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संस्कृत श्लोक: "सुहृदां हितकामानां यः शृणोति न भाषितम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "सुहृदां हितकामानां यः शृणोति न भाषितम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
🙏 जय श्री राम। सुप्रभातम्। यह अत्यंत प्रेरणादायक और नीति-सम्मत श्लोक है। आइए इसे श्लोक सहित विस्तृत रूप से प्रस्तुत करें :
श्लोक
सुहृदां हितकामानां यः शृणोति न भाषितम् ।
विपत् सन्निहिता तस्य स नरः शत्रुनन्दनः ॥
शाब्दिक अर्थ (पदविच्छेद और शब्दार्थ):
- सुहृदाम् – हितैषी मित्रों का (सप्तमी बहुवचन)
- हितकामानाम् – हित की इच्छा रखने वालों का (सप्तमी बहुवचन)
- यः – जो (पुरुषवाचक सर्वनाम)
- शृणोति – सुनता है (लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन, परस्मैपदी, √श्रु धातु)
- न – नहीं
- भाषितम् – कहा गया (वचन, उपदेश)
- विपत् – विपत्ति, संकट
- सन्निहिता – निकट स्थित, सन्निकट
- तस्य – उसके (संबंध वाचक सर्वनाम, षष्ठी एकवचन)
- सः – वह
- नरः – मनुष्य
- शत्रुनन्दनः – शत्रुओं को आनन्द देने वाला
भावार्थ (सरल हिन्दी में):
जो व्यक्ति अपने सच्चे मित्रों और हितचिंतकों की बातें नहीं सुनता, उनके उपदेशों को अनदेखा करता है, उसके लिए विपत्ति निकट आ जाती है। ऐसा व्यक्ति अपने शत्रुओं के लिए प्रसन्नता का कारण बन जाता है।
व्याकरणिक विश्लेषण:
- यह श्लोक एक न्यायोक्ति है, जिसमें उपमा अलंकार की छाया भी देखी जा सकती है।
- शृणोति – धातु √श्रु (सुनना), वर्तमान काल (लट्), परस्मैपदी।
- सन्निहिता – कृदन्त रूप, स्त्रीलिंग, विशेषण रूप में 'विपद्' के लिए प्रयुक्त।
- शत्रुनन्दनः – बहुव्रीहि समास (जो अपने शत्रुओं को प्रसन्न करे)।
- संपूर्ण श्लोक में कारण और परिणाम का संबंध व्याप्त है।
आधुनिक सन्दर्भ में विवेचना:
वर्तमान समय में, जब लोग आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं, वे अपने शुभचिंतकों की बातें अनसुनी कर देते हैं। चाहे वह परिवार हो, गुरु हो या मित्र – जब वे हमारी भलाई के लिए कोई सलाह देते हैं और हम अहंकार, अधीरता या अज्ञान के कारण उसे नहीं सुनते, तो हम स्वयं को संकट की ओर धकेलते हैं।
इस श्लोक का मर्म यह है कि विवेकशील व्यक्ति को दूसरों की शुभचिंतक सलाह को अवश्य सुनना और उस पर विचार करना चाहिए।
सांस्कृतिक-सामाजिक दृष्टिकोण से सन्देश:
- भारतीय परम्परा में गुरु, माता-पिता, और सच्चे मित्रों के उपदेश को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है।
- नीति शास्त्र, महाभारत, रामायण – सभी में यह स्पष्ट किया गया है कि जो दूसरों की बुद्धिमत्तापूर्ण सलाहों की उपेक्षा करता है, वह विनाश का भागी बनता है।
- यह श्लोक राजनीति, प्रबंधन, पारिवारिक जीवन, और विद्यार्थियों सभी के लिए एक अमूल्य नीति है।
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