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संस्कृत श्लोक: "को धर्मो भूतदया किं सौख्यं" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "को धर्मो भूतदया किं सौख्यं" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोकः
को धर्मो भूतदया किं सौख्यं नित्यमरोगिता जगति ।
कः स्नेहः सद्भावः किं पाण्डित्यं परिच्छेदः ॥
हिन्दी अनुवाद:
धर्म क्या है? प्राणियों पर दया।
संसार में सुख क्या है? सदैव निरोग रहना।
स्नेह क्या है? सद्भाव, प्रेम और अनुराग।
पाण्डित्य (विद्वत्ता) क्या है? सत्-असत् (उचित-अनुचित) का विवेक।
शाब्दिक विश्लेषण
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को धर्मः? – धर्म क्या है?
- को (कः) – क्या? कौन?
- धर्मः – धार्मिक कर्तव्य, सत्य, उचित आचरण।
- उत्तर: भूतदया (सभी जीवों पर दया करना)
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किं सौख्यम्? – सुख क्या है?
- किं – क्या?
- सौख्यम् – सुख, आनंद।
- उत्तर: नित्यमरोगिता (हमेशा निरोग रहना)
-
कः स्नेहः? – स्नेह क्या है?
- कः – कौन? क्या?
- स्नेहः – प्रेम, लगाव, आत्मीयता।
- उत्तर: सद्भावः (शुद्ध भाव, परोपकार, प्रेम)
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किं पाण्डित्यं? – पाण्डित्य (विद्वत्ता) क्या है?
- किं – क्या?
- पाण्डित्यम् – विद्वत्ता, ज्ञान।
- उत्तर: परिच्छेदः (सत्-असत् का विवेक, उचित-अनुचित का ज्ञान)
आधुनिक संदर्भ में व्याख्या
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धर्म (भूतदया) का आधुनिक अर्थ
- धर्म का अर्थ केवल कर्मकांड या परंपराओं का पालन नहीं, बल्कि सभी प्राणियों के प्रति दया और करुणा रखना है।
- आधुनिक युग में पर्यावरण संरक्षण, जीवों के प्रति अहिंसा, और सामाजिक सेवा इस भूतदया के महत्वपूर्ण रूप हैं।
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सौख्य (निरोगिता) का महत्व
- वर्तमान समय में मानसिक तनाव, जीवनशैली की बीमारियाँ, और अनुचित खान-पान स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं।
- वास्तविक सुख भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि स्वस्थ शरीर और मन में निहित है।
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स्नेह (सद्भाव) की आवश्यकता
- समाज में बढ़ती असहिष्णुता, मतभेद और स्वार्थ के कारण प्रेम और सद्भाव का अभाव देखने को मिलता है।
- परिवार, समाज और राष्ट्र में समरसता एवं परस्पर सहयोग ही सच्चा स्नेह है।
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पाण्डित्य (परिच्छेदः) का महत्व
- ज्ञान का वास्तविक अर्थ केवल सूचनाओं का संग्रह नहीं, बल्कि सही और गलत का विवेक करना है।
- आज के डिजिटल युग में फर्जी समाचार, भ्रामक सूचनाएँ और अंधविश्वास से बचने के लिए विवेकशीलता अनिवार्य है।
निष्कर्ष
यह श्लोक हमें जीवन के चार महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाता है:
- धर्म – प्राणियों पर दया।
- सुख – निरोग रहना।
- स्नेह – सद्भाव और प्रेम।
- विद्वत्ता – सत्य-असत्य का विवेक।
यदि हम इन सिद्धांतों का पालन करें, तो न केवल हमारा व्यक्तिगत जीवन सुखमय होगा, बल्कि समाज और राष्ट्र भी सुदृढ़ और समृद्ध बनेगा।