भगवान का प्रेम : एक अनुपम कथा
"जो ठाकुर जी को याद करते हैं, ठाकुर जी भी उनको याद करते हैं और रोते हैं उनके लिए।"
भक्ति का नियम
किसी नगर में एक सच्चे भक्त का निवास था। उसकी दिनचर्या का एक ही नियम था—प्रातःकाल उठकर श्रीकृष्ण मंदिर में जाकर मंगला आरती के दर्शन करना। भगवान के दर्शन किए बिना वह अपने नित्य कार्यों की शुरुआत नहीं करता था। यह नियम वर्षों से अटूट चला आ रहा था।
प्रभु के प्रति उसकी अपार श्रद्धा थी। उसे ऐसा प्रतीत होता था मानो ठाकुर जी स्वयं उसके आगमन की प्रतीक्षा करते हैं। वह नंगे पाँव मंदिर जाता, हाथ जोड़कर श्रद्धा से खड़ा रहता और प्रेमपूर्वक ठाकुर जी को निहारता।
एक विचित्र सुबह
परंतु एक दिन, जब वह भक्त प्रतिदिन की भाँति मंदिर पहुँचा, तो उसने देखा कि मंदिर के द्वार बंद थे!
यह देख उसका हृदय विचलित हो गया। ऐसा कैसे हो सकता है? ठाकुर जी के दर्शन के बिना तो उसका दिन कभी प्रारंभ ही नहीं होता था!
उसकी आँखें द्वार पर टिकी रहीं, मन अनगिनत विचारों से घिर गया।
वह वहीं पास ही एक स्थान पर बैठ गया।
धीरे-धीरे उसका मन अशांत होने लगा। उसकी आँखों से अश्रु धाराएँ बह निकलीं। उसकी हृदय की गहराइयों से पुकार उठी—
व्याकुल पुकार
उसकी आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसके हृदय में विरह की ज्वाला जल उठी।
वह प्रभु की अनुपस्थिति में अत्यंत दुःखी हो गया।
अदृश्य पुकार...
इसी बीच, अचानक उसे कहीं से पुकार सुनाई दी—
वह चौक उठा! यह आवाज़ कौन लगा रहा था?
उसने चारों ओर देखा, किंतु आसपास कोई नहीं था।
आश्चर्य और चिंता से भरा उसका हृदय और अधिक व्याकुल हो उठा। उसने पुनः अपने नेत्र मूँद लिए और रोने लगा—
"प्रभु! ओ मेरे प्रभु! आपने ऐसा क्यों किया?"
फिर अचानक उसके सिर में चक्कर आया और वह मूर्छित होकर गिर पड़ा।
भगवान के प्रेमाश्रु
कुछ समय पश्चात, जब उसकी चेतना लौटी, तो उसने अनुभव किया कि उसके चरणों को किसी शीतल जलधारा ने छू लिया है।
वह धीरे-धीरे उठकर सोचने लगा—यह जल कहाँ से आया?
उसने चारों ओर देखा, किंतु कहीं कोई जल स्रोत नहीं था।
तभी उसने गौर किया कि मंदिर के द्वार के नीचे से जल बाहर बह रहा था!
वह अचंभित हो गया। मंदिर के द्वार से जल! यह कैसे संभव है?
और तभी, पुनः वही स्वर गूंजा—
अब तो वह भय और प्रेम की गहराइयों में डूब चुका था।
उसका हृदय धड़क उठा। उसकी आँखें पुनः छलक उठीं।
स्वप्न में भगवान के दर्शन
और तभी, उसे प्रतीत हुआ कि वह श्रीप्रभु के सामने खड़ा है।
उसने देखा कि श्री ठाकुर जी स्वयं उसके सम्मुख खड़े हैं। उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु छलक रहे हैं!
वह विस्मित हो गया।
श्रीप्रभु के नेत्रों में ऐसा प्रेम, ऐसा वात्सल्य, ऐसी करुणा उसने पहले कभी अनुभव नहीं की थी।
भगवान मुस्कुरा रहे थे, किंतु उनके नयन अश्रुजल से भरे हुए थे।
वह भक्त आनंद और श्रद्धा से सिहर उठा।
तभी मंदिर में आरती का शंख बजा।
कुछ श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए आए और उसे जागृत किया।
साक्षात दर्शन और स्तब्धता
जैसे ही उसने ठाकुर जी के श्रीविग्रह के दर्शन किए, वह स्तब्ध रह गया—
ये वही दर्शन थे, जो उसे बेहोशी में हुए थे!
उसकी दृष्टि जब प्रभु के नयनों की ओर गई, तो वह जड़वत् रह गया—
श्रीप्रभु के नयनों में अश्रु थे!
वह हतप्रभ रह गया। अब उसे भान हुआ कि जो जलधारा उसके चरणों को स्पर्श कर रही थी, वह कोई साधारण जलधारा नहीं, बल्कि श्रीप्रभु के प्रेमाश्रु थे!
ठाकुर जी का स्नेहपूर्ण संदेश
उसका हृदय ग्लानि और श्रद्धा से भर उठा।
वह फूट-फूटकर रोने लगा और बार-बार क्षमा माँगने लगा—
"हे प्रभु! मुझसे यह क्या हो गया? मेरी थोड़ी-सी देरी से आपको इतना कष्ट हुआ?"
श्रीप्रभु के अधरों पर एक कोमल मुस्कान आई। उन्होंने प्रेममयी दृष्टि से उसे निहारा और स्नेह से कहा—
भाव के भूखे हैं भगवान
यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान को किसी पूजा-पाठ, किसी कर्मकांड, किसी साधन की आवश्यकता नहीं।
प्रभु को केवल भाव प्रिय है।
जैसे कर्मा बाई ने माना, जैसे धन्ना जाट ने माना...
भगवान सच्चे हृदय के प्रेम में बंध जाते हैं। वे केवल भाव के भूखे हैं।
"भावग्राही भगवान की जय!"
🙏🏻🌹 हरे कृष्णा!