उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 39 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

 

Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.
Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.

संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:
सीता:
हा धिक्! हा धिक्! पुनरपि मूढ आर्यपुत्रः।

वासंती:
देव! समाश्वसिहि समाश्वसिहि।

सीता:
आर्यपुत्र!
मां मन्दभागिनीमुद्दिश्य सकलजीवलोकमाङ्गलिकजन्मलाभस्य
ते वारंवारं संशयितजीवितदारुणो दशापरिणाम इति हा! हतास्मि।

तमसा:
वत्से! समाश्वसिहि समाश्वसिहि।
पुनस्ते पाणिस्पर्शो रामभद्रस्य जीवनोपायः।

वासंती:
कथमद्यापि नोच्छ्वसिति?
हा प्रियसखि सीते! क्वासि?
सम्भावयात्मनो जीवितेश्वरम्।

वासंती:
दिष्ट्या प्रत्यापन्न-चेतनो रामभद्रः।

(सीता ससम्भ्रममुपसृत्य ललाटे च स्पृशति।)

रामः:
आलिम्पन्नमृतमयैरिव प्रलेपैरन्तर्वा बहिरपि वा शरीरधातून्।
संस्पर्शः पुनरपि जीवयन्नकस्मादानन्दादपरमिवादधाति मोहम्॥ ३९ ॥


हिन्दी अनुवाद:

सीता:
हे दुर्भाग्य! हे दुर्भाग्य! आर्यपुत्र फिर मूर्छित हो गए।

वासंती:
हे देव! कृपया धैर्य धारण करें।

सीता:
हे आर्यपुत्र!
मेरे कारण ही आपका जीवन, जो समस्त संसार के लिए मंगलकारी है,
बार-बार इस कठिन और संशयपूर्ण अवस्था को प्राप्त करता है।
हे दुर्भाग्य! मैं नष्ट हो चुकी हूँ।

तमसा:
वत्से! शांत हो जाओ, धैर्य रखो।
रामभद्र का तुम्हारा पुनः पाणि-स्पर्श ही उनके जीवन का उपाय है।

वासंती:
क्या अब तक राम ने श्वास नहीं लिया?
हे प्रिय सखी सीते! तुम कहाँ हो?
अपने जीवनस्वामी को अपनी उपस्थिति से सजीव करो।

वासंती:
सौभाग्य से रामभद्र की चेतना लौट आई है।

(सीता घबराकर राम के पास जाती हैं और उनके ललाट को छूती हैं।)

राम:
जैसे अमृतमय लेप शरीर के भीतर और बाहर धातुओं को पोषित करता है,
वैसे ही तुम्हारा यह स्पर्श मेरे जीवन को पुनः जीवित करता है।
और यह अचानक मिलने वाला आनंद
मुझे एक नई चेतना के साथ एक नई प्रकार की मूर्छा में डाल देता है।


शब्द-विश्लेषण

1. सकलजीवलोकमाङ्गलिकजन्मलाभस्य

  • समास: तत्पुरुष समास (सकल + जीव + लोक + माङ्गलिक + जन्म + लाभ)।
    • सकलजीवलोक: समस्त प्राणी संसार;
    • माङ्गलिकजन्मलाभ: शुभ जन्म प्राप्ति।
  • अर्थ: समस्त संसार के लिए शुभ जन्म प्राप्ति।

2. संशयितजीवितदारुणो दशापरिणामः

  • समास: बहुव्रीहि समास (संशयित + जीवित + दारुण + दशा + परिणाम)।
    • संशयितजीवित: जीवन के प्रति संशयपूर्ण;
    • दारुण: कठोर या पीड़ादायक;
    • दशापरिणाम: स्थिति का परिवर्तन।
  • अर्थ: जीवन के प्रति संशयपूर्ण कठोर स्थिति।

3. प्रत्यापन्न-चेतनो

  • संधि-विच्छेद: प्रत्यापन्न + चेतनः।
    • प्रत्यापन्न: लौट आई;
    • चेतनः: चेतना।
  • अर्थ: चेतना लौट आई।

4. आलिम्पन्नमृतमयैरिव प्रलेपैः

  • संधि-विच्छेद: आलिम्पन् + अमृतमयैः + इव + प्रलेपैः।
    • आलिम्पन्: लेप करना;
    • अमृतमयैः: अमृत से भरे हुए;
    • प्रलेपैः: लेप के द्वारा।
  • अर्थ: जैसे अमृतमय लेप शरीर पर लगाया गया हो।

5. संस्पर्शः पुनरपि जीवयन्

  • संधि-विच्छेद: संस्पर्शः + पुनरपि + जीवयन्।
    • संस्पर्शः: स्पर्श;
    • पुनरपि: फिर से;
    • जीवयन्: जीवन देना।
  • अर्थ: तुम्हारा स्पर्श फिर से जीवन प्रदान करता है।

व्याख्या:

इस अंश में सीता, राम और वासंती की गहन भावनाओं का चित्रण है।

  • सीता: अपने दुर्भाग्य और राम की स्थिति को देखकर स्वयं को दोषी मानती हैं।
  • राम: सीता के स्पर्श से जीवन पाते हैं और उसे अमृतमय स्पर्श के समान मानते हैं।
  • तमसा: सीता को समझाती हैं कि उनका प्रेम और स्पर्श ही राम के जीवन का सहारा है।

यह अंश प्रेम, जीवन की नवीनीकरण शक्ति, और हृदय की गहराई से उत्पन्न भावनाओं का प्रतीक है।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!