कहानी: देवी की नाराजगी

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

कहानी: देवी की नाराजगी
कहानी: देवी की नाराजगी


कहानी: देवी की नाराजगी

दिव्या के घर में एक प्यारा बकरा था, जिसका नाम ‘बाबू’ था। उसके गले में एक छोटी-सी घंटी बंधी थी, जो हर समय उसकी उपस्थिति का अहसास कराती थी। बाबू पूरे घर में आज़ादी से घूमता, और परिवार के किसी भी सदस्य को उसे परेशान करने की अनुमति नहीं थी। यदि कोई उसे छेड़ने की कोशिश करता, तो वह तुरंत दौड़कर दिव्या के पास चला जाता। दिव्या और बाबू का एक गहरा रिश्ता था—इतना गहरा कि जब तक दिव्या स्कूल से लौटती नहीं, बाबू दरवाजे पर उसका इंतजार करता। जैसे ही वह आहट पहचानता, तुरंत दौड़कर उसके पास पहुंच जाता, और दोनों साथ में घर लौटते।

घर लौटने के बाद दिव्या उसे हरी पत्तियाँ और टमाटर खिलाती। टमाटर खाते समय बाबू के पूरे चेहरे पर उसका रस लग जाता, जिसे देखकर दिव्या खिलखिलाकर हंस पड़ती। फिर वह बाल्टी से पानी डालकर बाबू को नहलाती। पानी गिरते ही बाबू झटपट अपने शरीर को झटककर पानी हटा देता, और यह दोनों के लिए एक मज़ेदार खेल बन जाता। यह रोज़ का सिलसिला था, लेकिन उस दिन ऐसा नहीं हुआ।

बाबू के बिना एक अजीब शाम

उस दिन जब दिव्या स्कूल से लौटी, तो बाबू उसे लेने नहीं आया। उसे अजीब-सा लगा, और घरवालों से पूछा तो पता चला कि दादा-दादी उसे पास के मंदिर तक ले गए हैं। दिव्या बहुत थकी हुई थी, इसलिए जल्दी ही सो गई। शाम को जब उसकी नींद खुली, तो उसे ऐसा अहसास हुआ जैसे बाबू उसके तलवे चाट रहा हो—यही उसकी प्यारी आदत थी, जिससे वह दिव्या को जगाया करता था।

हड़बड़ाकर उठने पर दिव्या ने देखा कि उसके पास बाबू नहीं, बल्कि दादा जी बैठे थे। उनके हाथ गीले थे, और वे प्यार से उसके तलवे सहला रहे थे। उन्होंने कहा, “बिटिया, चलो, मंदिर चलना है।”

मंदिर में एक कठोर परंपरा

मंदिर पहुँचने पर दिव्या ने देखा कि वहाँ भारी भीड़ थी। बीच में बाबू खड़ा था, उसके माथे पर तिलक था और गले में फूलों की माला। दिव्या को समझ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है। तभी किसी ने बताया कि गाँव में सूखा पड़ा है और मान्यता के अनुसार, यदि बकरे की बलि दी जाए तो वर्षा हो सकती है।

लेकिन बलि तभी दी जा सकती थी जब बकरा अपने शरीर पर डाले गए पानी को झटक दे। लोगों का विश्वास था कि जब तक वह पानी नहीं झटकता, तब तक बलि नहीं दी जा सकती। परंतु बाबू शांत खड़ा था, उसने तनिक भी पानी नहीं झटकाया। कुछ बुजुर्गों ने इसे बुरी आत्मा का प्रभाव बताया, तो कुछ ने कहा कि देवी नाराज हैं।

बाबू और दिव्या का अंतिम संवाद

गाँववालों को उम्मीद थी कि दिव्या अपने प्यारे बाबू को पानी झटकने के लिए मना सकती है। उन्होंने उससे आग्रह किया कि वह बाबू को तैयार करे, वरना देवता नाराज हो जाएंगे।

दिव्या डरी हुई थी, लेकिन बड़ों की बात मानते हुए वह बाबू के पास गई। उसने उसे सहलाया, एक टमाटर खिलाया। बाबू ने टमाटर खा लिया, लेकिन उसके चेहरे पर टमाटर का रस लग गया। दिव्या ने बाल्टी से पानी डालकर उसका चेहरा पोंछा। बाबू की आँखों में गहरी उदासी थी, वह चुपचाप दिव्या को देखे जा रहा था। उनके बीच कोई मौन संवाद हुआ, जिसे कोई और समझ नहीं पाया।

तभी अचानक, बाबू ने अपना पूरा शरीर हिलाया और पानी झटक दिया।

एक मासूम प्राण की बलि

भीड़ खुशी से उछल पड़ी। यह संकेत था कि बलि दी जा सकती है। किसी ने बाबू के गले से घंटी और रस्सी खोलकर दिव्या को दे दी। फिर उसे मंदिर के पीछे ले जाया गया। दो मिनट बाद ही एक दिल दहला देने वाली चीख गूँजी—बाबू की अंतिम चीख।

इसके बाद सब शांत हो गया। दादा जी के साथ दिव्या चुपचाप घर लौट आई।

एक और बलि—जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था

उस रात गाँव में भोज हुआ, क्योंकि वर्षा की आस में बलि दी गई थी। लेकिन अगली सुबह, गाँव के लोग फिर से एकत्र हुए—इस बार किसी उत्सव के लिए नहीं, बल्कि दिव्या की अंतिम यात्रा के लिए।

बाबू की जुदाई सहन न कर पाने के कारण दिव्या ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया। अब गाँववालों के पास कोई जवाब नहीं था कि इस बार कौन-सी देवी नाराज हो गई, जिसने एक नन्ही बच्ची को उनसे छीन लिया।

निष्कर्ष—समाज के लिए एक प्रश्न

बच्चों का विश्वास सबसे शुद्ध होता है। उनके विश्वास को तोड़ने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। क्या समाज अब भी यह नहीं समझ पाया कि उनकी भी अपनी दुनिया होती है—एक दुनिया जो सच्चे प्रेम और निस्वार्थ भावना से भरी होती है?

जिसके हृदय में दूसरों के दुख-दर्द को समझने की संवेदना है, वही वास्तव में इंसान कहलाने योग्य है।

"कबीर कहते हैं, वही सच्चा पीड़ित है, जो दूसरों की पीड़ा को समझ सके।
जो दूसरों के दुख को नहीं जानता, वह हृदयहीन और असंवेदनशील है।"

कबीरा सोई पीर है , जो जाने पर पीर।

जो पर पीर न जानई , सो काफिर बेपीर।।

मजबूरी कोई भी हो, लेकिन मासूमियत की कीमत पर नहीं!

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!