संस्कृत श्लोक: "उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

 

संस्कृत श्लोक: "उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🌅 जय श्री राम! सुप्रभातम्! 🌅
आपने आज जो श्लोक प्रस्तुत किया है, वह बुद्धिमत्ता, संवेदनशीलता, और गहन विवेक की पराकाष्ठा को दर्शाता है। आइए इसका विस्तृत विश्लेषण करें।


श्लोक

उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते
हयाश्च नागाश्च वहन्ति देशिताः ।
अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः
परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः ॥


शाब्दिक विश्लेषण

  • उदीरितः – स्पष्ट रूप से कहा गया
  • अर्थः – अभिप्राय / वाक्य / बात
  • पशुना अपि – पशु द्वारा भी
  • गृह्यते – समझी जाती है
  • हयाः – घोड़े
  • नागाः – हाथी
  • वहन्ति – ढोते हैं / ले जाते हैं
  • देशिताः – सिखाए / निर्देशित किए गए
  • अनुक्तम् अपि – जो न कहा गया हो, वह भी
  • ऊहति – अनुमान करता है / समझता है
  • पण्डितः जनः – ज्ञानी मनुष्य
  • परेङ्गित-ज्ञान-फलाः – दूसरों के संकेतों के ज्ञान से उत्पन्न होने वाली
  • बुद्धयः – बुद्धियाँ / समझ

हिंदी भावार्थ

जो बात स्पष्ट रूप से कही जाती है, उसे तो पशु भी समझ लेते हैं। जैसे घोड़े और हाथी को यदि सही प्रकार से प्रशिक्षित किया जाए, तो वे भी आदेश का पालन करते हैं। परन्तु जो कहा ही न गया हो, उसे भी पण्डित (बुद्धिमान व्यक्ति) अपनी सूक्ष्म बुद्धि से समझ लेता है, क्योंकि उसकी बुद्धि दूसरों के इशारे और संकेतों को पढ़ने में सक्षम होती है।


व्याकरणिक पक्ष

  • यह श्लोक नीतिशतक या बौद्धिक श्रेष्ठता को चित्रित करने वाले श्लोकों में आता है।
  • "ऊहति" – लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन, परस्मैपदी, धातु – ऊह (अनुमान लगाना)
  • "परेङ्गितज्ञानफला" – समास : बहुव्रीहि समास; अर्थात वह बुद्धि जो पर के संकेत से उत्पन्न ज्ञान में फलीभूत हो।

भावात्मक पक्ष

  • केवल शब्दों को सुनना पर्याप्त नहीं, सार्थक श्रोता वही होता है जो अनकही बात भी समझ जाए।
  • ये श्लोक संवेदनशीलता, गहराई और अंतर्ज्ञान का मूल्य स्थापित करता है।
  • शिक्षण, संवाद, नेतृत्व—सभी क्षेत्रों में इस प्रकार की संकेत-बुद्धि आवश्यक है।

आधुनिक सन्दर्भ

  • शिक्षा क्षेत्र: एक अच्छा शिक्षक छात्र की चुप्पी में भी उसके मन का हाल पढ़ सकता है।
  • प्रबंधन: सफल नेतृत्वकर्ता अपने साथियों के कहे बिना भी उनकी समस्याएं और ज़रूरतें समझता है।
  • मानव संबंध: अच्छे रिश्ते वही होते हैं जहाँ भावनाओं को शब्दों की आवश्यकता नहीं होती।

श्लोक "उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते..." पर आधारित एक प्रेरक बाल कथा:


बाल कथा: "गूंगा हिरन और राजकुमार"

बहुत समय पहले की बात है। एक शांत वन में एक राजकुमार शिकार के लिए निकला। उसने देखा कि एक सुंदर हिरन उसकी ओर देख रहा है और फिर धीरे-धीरे भागने लगा। राजकुमार ने उसका पीछा किया लेकिन थोड़ी ही देर में वह रास्ता भटक गया।

अब राजकुमार थककर एक वृक्ष के नीचे बैठ गया। तभी वही हिरन फिर लौट आया। हिरन ने कुछ नहीं कहा, पर उसकी आंखों में एक विचित्र चमक थी। वह धीरे-धीरे चलने लगा और बार-बार पीछे मुड़कर राजकुमार को देखता। राजकुमार को कुछ समझ नहीं आया, पर उसने हिरन के संकेत को समझा और उसके पीछे चल पड़ा।

कुछ ही समय में वह एक छोटी सी झील के पास पहुँचा, जहाँ उसके सैनिक उसकी खोज में पहुँच चुके थे। वे सब बहुत खुश हुए।

राजकुमार ने मुस्कुराकर कहा:
"यह कोई साधारण हिरन नहीं था। इसने मेरे लिए शब्दों के बिना ही मार्गदर्शन किया।"

बुजुर्ग मंत्री ने कहा:
"राजन! यही तो बुद्धिमत्ता है – जहाँ शब्द न हों, वहाँ संकेतों से भी बात समझ लेना।"


सीख (Moral):

बुद्धिमान वही होता है जो अनकही बात को भी समझ जाए।
संकेतों की भाषा, मौन की गहराई और हृदय की संवेदना—इनमें भी ज्ञान छिपा होता है।




Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!