शिक्षकों और सांसदों के वेतन वृद्धि की तुलना

Sooraj Krishna Shastri
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शिक्षकों और सांसदों के वेतन वृद्धि की तुलना
शिक्षकों और सांसदों के वेतन वृद्धि की तुलना

शिक्षकों और सांसदों के वेतन वृद्धि की तुलना

भारत में शिक्षकों और सांसदों के वेतन की वृद्धि की दर में बहुत अंतर देखा गया है। सांसदों का वेतन तेजी से बढ़ा है, जबकि शिक्षकों के वेतन में वृद्धि धीमी और चरणबद्ध रही है।


1. शिक्षकों के वेतन का ऐतिहासिक परिदृश्य

(क) स्वतंत्रता के बाद (1950-1980)

  • 1950 में सरकारी प्राथमिक शिक्षकों का वेतन लगभग 100-150 रुपये प्रति माह था।

  • 1960-70 के दशक में यह बढ़कर 200-500 रुपये प्रति माह हो गया।

  • 1980 तक सरकारी शिक्षकों का वेतन 1,000 रुपये प्रति माह तक पहुँचा।

(ख) 1990 के बाद की वृद्धि

  • 1990 में शिक्षकों का वेतन 3,000-5,000 रुपये प्रति माह था।

  • 2000 तक यह 8,000-12,000 रुपये प्रति माह हुआ।

  • 2006 में छठे वेतन आयोग के तहत शिक्षकों का वेतन 15,000-25,000 रुपये प्रति माह तक बढ़ा।

(ग) 2016 के बाद – सातवाँ वेतन आयोग

  • 2016 में सातवें वेतन आयोग के बाद शिक्षकों का वेतन 35,000-50,000 रुपये प्रति माह तक हो गया।

  • प्रोफेसरों और उच्च शिक्षा संस्थानों के शिक्षकों का वेतन 1,00,000 रुपये प्रति माह तक पहुँच गया।


2. सांसदों के वेतन वृद्धि की तुलना

वर्ष शिक्षकों का वेतन (प्रारंभिक स्तर, रुपये/माह) सांसदों का वेतन (रुपये/माह)
1952 100-150 400
1970 200-500 750
1985 1,000 1,500
1993 3,000-5,000 4,000
2001 8,000-12,000 16,000
2006 15,000-25,000 50,000
2010 35,000-50,000 1,00,000

3. मुख्य अंतर और विश्लेषण

  1. सांसदों का वेतन वृद्धि शिक्षकों की तुलना में कई गुना अधिक रही है

    • 1952 से 2010 तक सांसदों का वेतन 250 गुना बढ़ा।

    • शिक्षकों का वेतन इसी अवधि में 500 गुना से अधिक बढ़ा, लेकिन यह अभी भी सांसदों की तुलना में कम है, क्योंकि शिक्षकों की संख्या बहुत अधिक होती है और हर स्तर (प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च शिक्षा) पर भिन्नता होती है।

  2. सांसदों को कई अतिरिक्त भत्ते मिलते हैं, जैसे—

    • यात्रा भत्ता, निवास, चिकित्सा सुविधाएँ, भत्ता इत्यादि, जिससे उनकी वास्तविक आय बहुत अधिक होती है।

    • शिक्षकों को भी कुछ सुविधाएँ मिलती हैं, लेकिन यह सांसदों की तुलना में बहुत सीमित होती हैं।

  3. नियुक्तियों और स्थिरता में अंतर

    • सांसदों का वेतन स्वयं संसद में तय होता है, जिससे वे अपनी वेतन वृद्धि आसानी से कर सकते हैं।

    • शिक्षकों की वेतन वृद्धि वेतन आयोग और सरकारी नीतियों पर निर्भर करती है, जो आमतौर पर 10-15 वर्षों में एक बार आती है।


4. निष्कर्ष

  • शिक्षकों का वेतन बढ़ा है, लेकिन सांसदों की तुलना में धीमी गति से

  • शिक्षकों की वेतन वृद्धि वेतन आयोगों के अनुसार होती है, जबकि सांसद अपने वेतन वृद्धि के लिए स्वयं कानून पारित कर सकते हैं

  • शिक्षकों की संख्या अधिक होने के कारण वेतन पर सरकारी व्यय अधिक होता है, जबकि सांसदों की संख्या सीमित होती है, लेकिन उनकी वेतन और भत्ते की लागत प्रति व्यक्ति अधिक होती है।

क्या किया जा सकता है?

  • शिक्षकों के वेतन सुधार के लिए अधिक पारदर्शी और नियमित वेतन वृद्धि प्रणाली लागू होनी चाहिए।

  • सांसदों की तरह शिक्षकों के लिए भी भत्तों और सुविधाओं में वृद्धि होनी चाहिए।

  • शिक्षकों की सामाजिक स्थिति को और बेहतर करने के लिए उनके वेतन और सुविधाओं में तेजी से वृद्धि की जानी चाहिए।


निष्कर्ष: सांसदों और शिक्षकों के वेतन वृद्धि की तुलना करें तो शिक्षकों का वेतन वृद्धि प्रक्रिया धीमी और जटिल रही है, जबकि सांसदों ने अपनी वृद्धि तेजी से और बार-बार सुनिश्चित की है।

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