उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 7 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

 

उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 7 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण
उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 7 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:
सीता:
(ससंभ्रमं कतिचित्पदानि गत्वा)
आर्यपुत्र! परित्रायस्व परित्रायस्व मम पुत्रकम्।
हा धिक् हा धिक्! तान्येव चिरपरिचितान्यक्षराणि
पञ्चवटीदर्शनेन मां मन्दभागिनीमनुबध्नन्ति।
हा आर्यपुत्र!

(प्रविश्य)

तमसा:
समाश्वसिहि समाश्वसिहि।
(नेपथ्ये)
विमानराज! अत्रैव स्थीयताम्।
सीता:
(ससाध्वसोल्लासम्)
अहो, जलभरभरितमेघमन्थरस्तनितगम्भीरमांसलः
कुतो नु भारतीनिर्घोषो भ्रियमाणकर्णविवरां
मामपि मन्दभागिनीं झटित्युत्सुकापयति?

तमसा:
(सस्मितास्रम्)
अयि वत्से! अपरिस्फुटनिक्काणे कुतस्त्येऽपि त्वमीदृशी।
स्तनयित्नोर्मयूरीव चकितोत्कण्ठितं स्थिता॥ ७ ॥


हिन्दी अनुवाद:

सीता:
(कुछ कदम भागते हुए घबराई हुई)
आर्यपुत्र! कृपया रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए मेरे पुत्र की।
हा, धिक्कार है, धिक्कार है! ये वही पुराने परिचित शब्द
जो पञ्चवटी के दर्शन के साथ मेरी दुर्भाग्यपूर्ण आत्मा को फिर से बांध रहे हैं।
हा, आर्यपुत्र!

(मंच पर प्रवेश करती है।)

तमसा:
शांत हो जाओ, शांत हो जाओ।
(नेपथ्य में आवाज आती है।)
विमान के राजा! यहीं रुक जाइए।

सीता:
(डर और खुशी से भरी हुई)
अरे! ये मेघों से भरे जलद का मंद गर्जन,
गंभीर और मांसल स्वर कहाँ से आ रहा है?
इसका स्वर मेरे कानों के भीतर तक गूँजते हुए,
मुझे, इस दुर्भाग्यपूर्ण स्त्री को, तुरंत उत्सुक बना रहा है।

तमसा:
(मुस्कुराते हुए आँसू बहाती हुई)
अरे वत्से! अस्पष्ट चमक के इस दृश्य से ही
तुम्हारी यह चंचल अवस्था कहाँ से प्रकट हो रही है?
जैसे मयूरा विद्युत की चमक से डरकर
और व्याकुलता से थम जाती है, वैसे ही हो।


शब्द-विश्लेषण:

  1. ससंभ्रमं -

    • + संभ्रम (आशंका या भय)।
    • अर्थ: घबराते हुए।
  2. परित्रायस्व -

    • धातु: √त्रै (रक्षा करना), आत्मनेपदी, लोट लकार।
    • अर्थ: कृपया रक्षा कीजिए।
  3. चिरपरिचितानि अक्षराणि -

    • चिर - लंबे समय से;
    • परिचित - परिचित;
    • अक्षराणि - शब्द या ध्वनि।
    • अर्थ: लंबे समय से सुने हुए शब्द।
  4. मन्दभागिनी -

    • मन्द - दुर्भाग्यपूर्ण;
    • भागिनी - नारी।
    • अर्थ: दुर्भाग्यपूर्ण स्त्री।
  5. जलभरभरितमेघमन्थरस्तनितगम्भीरमांसलः -

    • जलभर - जल से भरे हुए;
    • भरित - पूर्ण;
    • मेघ - बादल;
    • मन्थर - धीमी गति वाला;
    • तनित - गर्जना;
    • गम्भीरमांसलः - गंभीर और स्थिर।
    • अर्थ: पानी से भरे बादलों की धीमी और गंभीर गर्जना।
  6. स्तनयित्नोर्मयूरीव -

    • स्तनयित्नुः - बिजली चमकना;
    • मयूरी - मोरनी।
    • अर्थ: बिजली की चमक से भयभीत मोरनी।
  7. चकितोत्कण्ठितं स्थिता -

    • चकित - डर जाना;
    • उत्कण्ठितं - उत्सुक हो जाना;
    • स्थिता - थम जाना।
    • अर्थ: भय और उत्सुकता से ठिठकी हुई।

व्याख्या:

यह अंश सीता की ममतामयी और संवेदनशील प्रकृति को दर्शाता है। उनके भीतर पुत्र के प्रति चिंता और राम की स्मृतियों के प्रति लगाव की भावना स्पष्ट होती है। तमसा, सीता को शांत करने का प्रयास करते हुए, उनके वर्तमान डर और उत्सुकता को मयूरा के प्राकृतिक व्यवहार से तुलना करके समझाती हैं।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!