संस्कृत श्लोक: "न चोत्पातनिमित्ताभ्यां न नक्षत्राङ्गविद्यया" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "न   चोत्पातनिमित्ताभ्यां  न  नक्षत्राङ्गविद्यया" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "न चोत्पातनिमित्ताभ्यां न नक्षत्राङ्गविद्यया" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "न   चोत्पातनिमित्ताभ्यां  न  नक्षत्राङ्गविद्यया" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🌞जय श्री राम! शुभ प्रभात!🌞
 प्रस्तुत श्लोक अत्यंत गहन और नीति-संगत है। आइए इसका विस्तार से विवेचन करें — श्लोक सहित हिन्दी अनुवाद, शाब्दिक विश्लेषण, व्याकरण, भावार्थ, एवं आधुनिक सन्दर्भ में:


श्लोक

न चोत्पातनिमित्ताभ्यां न नक्षत्राङ्गविद्यया ।
नानुशासनवादाभ्यां भिक्षां लिप्सेत कर्हिचित्॥


शाब्दिक अर्थ

  • – नहीं
  • – और भी नहीं
  • उत्पात-निमित्ताभ्यां – अशुभ घटनाओं या अपशकुनों के कारण से
  • नक्षत्राङ्गविद्यया – नक्षत्र (ज्योतिष) और अङ्गविद्या (हस्तरेखा/शरीर-लक्षण शास्त्र) द्वारा
  • अनुशासनवादाभ्यां – नियमों, आदेशों या शास्त्रीय आज्ञाओं के आधार पर
  • भिक्षां – भिक्षा (दान, सहायता)
  • लिप्सेत् – इच्छा करे / माँगे (लोट लकार, विधिलिङ्)
  • कर्हिचित् – कभी भी

व्याकरणिक विश्लेषण

  • लिप्सेत् – √लिप्स् (इच्छा) + लोट लकार (आज्ञार्थ/विध्यर्थ), प्र. पु. एकवचन
  • उत्पातनिमित्ताभ्यां, अनुशासनवादाभ्यां – तृतीया विभक्ति, द्विवचन
  • नक्षत्राङ्गविद्यया – तृतीया विभक्ति, एकवचन
  • भिक्षाम् – द्वितीया विभक्ति, एकवचन

हिन्दी भावार्थ

किसी को भी कभी भी किसी अशुभ घटना, अपशकुन, ज्योतिष अथवा हस्तरेखा-शास्त्र के आधार पर, अथवा किसी शास्त्रीय नियम या निर्णय के कारण कभी भी भिक्षा या दान की याचना नहीं करनी चाहिए


आधुनिक सन्दर्भ

यह श्लोक विशेष रूप से आज के उन संदर्भों में महत्वपूर्ण है, जहाँ:

  • लोग डर फैलाकर (उपाय, शनि-दोष, राहु-काल आदि बताकर) पैसे माँगते हैं।
  • ज्योतिष के नाम पर व्यापार करते हुए दान या भिक्षा की माँग करते हैं।
  • शास्त्रीय निर्देशों का भय दिखाकर जनसामान्य से दान करवाया जाता है।

यह नीति हमें सिखाती है कि शुचिता (ईमानदारी), आत्मनिर्भरता और विवेकपूर्ण आचरण ही ब्राह्मणत्व या सज्जनता के लक्षण हैं। दान माँगना भी एक शुद्ध प्रयोजन और मर्यादा में होनी चाहिए, ना कि अंधविश्वास या भय फैलाकर।


प्रेरणात्मक सन्देश

  • सच्चे आचार्य या साधु ज्ञान के आदान-प्रदान द्वारा जीवन निर्वाह करते हैं, न कि डर फैलाकर।
  • हमें समाज में धर्म के नाम पर भय या दोष-दर्शन से उत्पन्न याचनाओं से सजग रहना चाहिए।
  • शास्त्रों का उद्देश्य दिशा देना है, डराना नहीं।

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