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संस्कृत श्लोक: "एक एव सुहृद्धर्मो निधनेऽप्यनुयाति यः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "एक एव सुहृद्धर्मो निधनेऽप्यनुयाति यः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
🙏जय श्री राम!🌹सुप्रभातम्!🙏
आपने जो श्लोक प्रस्तुत किया है, वह जीवन की परम सच्चाई और वैदिक धर्म का सार है। आइए इसे विस्तारपूर्वक समझते हैं और एक सरल व शिक्षाप्रद बालकथा द्वारा इसे हृदयंगम करें।
श्लोकः
एक एव सुहृद्धर्मो निधनेऽप्यनुयाति यः ।
शरीरेण समं नाशं सर्वमन्यत्तु गच्छति ॥
शाब्दिक अर्थ:
- एकः एव – केवल एक ही
- सुहृत् – सच्चा मित्र
- धर्मः – धर्म, पुण्यकर्म
- निधने अपि – मृत्यु के बाद भी
- अनुयाति – साथ जाता है
- शरीरेण समं – शरीर के साथ-साथ
- नाशं गच्छति – नष्ट हो जाता है
- सर्वम् अन्यत् तु – शेष सब कुछ तो
हिंदी भावार्थ:
इस संसार में सच्चा मित्र केवल धर्म है – वही पुण्यकर्म जो मनुष्य जीवन में कमाया गया है।
जब मनुष्य की मृत्यु होती है, तब शरीर, धन, संबंधी, प्रतिष्ठा आदि – सब नष्ट हो जाते हैं या पीछे छूट जाते हैं।
केवल धर्म ही है जो आत्मा के साथ परलोक की यात्रा में चलता है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में:
- धन, भवन, पद, परिवार – सब इह लोक तक ही सीमित हैं।
- केवल सत्कर्म, सेवा, करुणा, त्याग, संयम – यही धर्मरूपी सखा है जो परलोक में साथ जाता है।
बाल कथा – “तीनों भाई और धर्म की थैली”
बहुत समय पहले की बात है। एक राजा के तीन पुत्र थे।
राजा ने उन्हें परखने के लिए मृत्यु से पहले एक-एक थैली दी और कहा—
“मृत्यु के पश्चात् केवल वही थैली तुम्हारे साथ जाएगी। चुनो कि उसमें क्या भरना है।”
- पहले पुत्र ने उसमें सोना और रत्न भरे।
- दूसरे ने राजनैतिक सम्मान और विजयों के पत्र।
- तीसरे ने उसमें दीनों की सेवा, ज्ञान, और सत्य का लेखा भरा।
समय बीता, तीनों की मृत्यु हुई। यमलोक में केवल तीसरे पुत्र की थैली खुली।
अन्य दो की थैली धूल और मोह से भरी थी।
यमराज बोले – “धन और यश तो शरीर के साथ ही नष्ट हो जाते हैं, केवल पुण्यकर्म ही तुम्हारा सच्चा मित्र है।”
नीति:
"धर्म का साथ ही परलोक में साथ देता है।"
बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि सच्ची कमाई वही है जो दूसरों के लिए कुछ अच्छा कर जाए।
thanks for a lovly feedback