वेद की कुछ विशेष आज्ञाएँ और उनके उल्लंघन के परिणाम

Sooraj Krishna Shastri
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वेद की कुछ विशेष आज्ञाएँ और उनके उल्लंघन के परिणाम
वेद की कुछ विशेष आज्ञाएँ और उनके उल्लंघन के परिणाम


वेद की कुछ विशेष आज्ञाएँ और उनके उल्लंघन के परिणाम

भारत की दुर्गति के पीछे वेद की आज्ञाओं का उल्लंघन ही एक प्रमुख कारण रहा है। आइए कुछ महत्वपूर्ण वेदवाक्यों को समझें और देखें कि इनके उल्लंघन से क्या परिणाम हुए।

1. जुआ मत खेलो

वेदवाक्य: "अक्षैर्मा दिव्य:।" (ऋग्वेद 10/34/13)
अर्थ: जुआ मत खेलो।
उल्लंघन: धर्मराज युधिष्ठिर ने इस आज्ञा का उल्लंघन किया।
परिणाम:

  • भरी सभा में द्रौपदी का अपमान।
  • महाभारत जैसा विनाशकारी युद्ध।
  • लाखों-करोड़ों योद्धाओं और विद्वानों का निधन।
  • आर्यावर्त का पतन।

2. आलस्य और बकवास से बचो

वेदवाक्य: "मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पिः।" (ऋग्वेद 8/48/14)
अर्थ: आलस्य, प्रमाद और व्यर्थ की बातें हम पर शासन न करें।
उल्लंघन: महाभारत के कुछ समय बाद भारत के राजा आलस्य और प्रमाद में डूब गए।
परिणाम:

  • समाज में अंधविश्वास और पाखंड का फैलाव।

3. एकता बनाए रखो

वेदवाक्य: "सं गच्छध्वं सं वद्ध्वम।" (ऋग्वेद 10/191/2)
अर्थ: मिलकर चलो और मिलकर बोलो।
उल्लंघन: विदेशी आक्रमणों के समय देश के राजा एकजुट नहीं रहे, बल्कि कुछ ने तो आक्रमणकारियों का ही सहयोग किया।
परिणाम:

  • लाखों लोगों का कत्ल।
  • स्त्रियों पर अत्याचार।
  • अपार धन-धान्य की लूट।
  • भारत पराधीन हो गया।

4. कर्म को महत्व दो, भाग्य पर निर्भर मत रहो

वेदवाक्य: "कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहितः।" (अथर्ववेद 7/50/8)
अर्थ: मेरे दाएँ हाथ में कर्म है और बाएँ हाथ में विजय।
उल्लंघन: लोगों ने कर्म छोड़कर भाग्य, ज्योतिष और ग्रहों के प्रभाव पर अधिक विश्वास करना शुरू कर दिया।
परिणाम:

  • कर्महीनता बढ़ी।
  • भाग्य के भरोसे रहने से आक्रांताओं का प्रतिरोध नहीं किया गया।
  • धन-धान्य का अपव्यय और मानसिक दरिद्रता फैली।

5. युद्ध के लिए सदैव तैयार रहो

वेदवाक्य:
"उतिष्ठत सं नह्यध्वमुदारा: केतुभिः सह। सर्पा इतरजना रक्षांस्य मित्राननु धावत।।" (अथर्ववेद 11/10/1)
अर्थ: हे वीर योद्धाओ! अपने झंडे को लेकर उठ खड़े हो, कमर कसकर तैयार हो जाओ और शत्रुओं पर धावा बोलो।
उल्लंघन: बौद्ध और जैन मत के अतिवादी अहिंसावाद के प्रचार से लोग युद्ध छोड़ने लगे।
परिणाम:

  • अशोक जैसे योद्धा ने युद्ध छोड़ दिया।
  • विदेशियों ने इसका लाभ उठाकर भारत पर आक्रमण किया।

6. आपस में मत लड़ो

वेदवाक्य: "मिथो विघ्राना उप यन्तु मृत्युम।" (अथर्ववेद 6/32/3)
अर्थ: परस्पर लड़ने वाले मृत्यु का ग्रास बनते हैं और नष्ट हो जाते हैं।
उल्लंघन: भारतीय योद्धा आपस में ही लड़ते रहे।
परिणाम:

  • आंतरिक संघर्षों में शक्ति क्षीण हुई।
  • विदेशियों ने इसका लाभ उठाकर भारत को गुलाम बना लिया।

7. ईश्वर को प्रतिमा तक सीमित न रखो

वेदवाक्य: "न तस्य प्रतिमा अस्ति।" (यजुर्वेद 32/3)
अर्थ: ईश्वर की कोई प्रतिमा नहीं है।
उल्लंघन: हमने ईश्वर को मूर्तियों तक सीमित कर दिया।
परिणाम:

  • सत्य धर्म को भूलकर भिन्न-भिन्न उपासना पद्धतियों का विकास हुआ।
  • मंदिरों में धन-संपत्ति का जमाव, जो न तो धर्म रक्षा में लगा और न ही गरीबी दूर करने में।

निष्कर्ष: वेदों की ओर लौटें

भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण वेदों की शिक्षाओं का उल्लंघन रहा है। यदि हम फिर से वेदों की आज्ञाओं का पालन करें, तो एक शक्तिशाली राष्ट्र और चरित्रवान समाज का निर्माण कर सकते हैं।

"कृण्वन्तो विश्वमार्यम्।" – आओ, संपूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाएं!

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