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यह रहा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गर्भ में परीक्षित महाराज की रक्षा का दिव्य चित्र, जिसमें भगवान ब्रह्मास्त्र को नष्ट करते हुए और परीक्षित को बचाते हुए दर्शाए गए हैं। |
भागवत प्रथम स्कन्ध, द्वादश अध्याय(हिन्दी अनुवाद)
नीचे भागवत प्रथम स्कन्ध, द्वादश अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के प्रत्येक श्लोक का अलग-अलग हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है:
श्लोक 1
शौनक उवाच
अश्वत्थाम्नोपसृष्टेन ब्रह्मशीर्ष्णोरुतेजसा।
उत्तराया हतो गर्भ ईशेनाजीवितः पुनः॥
हिन्दी अनुवाद:
शौनक ने कहा: अश्वत्थामा द्वारा छोड़े गए ब्रह्मास्त्र की प्रचंड अग्नि से उत्तरा का गर्भ नष्ट हो गया था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उसे फिर से जीवनदान दिया।
श्लोक 2
तस्य जन्म महाबुद्धेः कर्माणि च महात्मनः।
निधनं च यथैवासीत् स प्रेत्य गतवान् यथा॥
हिन्दी अनुवाद:
उस महाबुद्धिमान परीक्षित का जन्म, उसके महान कर्म, उसका निधन और मृत्यु के बाद उसकी गति कैसी थी, यह सब जानने की इच्छा है।
श्लोक 3
तदिदं श्रोतुमिच्छामो गदितुं यदि मन्यसे।
ब्रूहि नः श्रद्दधानानां यस्य ज्ञानमदाच्छुकः॥
हिन्दी अनुवाद:
हम यह सब सुनना चाहते हैं। यदि आप उचित समझें तो कृपया हमें बताएं। यही ज्ञान शुकदेव जी ने हमें प्रदान किया है।
श्लोक 4
सूत उवाच
अपीपलद्धर्मराजः पितृवद् रञ्जयन् प्रजाः।
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यः कृष्णपादानुसेवया॥
हिन्दी अनुवाद:
सूत जी बोले: धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने प्रजाजनों को पिता की तरह प्रसन्न किया। वे श्रीकृष्ण के चरणों की सेवा के कारण सभी भौतिक इच्छाओं से मुक्त थे।
श्लोक 5
सम्पदः क्रतवो लोका महिषी भ्रातरो मही।
जम्बूद्वीपाधिपत्यं च यशश्च त्रिदिवं गतम्॥
हिन्दी अनुवाद:
उन्हें समृद्धि, यज्ञ, स्वर्गलोक, रानियाँ, भाई, पृथ्वी और जम्बूद्वीप का शासन प्राप्त था। उनका यश स्वर्ग तक पहुँचा था।
श्लोक 6
किं ते कामाः सुरस्पार्हा मुकुन्दमनसो द्विजाः।
अधिजह्रुर्मुदं राज्ञः क्षुधितस्य यथेतरे॥
हिन्दी अनुवाद:
हे द्विजगण! जिनका मन भगवान मुकुंद में लगा हो, उनके लिए स्वर्ग के इच्छित सुख भी वैसे ही हैं जैसे भूखे व्यक्ति के लिए व्यर्थ भोजन।
श्लोक 7
मातुर्गर्भगतो वीरः स तदा भृगुनन्दन।
ददर्श पुरुषं कञ्चिद् दह्यमानोऽस्त्रतेजसा॥
हिन्दी अनुवाद:
हे भृगुनंदन! जब वीर परीक्षित माता के गर्भ में थे, तब उन्होंने ब्रह्मास्त्र की अग्नि से जलते हुए किसी दिव्य पुरुष को देखा।
श्लोक 8
अङ्गुष्ठमात्रममलं स्फुरत् पुरट मौलिनम्।
अपीव्यदर्शनं श्यामं तडिद् वाससमच्युतम्॥
हिन्दी अनुवाद:
वह दिव्य पुरुष अंगुष्ठ के आकार का, तेजोमय मुकुट वाला, सुंदर, श्यामवर्ण और बिजली जैसे चमकीले वस्त्रों से युक्त थे।
श्लोक 9
श्रीमद् दीर्घचतुर्बाहुं तप्तकाञ्चन कुण्डलम्।
क्षतजाक्षं गदापाणिं आत्मनः सर्वतो दिशम्।
परिभ्रमन्तं उल्काभां भ्रामयन्तं गदां मुहुः॥
हिन्दी अनुवाद:
उनके दीर्घ चार भुजाएँ, तपे हुए सोने जैसे कुण्डल और तेजस्वी नेत्र थे। उनके हाथ में गदा थी, जिसे वे चारों दिशाओं में घुमाते हुए उष्ण अग्नि के समान चमक रहे थे।
श्लोक 10
अस्त्रतेजः स्वगदया नीहारमिव गोपतिः।
विधमन्तं सन्निकर्षे पर्यैक्षत क इत्यसौ॥
हिन्दी अनुवाद:
उनकी गदा ब्रह्मास्त्र की तेजस्विता को इस प्रकार नष्ट कर रही थी जैसे सूर्य कुहरे को नष्ट करता है। परीक्षित ने यह सब निकट से देखा।
नीचे शेष श्लोकों का क्रमवार हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है:
श्लोक 11
विधूय तदमेयात्मा भगवान् धर्मगुब् विभुः।
मिषतो दशमासस्य तत्रैवान्तर्दधे हरिः॥
हिन्दी अनुवाद:
उस अद्भुत आत्मा, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने तेज से ब्रह्मास्त्र को नष्ट कर दिया। दस महीने के गर्भस्थ परीक्षित ने देखा और फिर भगवान अंतर्धान हो गए।
श्लोक 12
ततः सर्वगुणोदर्के सानुकूल ग्रहोदये।
जज्ञे वंशधरः पाण्डोः भूयः पाण्डुरिवौजसा॥
हिन्दी अनुवाद:
सर्वगुणों के सूचक शुभ ग्रहों की उपस्थिति में, पाण्डु वंश के उत्तराधिकारी परीक्षित का जन्म हुआ, जो पाण्डु के समान तेजस्वी थे।
श्लोक 13
तस्य प्रीतमना राजा विप्रैर्धौम्य कृपादिभिः।
जातकं कारयामास वाचयित्वा च मङ्गलम्॥
हिन्दी अनुवाद:
राजा युधिष्ठिर ने प्रसन्न मन से धौम्य और कृपाचार्य जैसे ब्राह्मणों द्वारा जन्म कुंडली बनाई और मंगला पाठ करवाया।
श्लोक 14
हिरण्यं गां महीं ग्रामान् हस्त्यश्वान् नृपतिर्वरान्।
प्रादात्स्वन्नं च विप्रेभ्यः प्रजातीर्थे स तीर्थवित्॥
हिन्दी अनुवाद:
राजा युधिष्ठिर ने ब्राह्मणों को सोना, गायें, भूमि, गाँव, हाथी, घोड़े और उत्तम वस्त्र दान किए। उन्होंने ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन भी करवाया।
श्लोक 15
तमूचुर्ब्राह्मणास्तुष्टा राजानं प्रश्रयान्वितम्।
एष ह्यस्मिन् प्रजातन्तौ पुरूणां पौरवर्षभ॥
हिन्दी अनुवाद:
ब्राह्मणों ने संतुष्ट होकर राजा से कहा: हे पौरव श्रेष्ठ! यह बालक आपकी वंश परंपरा को आगे बढ़ाने वाला और सभी के लिए शुभकारी होगा।
श्लोक 16
दैवेनाप्रतिघातेन शुक्ले संस्थामुपेयुषि।
रातो वोऽनुग्रहार्थाय विष्णुना प्रभविष्णुना॥
हिन्दी अनुवाद:
यह बालक देवताओं के आशीर्वाद से आपके वंश के लिए रक्षित है। स्वयं भगवान विष्णु ने इस बालक की रक्षा की है और इसे विशेष अनुग्रह प्रदान किया है।
श्लोक 17
तस्मान्नाम्ना विष्णुरात इति लोके बृहच्छ्रवाः।
भविष्यति न सन्देहो महाभागवतो महान्॥
हिन्दी अनुवाद:
इसलिए इसका नाम "विष्णुरात" प्रसिद्ध होगा, क्योंकि इसे भगवान विष्णु ने बचाया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह एक महान भागवत बनेगा।
श्लोक 18
युधिष्ठिर उवाच
अप्येष वंश्यान् राजर्षीन् पुण्यश्लोकान् महात्मनः।
अनुवर्तिता स्विद्यशसा साधुवादेन सत्तमाः॥
हिन्दी अनुवाद:
युधिष्ठिर ने पूछा: क्या यह बालक हमारे वंश के उन पुण्यश्लोक और महान राजर्षियों के पदचिन्हों का अनुसरण करेगा, जिनकी कीर्ति साधुजनों द्वारा गाई जाती है?
श्लोक 19
ब्राह्मणा ऊचुः
पार्थ प्रजाविता साक्षात् इक्ष्वाकुरिव मानवः।
ब्रह्मण्यः सत्यसन्धश्च रामो दाशरथिर्यथा॥
हिन्दी अनुवाद:
ब्राह्मणों ने कहा: हे पार्थ! यह बालक प्रजापालक राजा इक्ष्वाकु के समान होगा। यह ब्राह्मणों के प्रति समर्पित और सत्य प्रतिज्ञ राम के समान होगा।
श्लोक 20
एष दाता शरण्यश्च यथा ह्यौशीनरः शिबिः।
यशो वितनिता स्वानां दौष्यन्तिरिव यज्वनाम्॥
हिन्दी अनुवाद:
यह बालक औशीनर शिबि के समान दानवीर और शरण देने वाला होगा। अपने यज्ञों और दान के कारण यह राजा दुष्यंत के समान यश फैलाएगा।
नीचे शेष श्लोकों का क्रमवार हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है:
श्लोक 21
धन्विनामग्रणीरेष तुल्यश्चार्जुनयोर्द्वयोः।
हुताश इव दुर्धर्षः समुद्र इव दुस्तरः॥
हिन्दी अनुवाद:
यह बालक धनुर्धारी वीरों में अग्रणी होगा और अर्जुन के समान वीर होगा। यह दुर्जेय अग्नि के समान दुर्धर्ष और समुद्र के समान दुस्तर (पार करना कठिन) होगा।
श्लोक 22
मृगेन्द्र इव विक्रान्तो निषेव्यो हिमवानिव।
तितिक्षुर्वसुधेवासौ सहिष्णुः पितराविव॥
हिन्दी अनुवाद:
यह बालक सिंह के समान पराक्रमी होगा, हिमालय के समान स्थिर और सहनशील होगा। पृथ्वी के समान धैर्यवान और अपने माता-पिता के समान सहिष्णु होगा।
श्लोक 23
पितामहसमः साम्ये प्रसादे गिरिशोपमः।
आश्रयः सर्वभूतानां यथा देवो रमाश्रयः॥
हिन्दी अनुवाद:
यह बालक समता में पितामह (भीष्म) के समान, कृपा में भगवान शिव के समान, और सभी प्राणियों के लिए आश्रयदाता भगवान विष्णु के समान होगा।
श्लोक 24
सर्वसद्गुणमाहात्म्ये एष कृष्णमनुव्रतः।
रन्तिदेव इवोदारो ययातिरिव धार्मिकः॥
हिन्दी अनुवाद:
सद्गुणों और महिमा में यह भगवान कृष्ण का अनुगामी होगा। यह रन्तिदेव के समान उदार और ययाति के समान धार्मिक होगा।
श्लोक 25
धृत्या बलिसमः कृष्णे प्रह्राद इव सद्ग्रहः।
आहर्तैषोऽश्वमेधानां वृद्धानां पर्युपासकः॥
हिन्दी अनुवाद:
यह धैर्य में राजा बलि के समान और भगवान कृष्ण में निष्ठा में प्रह्लाद के समान होगा। यह अश्वमेध यज्ञ का आयोजक और वृद्धजनों का सम्मान करने वाला होगा।
श्लोक 26
राजर्षीणां जनयिता शास्ता चोत्पथगामिनाम्।
निग्रहीता कलेरेष भुवो धर्मस्य कारणात्॥
हिन्दी अनुवाद:
यह राजर्षियों का प्रेरक और धर्म के विपरीत चलने वालों का शासक होगा। यह कलियुग के दोषों को समाप्त करने और पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करने वाला होगा।
श्लोक 27
तक्षकादात्मनो मृत्युं द्विजपुत्रोपसर्जितात्।
प्रपत्स्यत उपश्रुत्य मुक्तसङ्गः पदं हरेः॥
हिन्दी अनुवाद:
यह तक्षक नाग के द्वारा द्विजपुत्र (श्रृंगी) के शाप से मृत्यु प्राप्त करेगा। मृत्यु के समय यह सभी आसक्तियों को त्यागकर भगवान के परम पद को प्राप्त करेगा।
श्लोक 28
जिज्ञासितात्म याथार्थ्यो मुनेर्व्याससुतादसौ।
हित्वेदं नृप गङ्गायां यास्यत्यद्धा अकुतोभयम्॥
हिन्दी अनुवाद:
यह बालक आत्मा के यथार्थ स्वरूप को जानने का इच्छुक होगा। व्यासजी के पुत्र शुकदेव मुनि से ज्ञान प्राप्त कर यह गंगा तट पर अपने जीवन का अंत करेगा और भयमुक्त होकर भगवान में लीन हो जाएगा।
श्लोक 29
इति राज्ञ उपादिश्य विप्रा जातककोविदाः।
लब्धापचितयः सर्वे प्रतिजग्मुः स्वकान् गृहान्॥
हिन्दी अनुवाद:
इस प्रकार ब्राह्मणों ने राजा युधिष्ठिर को यह भविष्यवाणी बताई। सम्मान प्राप्त करके वे सभी ब्राह्मण अपने-अपने घरों को लौट गए।
श्लोक 30
स एष लोके विख्यातः परीक्षिदिति यत्प्रभुः।
पूर्वं दृष्टमनुध्यायन् परीक्षेत नरेष्विह॥
हिन्दी अनुवाद:
यह बालक संसार में "परीक्षित" के नाम से प्रसिद्ध होगा। यह अपने गर्भकाल में भगवान के दर्शन को याद करते हुए संसार के लोगों में भगवान को खोजेगा।
श्लोक 31
स राजपुत्रो ववृधे आशु शुक्ल इवोडुपः।
आपूर्यमाणः पितृभिः काष्ठाभिरिव सोऽन्वहम्॥
हिन्दी अनुवाद:
राजकुमार परीक्षित चंद्रमा के समान तेजस्वी होकर शीघ्र ही बड़ा हुआ। वह अपने पिता और पूर्वजों के गुणों को धारण करते हुए प्रतिदिन बढ़ता गया।
श्लोक 32
यक्ष्यमाणोऽश्वमेधेन ज्ञातिद्रोहजिहासया।
राजा लब्धधनो दध्यौ अन्यत्र करदण्डयोः॥
हिन्दी अनुवाद:
राजा युधिष्ठिर अश्वमेध यज्ञ द्वारा ज्ञातियों के साथ हुए कलह को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने अन्यत्र कर और दंड संग्रह पर विचार किया।
श्लोक 33
तदभिप्रेतमालक्ष्य भ्रातरोऽच्युतचोदिताः।
धनं प्रहीणमाजह्रुः उदीच्यां दिशि भूरिशः॥
हिन्दी अनुवाद:
राजा की इस इच्छा को समझकर, भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से पांडव भाइयों ने उत्तर दिशा से प्रचुर मात्रा में धन लाकर प्रस्तुत किया।
श्लोक 34
तेन सम्भृतसम्भारो धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।
वाजिमेधैः त्रिभिर्भीतो यज्ञैः समयजत् हरिम्॥
हिन्दी अनुवाद:
उस धन से सामग्री एकत्रित करके धर्मराज युधिष्ठिर ने तीन अश्वमेध यज्ञों का आयोजन किया और भगवान श्रीकृष्ण की विधिपूर्वक पूजा की।
श्लोक 35
आहूतो भगवान् राज्ञा याजयित्वा द्विजैर्नृपम्।
उवास कतिचित् मासान् सुहृदां प्रियकाम्यया॥
हिन्दी अनुवाद:
राजा युधिष्ठिर के निमंत्रण पर भगवान श्रीकृष्ण यज्ञ संपन्न करने के लिए उपस्थित हुए। उन्होंने अपने मित्रों को प्रसन्न करने के लिए कुछ महीने वहीं बिताए।
श्लोक 36
ततो राज्ञाभ्यनुज्ञातः कृष्णया सहबन्धुभिः।
ययौ द्वारवतीं ब्रह्मन् सार्जुनो यदुभिर्वृतः॥
हिन्दी अनुवाद:
फिर राजा की अनुमति से, श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी (रुक्मिणी) और भाई-बंधुओं के साथ द्वारका की ओर प्रस्थान किया। अर्जुन और यदुवंशी उनके साथ थे।
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां प्रथमस्कन्धे नैमिषीयोपाख्याने परीक्षिज्जन्माद्युत्कर्षो नाम द्वादशोऽध्यायः॥
इस प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रथम स्कंध के "नैमिषीयोपाख्यान" में "परीक्षित का जन्म और उत्कर्ष" नामक द्वादश अध्याय समाप्त हुआ।
यह भागवत प्रथम स्कन्ध, द्वादश अध्याय(हिन्दी अनुवाद) का पूरा अनुवाद है। यदि और सहायता चाहिए, तो कृपया कमेंट में बताएं।