संस्कृत श्लोक: "को धर्मो भूतदया किं सौख्यं" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "को धर्मो भूतदया किं सौख्यं" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "को धर्मो भूतदया किं सौख्यं" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "को धर्मो भूतदया किं सौख्यं" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

श्लोकः
को धर्मो भूतदया किं सौख्यं नित्यमरोगिता जगति ।
कः स्नेहः सद्भावः किं पाण्डित्यं परिच्छेदः ॥

हिन्दी अनुवाद:
धर्म क्या है? प्राणियों पर दया
संसार में सुख क्या है? सदैव निरोग रहना
स्नेह क्या है? सद्भाव, प्रेम और अनुराग
पाण्डित्य (विद्वत्ता) क्या है? सत्-असत् (उचित-अनुचित) का विवेक


शाब्दिक विश्लेषण

  1. को धर्मः? – धर्म क्या है?

    • को (कः) – क्या? कौन?
    • धर्मः – धार्मिक कर्तव्य, सत्य, उचित आचरण।
    • उत्तर: भूतदया (सभी जीवों पर दया करना)
  2. किं सौख्यम्? – सुख क्या है?

    • किं – क्या?
    • सौख्यम् – सुख, आनंद।
    • उत्तर: नित्यमरोगिता (हमेशा निरोग रहना)
  3. कः स्नेहः? – स्नेह क्या है?

    • कः – कौन? क्या?
    • स्नेहः – प्रेम, लगाव, आत्मीयता।
    • उत्तर: सद्भावः (शुद्ध भाव, परोपकार, प्रेम)
  4. किं पाण्डित्यं? – पाण्डित्य (विद्वत्ता) क्या है?

    • किं – क्या?
    • पाण्डित्यम् – विद्वत्ता, ज्ञान।
    • उत्तर: परिच्छेदः (सत्-असत् का विवेक, उचित-अनुचित का ज्ञान)

आधुनिक संदर्भ में व्याख्या

  1. धर्म (भूतदया) का आधुनिक अर्थ

    • धर्म का अर्थ केवल कर्मकांड या परंपराओं का पालन नहीं, बल्कि सभी प्राणियों के प्रति दया और करुणा रखना है।
    • आधुनिक युग में पर्यावरण संरक्षण, जीवों के प्रति अहिंसा, और सामाजिक सेवा इस भूतदया के महत्वपूर्ण रूप हैं।
  2. सौख्य (निरोगिता) का महत्व

    • वर्तमान समय में मानसिक तनाव, जीवनशैली की बीमारियाँ, और अनुचित खान-पान स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं।
    • वास्तविक सुख भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि स्वस्थ शरीर और मन में निहित है।
  3. स्नेह (सद्भाव) की आवश्यकता

    • समाज में बढ़ती असहिष्णुता, मतभेद और स्वार्थ के कारण प्रेम और सद्भाव का अभाव देखने को मिलता है।
    • परिवार, समाज और राष्ट्र में समरसता एवं परस्पर सहयोग ही सच्चा स्नेह है।
  4. पाण्डित्य (परिच्छेदः) का महत्व

    • ज्ञान का वास्तविक अर्थ केवल सूचनाओं का संग्रह नहीं, बल्कि सही और गलत का विवेक करना है।
    • आज के डिजिटल युग में फर्जी समाचार, भ्रामक सूचनाएँ और अंधविश्वास से बचने के लिए विवेकशीलता अनिवार्य है।

निष्कर्ष

यह श्लोक हमें जीवन के चार महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाता है:

  1. धर्म – प्राणियों पर दया।
  2. सुख – निरोग रहना।
  3. स्नेह – सद्भाव और प्रेम।
  4. विद्वत्ता – सत्य-असत्य का विवेक।

यदि हम इन सिद्धांतों का पालन करें, तो न केवल हमारा व्यक्तिगत जीवन सुखमय होगा, बल्कि समाज और राष्ट्र भी सुदृढ़ और समृद्ध बनेगा।

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