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संस्कृत श्लोक: "सर्वस्य हि परीक्ष्यन्ते स्वभावा नेतरे गुणाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "सर्वस्य हि परीक्ष्यन्ते स्वभावा नेतरे गुणाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
🙏जय श्री राम!🌷सुप्रभातम्!🙏
प्रस्तुत यह श्लोक मानव स्वभाव और गुणों की गहराई से पड़ताल करता है। आइए इसका विस्तृत भावार्थ और एक शिक्षाप्रद बालकथा के माध्यम से इसे समझते हैं—
श्लोकः
सर्वस्य हि परीक्ष्यन्ते स्वभावा नेतरे गुणाः।
अतीत्य हि गुणान्सर्वान्स्वभावो मूर्ध्नि वर्तते॥
शाब्दिक अर्थ:
- सर्वस्य – सभी का
- हि – निश्चय ही
- परीक्ष्यन्ते – परखे जाते हैं
- स्वभावाः – स्वभाव (प्राकृतिक प्रवृत्ति)
- नेतरः – न कि अन्य
- गुणाः – विशेषताएँ, योग्यता
- अतीत्य – पार करते हुए, पीछे छोड़ते हुए
- मूर्ध्नि वर्तते – सर्वोपरि स्थित होता है, सबसे ऊपर रहता है
हिंदी भावार्थ:
हर व्यक्ति के गुणों में से उसका स्वाभाविक स्वभाव ही वास्तविक और निर्णायक होता है। अन्य सभी गुण संकट की घड़ी में छिप सकते हैं या धोखा दे सकते हैं, लेकिन व्यक्ति का स्वभाव तब भी प्रकट होता है और सबसे प्रभावी रहता है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में:
- गुण – जैसे विद्या, कुशलता, भाषण-शैली, रूप आदि
- स्वभाव – जैसे दयालुता, क्रोधशीलता, लोभ, या सत्यनिष्ठा
संकट के समय कोई कितना भी पढ़ा-लिखा हो, यदि उसका स्वभाव कायरता या स्वार्थ का है, तो वह साहस नहीं दिखा सकेगा।
बाल कथा – "दो बंदरों की परीक्षा"
एक बार एक राजा ने दो बंदरों को शिक्षा दी – एक को संगीत, और दूसरे को तलवारबाज़ी। दोनों बहुत योग्य हो गए।
राजा ने सोचा – "अब समय है देखने का कि कौन श्रेष्ठ है।"
अचानक एक दिन एक बाघ महल में घुस आया।
- तलवार चलाने वाला बंदर भाग खड़ा हुआ।
- और संगीत सिखा बंदर जाकर राजा के सामने खड़ा हो गया, उसे न छोड़ने का संकल्प लिया।
राजा बोला:
"जो संकट में साथ न छोड़े, वही सच्चा सेवक है। विद्या दिखावे की हो सकती है, पर स्वभाव कभी नहीं छिपता।"
नीति:
शिक्षा, गुण, या कौशल से भी बढ़कर है – "स्वभाव"।
यही कारण है कि संस्कारों का बीजारोपण बचपन से ही आवश्यक माना गया है।
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