विस्तृत विश्लेषण Reciprocal tarriff: अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध, भारत की चुनौतियाँ और संभावित रणनीतियाँ

Sooraj Krishna Shastri
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विस्तृत विश्लेषण reciprocal tarriff: अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध, भारत की चुनौतियाँ और संभावित रणनीतियाँ
विस्तृत विश्लेषण Reciprocal tarriff: अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध, भारत की चुनौतियाँ और संभावित रणनीतियाँ


विस्तृत विश्लेषण Reciprocal tarriff: अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध, भारत की चुनौतियाँ और संभावित रणनीतियाँ


1. अमेरिका की टैरिफ नीति: पृष्ठभूमि और उद्देश्य

  • "अमेरिका फर्स्ट" नीति: डोनाल्ड ट्रंप ने 2016 में राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी उद्योगों को बचाने के लिए आयात शुल्क (टैरिफ) बढ़ाने की शुरुआत की।

  • मुख्य लक्ष्य:

    • चीन, यूरोप और भारत जैसे देशों से आने वाले सामान पर अधिक टैक्स लगाकर अमेरिकी उत्पादों को प्राथमिकता देना।

    • विदेशी कंपनियों को अमेरिका में फैक्ट्रियाँ लगाने के लिए प्रोत्साहित करना।

  • भारत पर प्रभाव:

    • अमेरिका ने भारतीय स्टील और एल्युमिनियम पर 25% और 10% टैरिफ लगाया।

    • हल्दी, बासमती चावल, हस्तशिल्प जैसे निर्यात प्रभावित हुए।

    • भारत ने 28 अमेरिकी उत्पादों (जैसे सेब, अखरोट) पर जवाबी टैरिफ लगाया।


2. चीन का प्रतिशोध: 84% टैरिफ और हुआवेई जैसी कंपनियों का उदय

  • जवाबी टैरिफ: चीन ने अमेरिकी सामान (सोयाबीन, कारों, विमानों) पर 84% तक टैरिफ लगाकर जवाब दिया।

  • तकनीकी युद्ध:

    • Huawei, ZTE, Xiaomi जैसी कंपनियों को बढ़ावा देकर 5G और सेमीकंडक्टर में आत्मनिर्भरता हासिल की।

    • अमेरिका ने Huawei पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन चीन ने अपने बाजार में Apple को चुनौती दी।

  • यूरोप और अन्य देशों का समर्थन:

    • यूरोपीय संघ ने अमेरिका पर 23 बिलियन डॉलर के टैरिफ की धमकी दी।

    • रूस, ईरान, तुर्की जैसे देश भी चीन के साथ खड़े हुए।


3. 1930 की महामंदी से सबक: क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?

  • स्मूट-हॉली टैरिफ एक्ट (1930):

    • अमेरिका ने 20,000 उत्पादों पर 20% टैरिफ लगाया, जिससे वैश्विक व्यापार 65% गिरा

    • नतीजा: 1929-33 की महामंदी, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 30% गिरावट

  • आज की स्थिति:

    • Goldman Sachs के अनुसार, 60% संभावना है कि 1930 जैसी मंदी फिर आ सकती है।

    • COVID-19 और सप्लाई चेन संकट ने स्थिति को और बिगाड़ा है।


4. भारत के लिए चुनौतियाँ और संभावित रणनीतियाँ

चुनौतियाँ:

  1. निर्यात घाटा: अमेरिका और चीन दोनों के साथ व्यापार प्रभावित।

  2. तकनीकी निर्भरता: सेमीकंडक्टर, फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में चीन पर निर्भरता।

  3. मुद्रा दबाव: डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट।

संभावित रणनीतियाँ:

  1. "आत्मनिर्भर भारत" को मजबूत करना:

    • PLI (Production Linked Incentive) योजना के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाओं और सौर ऊर्जा में निवेश।

    • स्वदेशी चिप निर्माण (Semiconductor Mission) को बढ़ावा।

  2. वैकल्पिक बाजारों की तलाश:

    • यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में निर्यात बढ़ाना।

    • RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) से बाहर रहकर चीन पर निर्भरता कम करना।

  3. अमेरिका और चीन के बीच संतुलन:

    • अमेरिका के साथ रक्षा और तकनीकी साझेदारी जारी रखना।

    • चीन के साथ सीमा विवाद को अलग रखकर व्यापारिक संबंध बनाए रखना।


5. निष्कर्ष: भारत को क्या करना चाहिए?

✅ घरेलू उद्योगों को मजबूत करें – "वोकल फॉर लोकल" को वास्तविकता बनाना होगा।
✅ वैश्विक गठजोड़ बनाएँ – यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) करें।
✅ तकनीकी शोध पर खर्च बढ़ाएँ – IITs और DRDO को AI, क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में आगे बढ़ाना होगा।
❌ किसी एक देश पर निर्भर न रहें – अमेरिका या चीन के बजाय बहुध्रुवीय विश्व (Multipolar World) में संतुलन बनाएँ।


अंतिम विचार:

"यह टैरिफ युद्ध सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक संघर्ष है। भारत को चालाकी से खेलना होगा – न तो अमेरिका का विरोध करना है, न ही चीन का गुलाम बनना है।"

📌 आपकी राय? क्या भारत को चीन के साथ मिलकर अमेरिका का विरोध करना चाहिए, या स्वतंत्र नीति अपनानी चाहिए? कमेंट में बताएँ!

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