उलटा नामु जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना।।

Sooraj Krishna Shastri
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उलटा नामु जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना।।
उलटा नामु जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना।।


उलटा नामु जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना।।

राम नाम की अपार महिमा

"जान आदिकबि नाम प्रतापू।
भयउ सुद्ध करि उलटा जापू।।
उलटा नामु जपत जगु जाना।
बालमीकि भए ब्रह्म समाना।।"

आदिकवि वाल्मीकि जी ने श्रीराम नाम के प्रभाव को जान लिया और उसके उल्टे जप (मरा-मरा) से भी वे शुद्ध हो गए। सम्पूर्ण जगत ने देखा कि उलटा नाम जपते-जपते ही वाल्मीकि जी ब्रह्मस्वरूप हो गए (महान ऋषि बन गए)।

 भगवान श्रीराम का नाम मात्र एक शब्द नहीं, बल्कि अनंत शक्तियों का स्रोत है। यह नाम स्वयं ब्रह्मस्वरूप है, जो साधारण जप से भी जीव को परमपद का अधिकारी बना देता है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी ने अनेक स्थलों पर श्रीराम नाम की महिमा का उल्लेख किया है।

इस लेख में श्रीराम नाम के प्रभाव को विभिन्न प्रसंगों, चौपाइयों के अर्थ एवं उनके विस्तार के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है।


१. गणेशजी का सर्वप्रथम पूजन – श्रीराम नाम का प्रभाव

चौपाई:

"महिमा जासु जान गनराऊ।
प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ।।"
(बालकाण्ड, 19/4)

हिंदी अनुवाद:

जिस राम नाम की महिमा को गणेशजी ने जान लिया, उसी के प्रभाव से वे देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय हो गए।

प्रसंग विस्तार:

एक बार देवताओं ने शर्त रखी कि जो भी सम्पूर्ण त्रिलोकी की परिक्रमा करके सबसे पहले लौटेगा, वही सर्वप्रथम पूजनीय होगा। सभी देवता अपने-अपने वाहनों पर बैठकर तीव्र गति से परिक्रमा करने निकल पड़े। परंतु गणेशजी का वाहन मूषक (चूहा) अत्यंत धीमा था, जिससे वे निराश हो गए।

तब देवर्षि नारद ने उन्हें मार्ग सुझाया—

"हे गणेश! तुम पृथ्वी पर ‘राम’ नाम लिखकर उसकी परिक्रमा कर लो, क्योंकि भगवान श्रीराम संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी हैं। उनकी परिक्रमा करने से सम्पूर्ण जगत की परिक्रमा का फल प्राप्त हो जाएगा।"

गणेशजी ने वैसा ही किया और वे विजयी हुए। तब से वे सर्वप्रथम पूजनीय हो गए।


२. वाल्मीकि जी का शुद्धिकरण – श्रीराम नाम का प्रभाव

चौपाई:

"जान आदिकबि नाम प्रतापू।
भयउ सुद्ध करि उलटा जापू।।"
(बालकाण्ड, 19/5)

हिंदी अनुवाद:

आदिकवि वाल्मीकि जी ने राम नाम की महिमा को जान लिया और उसके उल्टे जप से भी वे शुद्ध हो गए।

प्रसंग विस्तार:

वाल्मीकि जी प्रारंभ में एक लुटेरे थे। वे वन में निर्दोष यात्रियों को लूटकर उनकी हत्या कर देते थे।

एक दिन जब उन्होंने देवर्षि नारद को लूटने का प्रयास किया, तो नारदजी ने उनसे पूछा—

"हे वत्स! तुम यह पाप क्यों कर रहे हो?"

वाल्मीकि जी ने उत्तर दिया—

"मैं अपने परिवार के लिए धन अर्जित करता हूँ। अतः मेरे परिवारजन भी इस पाप में सहभागी होंगे।"

तब नारदजी ने कहा—

"इसका परीक्षण कर लो। अपने परिवार से पूछकर आओ कि क्या वे तुम्हारे पापों में भी सहभागी बनेंगे?"

वाल्मीकि जी जब अपने घर गए और यह प्रश्न किया, तो उनकी माता, पत्नी और पुत्रों ने उत्तर दिया—

"हमने तुम्हें जन्म दिया, तुम्हारा पालन-पोषण किया, परंतु हम तुम्हारे पापों के भागीदार नहीं बन सकते।"

यह सुनकर वाल्मीकि जी का हृदय परिवर्तित हो गया। वे पुनः नारदजी के पास लौटे और उनके चरणों में गिर पड़े। तब नारदजी ने उन्हें भगवान श्रीराम का नाम स्मरण करने का उपदेश दिया।

परंतु पापाचरण के कारण वे ‘राम’ नाम का उच्चारण नहीं कर सके। नारदजी ने उपाय बताया—

"यदि तुम ‘राम’ नहीं कह सकते तो ‘मरा’ शब्द का उच्चारण करो।"

जब उन्होंने ‘मरा-मरा’ का जप करना प्रारंभ किया, तो यह क्रमशः ‘राम-राम’ बन गया। दीर्घकाल तक इस जप के प्रभाव से उनका हृदय शुद्ध हो गया, और वे महान ऋषि के रूप में प्रतिष्ठित हुए।


३. उल्टा नाम जपने से भी मुक्ति – राम नाम की शक्ति

चौपाई:

"उलटा नामु जपत जगु जाना।
बालमीकि भए ब्रह्म समाना।।"
(अयोध्याकाण्ड, 194/8)

हिंदी अनुवाद:

उल्टा नाम जपते हुए भी समस्त संसार ने जाना कि वाल्मीकि जी ब्रह्मस्वरूप हो गए।

प्रसंग विस्तार:

इस चौपाई में यह बताया गया है कि ‘राम’ नाम की शक्ति इतनी महान है कि यदि इसे उल्टा भी जपा जाए, तो भी यह मोक्षदायी होता है। वाल्मीकि जी ने ‘मरा-मरा’ का जप किया, जो कालांतर में ‘राम-राम’ बन गया।

इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति अज्ञानवश या गलती से भी राम नाम का उच्चारण करता है, तो भी उसे पवित्रता प्राप्त होती है।


४. राम नाम की विशेषताएँ और लाभ

  1. मोक्षदायक: जो साधक प्रतिदिन श्रद्धा से ‘राम’ नाम का जप करता है, उसे निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त होता है।
  2. पाप नाशक: यह नाम भयंकर पापों को नष्ट कर देता है, जैसा कि वाल्मीकि जी के जीवन में हुआ।
  3. सभी युगों में प्रभावी: यह नाम सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग – सभी युगों में साधकों का कल्याण करता है।
  4. सरलतम साधन: इस कलियुग में अन्य कठिन साधन करना कठिन है, किंतु मात्र श्रीराम का नाम स्मरण करने से ही जीव को परमशांति प्राप्त होती है।

५. राम नाम पर संतों के विचार

(१) तुलसीदासजी कहते हैं:

"कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरहिं पारा।।"
(अर्थात, कलियुग में केवल नाम ही एकमात्र सहारा है, जो मनुष्य को भवसागर से पार कर सकता है।)

(२) संत कबीरदास कहते हैं:

"राम नाम उर होय न बसे, तो कहुं कहाँ कछु कीज।"
(अर्थात, यदि हृदय में राम नाम नहीं बसा, तो संसार में कुछ भी करने का कोई लाभ नहीं।)

(३) तुलसीदासजी कहते हैं:

"राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहेरहुँ, जौं चाहसि उजियार।।"
(अर्थात, यदि तुम जीवन में प्रकाश चाहते हो, तो अपनी जिह्वा रूपी देहरी पर राम नाम का दीपक जलाओ।)


उपसंहार

श्रीराम नाम की महिमा अनंत है। यह नाम जीव को समस्त दुखों से मुक्त कर परमपद का अधिकारी बना देता है। यदि पापी वाल्मीकि इससे ऋषि बन सकते हैं, यदि गणेशजी इससे प्रथम पूज्य बन सकते हैं, यदि भगवान शंकर इससे ‘महेश’ बन सकते हैं— तो निश्चय ही यह नाम प्रत्येक साधक को भी ईश्वरीय अनुभूति करा सकता है।

अतः हमें निरंतर ‘राम’ नाम का जप करना चाहिए और अपने जीवन को पावन बनाना चाहिए।


॥ जय श्रीराम ॥


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