गजेन्द्र मोक्ष की कथा

Sooraj Krishna Shastri
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गजेन्द्र मोक्ष की कथा

यह गजेन्द्र मोक्ष का एक और विस्तृत और दिव्य चित्र है, जिसमें गजेन्द्र की भक्ति और भगवान विष्णु का आगमन दिखाया गया है। झील, हरियाली, और स्वर्गीय प्रकाश से भरा यह दृश्य इस कथा की गहराई और आध्यात्मिकता को दर्शाता है।



गजेन्द्र मोक्ष की कथा (श्रीमद्भागवत महापुराण, अष्टम स्कंध, अध्याय 2, 3 और 4)

गजेन्द्र मोक्ष की कथा भक्ति, समर्पण, और भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक है। यह कथा व्यक्ति को सिखाती है कि आत्मसमर्पण और सच्ची भक्ति के साथ भगवान का स्मरण व्यक्ति को संसार के सभी बंधनों से मुक्त कर सकता है। इस कथा का हर प्रसंग गहरा दार्शनिक संदेश और दृष्टांत प्रस्तुत करता है।


अध्याय 2: त्रिकूट पर्वत और गजेन्द्र का संघर्ष

त्रिकूट पर्वत का वर्णन

कथा का प्रारंभ त्रिकूट पर्वत से होता है। यह पर्वत तीन ऊँचे शिखरों वाला था, जो क्षीरसागर (दूध के समुद्र) से घिरा हुआ था। इसकी दिव्यता इस प्रकार वर्णित है:

श्रीमद्भागवत 08.02.01-02: 

"आसीद् गिरिवरो राजन् त्रिकूट इति विश्रुतः।
क्षीरोदेनावृतः श्रीमान् योजनायुतमुच्छ्रितः॥"

(अर्थ: हे राजन! त्रिकूट नामक एक दिव्य पर्वत था, जो क्षीरसागर से घिरा हुआ था। इसकी ऊँचाई 10,000 योजन थी और यह भव्यता में अद्वितीय था।)

दृष्टांत:

त्रिकूट पर्वत का वर्णन भौतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक उन्नति के बीच सामंजस्य का प्रतीक है। पर्वत के तीन शिखर मानव जीवन के तीन गुणों (सत्त्व, रजस, और तमस) को दर्शाते हैं। इन गुणों के बीच से गुजरकर ही आत्मा परमात्मा तक पहुँच सकती है।


गजेन्द्र का आगमन और संघर्ष

गजेन्द्र, जो हाथियों के झुंड का राजा था, अपने झुंड के साथ त्रिकूट पर्वत के पास एक सुंदर झील में जलपान और स्नान के लिए गया। झील में मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। गजेन्द्र ने अपनी पूरी शक्ति से संघर्ष किया, लेकिन मगरमच्छ अधिक शक्तिशाली था।

श्रीमद्भागवत 08.02.27: 

"तं तत्र कश्चिन्नृप दैवचोदितो ग्राहो बलीयांश्चरणे रुषाग्रहीत्।
यदृच्छयैवं व्यसनं गतो गजो यथाबलं सोऽतिबलो विचक्रमे॥"

(अर्थ: उस झील में एक मगरमच्छ ने गजेन्द्र का पैर पकड़ लिया, और वह अपनी पूरी शक्ति से मगरमच्छ से छुटकारा पाने की कोशिश करने लगा।)

व्याख्या और दृष्टांत:

  • मगरमच्छ: यह संसार के भोग-विलास और माया का प्रतीक है, जो हमें बांधने का प्रयास करता है।
  • गजेन्द्र का संघर्ष: यह संघर्ष आत्मा की मुक्ति की यात्रा है, जहाँ व्यक्ति अपने बल और अहंकार के कारण संघर्ष करता रहता है, लेकिन माया से मुक्त नहीं हो पाता।
  • यह कथा सिखाती है कि जब तक व्यक्ति भगवान की शरण में नहीं जाता, तब तक माया के बंधन से मुक्त होना संभव नहीं है।

अध्याय 3: गजेन्द्र की प्रार्थना और भगवान विष्णु का आगमन

गजेन्द्र की शरणागति

जब गजेन्द्र ने महसूस किया कि वह अपनी शक्ति से मगरमच्छ से मुक्त नहीं हो सकता, तो उसने आत्मसमर्पण करते हुए भगवान विष्णु का स्मरण किया। यह भक्ति और शरणागति का एक महान उदाहरण है।

श्रीमद्भागवत 08.03.02: 

"ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥"

(अर्थ: मैं उस परम पुरुष को नमन करता हूँ, जो चेतना के मूल स्वरूप और सृष्टि के आदिकारण हैं।)

व्याख्या:

गजेन्द्र का भगवान की शरण में जाना यह दर्शाता है कि जब मानव अपनी सीमाओं को पहचानकर ईश्वर का स्मरण करता है, तभी वह सच्चा आध्यात्मिक मार्ग पा सकता है।

दृष्टांत:

  • गजेन्द्र की प्रार्थना उस समय की जाती है, जब भौतिक शक्ति पूरी तरह समाप्त हो चुकी हो। यह सिखाता है कि भक्ति किसी संकट की प्रतीक्षा नहीं करती; यह निरंतर होनी चाहिए।

भगवान विष्णु का आगमन

गजेन्द्र की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु तुरंत गरुड़ पर सवार होकर उसकी सहायता के लिए आए।

श्रीमद्भागवत 08.03.31: 

"तं तद्वदार्तमुपलभ्य जगन्निवासः स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भिः।
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमानश्चक्रायुधोऽभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः॥"

(अर्थ: गजेन्द्र की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर तुरंत प्रकट हुए।)

दृष्टांत:

यह सिखाता है कि भगवान सदैव अपने भक्तों के संकट को समाप्त करने के लिए तत्पर रहते हैं। उनका आगमन यह दर्शाता है कि भक्त की भक्ति और विश्वास भगवान को आकर्षित करते हैं।


अध्याय 4: गजेन्द्र का उद्धार और मोक्ष

मगरमच्छ का वध

भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध किया और गजेन्द्र को मुक्त किया। मगरमच्छ पिछले जन्म में "हुहू" नामक गंधर्व था, जिसे शाप के कारण मगरमच्छ बनना पड़ा। भगवान के स्पर्श से वह अपने दिव्य स्वरूप को प्राप्त कर सका।

श्रीमद्भागवत 08.04.33: 

"ग्राहाद्विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं 

संपश्यतां हरिरमूमुचदुच्छ्रियाणाम्।"


गजेन्द्र का मोक्ष

गजेन्द्र, जो अपने पिछले जन्म में इन्द्रद्युम्न नामक राजा था, भगवान के स्पर्श से मोक्ष को प्राप्त करता है। उसने चारभुजाधारी दिव्य स्वरूप धारण किया और भगवान विष्णु के परमधाम को प्राप्त हुआ।

श्रीमद्भागवत 08.04.06: 

"गजेन्द्रो भगवत्स्पर्शाद्विमुक्तोऽज्ञानबन्धनात्।
प्राप्तो भगवतो रूपं पीतवासाश्चतुर्भुजः॥"


देवताओं का उत्सव

गजेन्द्र के उद्धार के बाद, देवताओं ने भगवान विष्णु की महिमा का गान किया और पुष्पों की वर्षा की।

श्रीमद्भागवत 08.04.01: 

"तदा देवर्षिगन्धर्वा ब्रह्मेशानपुरोगमाः।
मुमुचुः कुसुमासारं शंसन्तः कर्म तद्धरेः॥"


कथा का फल (फलश्रुति)

श्रीमद्भागवत 08.04.24:
"उत्थायापररात्रान्ते प्रयताः सुसमाहिताः।
स्मरन्ति मम रूपाणि मुच्यन्ते ह्येनसोऽखिलात्॥"

जो व्यक्ति इस कथा का पाठ करता है और भगवान का स्मरण करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।


दर्शन और संदेश

  1. शरणागति का महत्व:
    गजेन्द्र की कथा यह सिखाती है कि जब व्यक्ति अपने अभिमान और अहंकार को त्याग कर भगवान की शरण में जाता है, तो वह मुक्ति प्राप्त करता है।

  2. भक्ति की शक्ति:
    भक्ति के माध्यम से सबसे कठिन परिस्थितियों को भी पार किया जा सकता है।

  3. भगवान की कृपा:
    भगवान अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए किसी भी रूप में प्रकट होते हैं।

  4. माया का प्रतीक:
    मगरमच्छ माया का प्रतीक है, जो हमें संसार के बंधनों में फँसा लेती है। केवल भक्ति और समर्पण से ही इससे छुटकारा पाया जा सकता है।


गजेन्द्र मोक्ष की कथा समर्पण और विश्वास के महत्व को समझाने का एक महान उदाहरण है। इसे सुनने, समझने और जीवन में उतारने से व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति और शांति प्राप्त कर सकता है।

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