भारत की 'चुप्पी' और ट्रंप की टैरिफ रणनीति: कूटनीति या मजबूरी?

Sooraj Krishna Shastri
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भारत की 'चुप्पी' और ट्रंप की टैरिफ रणनीति: कूटनीति या मजबूरी?
भारत की 'चुप्पी' और ट्रंप की टैरिफ रणनीति: कूटनीति या मजबूरी?

भारत की 'चुप्पी' और ट्रंप की टैरिफ रणनीति: कूटनीति या मजबूरी?

परिचय

हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी, जिसके बाद यह सवाल उठ रहा है कि भारत सरकार इस पर प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रही? क्या यह कूटनीतिक रणनीति है या फिर भारत किसी आर्थिक दबाव में है? इस लेख में हम भारत की इस 'चुप्पी' का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


1. भारत की चुप्पी: रणनीति या विवशता?

1.1 ट्रंप का इतिहास और भारत की प्रतिक्रिया

डोनाल्ड ट्रंप ने 2017-2021 के कार्यकाल में भी इसी तरह के बयान दिए थे। उन्होंने पहले भी भारत पर "बिगेस्ट टैरिफ चार्जर" होने का आरोप लगाया था। 2018 में हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल पर टैरिफ कम करने के लिए दबाव बनाया गया था। भारत ने तब भी चुपचाप टैरिफ में कटौती कर दी थी।

1.2 भारत का वेट एंड वॉच दृष्टिकोण

भारत सरकार इस पूरे मामले में 'वेट एंड वॉच' की रणनीति अपना रही है। 2017-21 में ट्रंप ने चीन, कनाडा, मेक्सिको और यूरोप पर भी टैरिफ लगाए थे। ऐसे में भारत समझता है कि ट्रंप की यह रणनीति अस्थायी हो सकती है, इसलिए बिना प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया दिए स्थिति को देखने की नीति अपनाई जा रही है।


2. अमेरिका के टैरिफ वार्स और भारत का कूटनीतिक खेल

2.1 वैश्विक आर्थिक परिवेश में भारत की भूमिका

चीन, कनाडा और मैक्सिको जैसे देश टैरिफ बढ़ोतरी के खिलाफ खुलकर प्रतिक्रिया देते हैं, लेकिन भारत अलग रणनीति अपना रहा है। भारत सरकार आर्थिक दबाव से बचने के लिए अमेरिका से व्यापार बढ़ाने और अन्य देशों के साथ नए व्यापार समझौते करने पर ध्यान दे रही है।

2.2 भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर काम जारी

भारत के वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल इस समय अमेरिका में हैं और 500 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को हासिल करने के लिए बातचीत कर रहे हैं। इससे साफ है कि भारत बिना टकराव के व्यापारिक अवसरों को भुनाने की कोशिश कर रहा है।


3. ट्रंप की टैरिफ नीति: 2018 से अब तक

3.1 अतीत से सीखकर चुप्पी साधने की रणनीति

ट्रंप ने 2018 में चीन के साथ ट्रेड वॉर छेड़ा था, जिससे अमेरिकी कंपनियों को भी नुकसान हुआ था। भारत इस बार उन गलतियों से सबक लेते हुए प्रतिक्रिया देने से बच रहा है।

3.2 भारतीय अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव

  • स्टॉक मार्केट में गिरावट
  • रुपये की डॉलर के मुकाबले कमजोरी
  • व्यापार घाटे में संभावित वृद्धि

हालांकि, भारत सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए पहले से तैयार है और यही कारण है कि वह जल्दबाजी में कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही।


4. भारत बनाम चीन: प्रतिक्रिया देने में अंतर क्यों?

चीन भारत से अलग नीति अपनाता है क्योंकि—

  1. चीन की अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना बड़ी है।
  2. चीन में कम्युनिस्ट शासन है, जहां सरकार पर आंतरिक राजनीतिक दबाव नहीं होता।
  3. भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां सरकार को संतुलन बनाकर चलना पड़ता है।

भारत सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती यह भी है कि 2024 के चुनावों में पूर्ण बहुमत न मिलने के कारण निर्णय लेने की स्वतंत्रता पहले की तुलना में कम हुई है।


5. भारत के लिए आगे की राह

5.1 अमेरिका के साथ व्यापार को मजबूत करना

भारत को अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को और अधिक गहरा करना होगा ताकि किसी भी संभावित टैरिफ वार्स का प्रभाव न्यूनतम रहे।

5.2 आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम

भारत को अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को बढ़ाकर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में काम करना होगा ताकि आयात शुल्क बढ़ने से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके।


निष्कर्ष

भारत की 'चुप्पी' एक सोची-समझी कूटनीतिक रणनीति है, न कि कोई मजबूरी। भारत सरकार बिना किसी अनावश्यक बयानबाजी के दीर्घकालिक रणनीति पर काम कर रही है ताकि टैरिफ वार्स से बचते हुए आर्थिक मजबूती हासिल की जा सके। दुनिया में चल रही आर्थिक उठापटक के बीच भारत सही समय पर सही कदम उठाने की तैयारी कर रहा है।

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2 Comments

  1. क्या कभी भारत अमेरिका से आगे निकल सकता है?

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  2. भारत के अमेरिका से आगे निकलने की संभावना कई कारकों पर निर्भर करती है—आर्थिक विकास, तकनीकी नवाचार, जनसंख्या का सही उपयोग, बुनियादी ढांचे में सुधार, और वैश्विक कूटनीति।
    संभावनाएँ:
    1. अर्थव्यवस्था – भारत की GDP तेजी से बढ़ रही है और भविष्य में यह अमेरिका को चुनौती दे सकता है।
    2. जनसंख्या लाभ – भारत की युवा आबादी उसे नवाचार और उत्पादन क्षमता में आगे बढ़ा सकती है।
    3. तकनीकी प्रगति – डिजिटल क्रांति, AI, और स्टार्टअप इकोसिस्टम भारत को बड़ी ताकत बना रहे हैं।
    4. वैश्विक प्रभाव – भारत की कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बढ़ती भागीदारी इसे मजबूत स्थिति में ला रही है।
    चुनौतियाँ:
    आधारभूत संरचना और शिक्षा में सुधार की आवश्यकता।
    बेरोजगारी और गरीबी जैसी सामाजिक समस्याएँ।
    राजनीतिक स्थिरता और भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना।
    निष्कर्ष: भारत सही नीतियों और संसाधनों के कुशल उपयोग से भविष्य में अमेरिका को आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों में चुनौती दे सकता है, लेकिन इसमें कुछ दशक लग सकते हैं।

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