भक्तितः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

“गुरुं प्रयोजनोद्देशादर्चयन्ति न भक्तितः…” इस नीति श्लोक का भाव है कि लोग प्रायः गुरु की सेवा स्वार्थवश करते हैं, न कि भक्ति भाव से। जैसे गाय को घर में केवल दूध देने के लिए पाला जाता है, वैसे ही कुछ लोग गुरु की आराधना अपने प्रयोजन हेतु करते हैं। इस लेख में श्लोक का अंग्रेजी ट्रान्सलिटरेशन, हिन्दी अनुवाद, शब्दार्थ, व्याकरणात्मक विश्लेषण, आधुनिक सन्दर्भ, नीति कथा और निष्कर्ष सहित विस्तृत विवेचन दिया गया है। जानिए क्यों गुरु की सेवा का असली अर्थ केवल श्रद्धा और निष्काम भक्ति है, न कि स्वार्थपूर्ति। यह श्लोक आज भी हमें सिखाता है कि भक्ति तभी सार्थक है जब वह प्रेम और धर्म से प्रेरित हो।


📜 श्लोक

गुरुं प्रयोजनोद्देशादर्चयन्ति न भक्तितः ।
दुग्धदात्रीति गौर्गेहे पोष्यते न तु धर्मतः ॥


🔤 English Transliteration

Gurum prayojanoddeśād arcayanti na bhaktitaḥ,
Dugdhadātrīti gaur gehe poṣyate na tu dharmataḥ.


🇮🇳 हिन्दी अनुवाद

"लोग गुरु की सेवा भक्ति भाव से नहीं, बल्कि अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए करते हैं। जैसे घर में गाय को केवल इसलिए पाला जाता है कि वह दूध देती है, न कि धर्मभाव से।"

Guru Seva Shlok: संस्कृत श्लोक "गुरुं प्रयोजनोद्देशादर्चयन्ति न भक्तितः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
Guru Seva Shlok: संस्कृत श्लोक "गुरुं प्रयोजनोद्देशादर्चयन्ति न भक्तितः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण



🪶 शब्दार्थ

  • गुरुम् → गुरु को
  • प्रयोजन-उद्देशात् → किसी लाभ / प्रयोजन की दृष्टि से
  • अर्चयन्ति → पूजा/सेवा करते हैं
  • न भक्तितः → भक्ति से नहीं
  • दुग्ध-दात्रीति → दूध देनेवाली होने के कारण
  • गौः → गाय
  • गेहे → घर में
  • पोष्यते → पाली जाती है
  • न तु धर्मतः → धर्मभाव से नहीं

📖 व्याकरणात्मक विश्लेषण

  • गुरुम् → "गुरु" शब्द का द्वितीया विभक्ति, एकवचन।
  • प्रयोजन-उद्देशात् → पञ्चमी विभक्ति (कारण का बोधक), "प्रयोजन" + "उद्देश" = प्रयोजन के लिए।
  • अर्चयन्ति → लट् लकार, प्रथमपुरुष बहुवचन (वे सेवा/पूजा करते हैं)।
  • भक्तितः → पञ्चमी विभक्ति (कारण / आधार), "भक्ति के कारण"।
  • गौः → "गौ" शब्द, प्रथमा एकवचन।
  • पोष्यते → लट् लकार, प्रथमपुरुष एकवचन, आत्मनेपदी, "पालन की जाती है"।

🌍 आधुनिक सन्दर्भ

आज के समाज में यह श्लोक अत्यन्त प्रासंगिक है।

  • बहुत से लोग गुरु, साधु या धार्मिक व्यक्तियों की सेवा केवल स्वार्थ के लिए करते हैं — जैसे नौकरी, धन, पुत्र प्राप्ति या सुख-संपत्ति की आकांक्षा से।
  • भक्ति का अर्थ है निःस्वार्थ भाव, जबकि "प्रयोजन-पूजा" असली साधना नहीं।
  • आज "नेटवर्किंग" और "connections" के नाम पर भी यही होता है – लोग सम्बन्ध केवल तब तक निभाते हैं, जब तक उनसे कोई लाभ है।

🎭 संवादात्मक नीति कथा

👦 शिष्य: गुरुदेव! कुछ लोग आपके पास केवल अपने लाभ की कामना से आते हैं। क्या यह उचित है?
👳‍♂️ गुरु: वत्स! यह जगत का स्वभाव है। जैसे गाय को लोग दूध के लिए पालते हैं, वैसे ही मुझे कुछ लोग केवल अपने प्रयोजन से पूजते हैं। परन्तु सच्चा भक्त वही है, जो लाभ-हानि से परे होकर श्रद्धा रखता है।


✅ निष्कर्ष

  • स्वार्थ से की गई सेवा कभी स्थायी नहीं होती।
  • भक्ति का मूल्य तभी है, जब वह निष्काम हो।
  • गुरु का सम्मान केवल प्रयोजन हेतु नहीं, बल्कि श्रद्धा और सत्य की खोज के लिए होना चाहिए।
  • यह श्लोक हमें यह शिक्षा देता है कि भक्ति और धर्म का आधार "प्रेम" है, न कि "लाभ"।


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