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पर्यावरणपरक मुद्दे : स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण,मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण,अपशिष्ट,UGC NET/JRF,PAPER I,UNIT IX,POINT III |
यहाँ दिए गए विषय “पर्यावरणपरक मुद्दे : स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, अपशिष्ट (ठोस, तरल, बायो-मेडिकल, जोखिमपूर्ण, इलैक्ट्रानिक), जलवायु परिवर्तन और इसके सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक आयाम” पर एक विस्तृत, व्यवस्थित और परीक्षा उपयोगी लेख प्रस्तुत है:
पर्यावरणपरक मुद्दे : स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में
1. भूमिका:
पर्यावरण वह आधार है जिस पर जीवन की संपूर्ण व्यवस्था टिकी हुई है। आधुनिक विकास की अंधाधुंध दौड़ ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर पर्यावरण को संकट में डाल दिया है। इसके परिणामस्वरूप अनेक पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, जो स्थानीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्तर पर गंभीर प्रभाव डाल रही हैं।
2. प्रमुख पर्यावरणपरक मुद्दे
(i) वायु प्रदूषण:
- कारण: औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन धुआँ, जीवाश्म ईंधनों का उपयोग, पराली जलाना।
- प्रभाव: अस्थमा, कैंसर, हृदय रोग, अम्ल वर्षा, ओज़ोन परत क्षरण।
(ii) जल प्रदूषण:
- कारण: घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों का नदियों/झीलों में विसर्जन, कृषि रसायन।
- प्रभाव: पीने योग्य जल की कमी, जलीय जीवों का विनाश, संक्रामक रोग।
(iii) मृदा प्रदूषण:
- कारण: रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग, औद्योगिक अपशिष्ट।
- प्रभाव: भूमि की उर्वरता में कमी, खाद्य श्रृंखला में विषाक्तता।
(iv) ध्वनि प्रदूषण:
- कारण: वाहनों का शोर, औद्योगिक यंत्र, विवाह व धार्मिक आयोजनों का उच्च ध्वनि स्तर।
- प्रभाव: श्रवण शक्ति ह्रास, मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप।
3. अपशिष्ट प्रबंधन के विविध आयाम
(i) ठोस अपशिष्ट:
- घरेलू कचरा, प्लास्टिक, निर्माण सामग्री; निस्तारण के लिए लैंडफिल और रिसायक्लिंग आवश्यक।
(ii) तरल अपशिष्ट:
- नालों, कारखानों से बहने वाला जल; जल शुद्धिकरण संयंत्रों की आवश्यकता।
(iii) जैव-चिकित्सकीय (Bio-medical) अपशिष्ट:
- अस्पतालों से निकलने वाला खतरनाक कचरा; विशेष उपचार और पृथक्करण अनिवार्य।
(iv) जोखिमपूर्ण (Hazardous) अपशिष्ट:
- रासायनिक कारखानों से निकलने वाला विषाक्त अपशिष्ट; पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक।
(v) इलेक्ट्रॉनिक (E-waste) अपशिष्ट:
- मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी जैसे उपकरणों का कचरा; भारी धातुओं से युक्त होने के कारण विशेष प्रबंधन की आवश्यकता।
4. जलवायु परिवर्तन और इसके बहुआयामी प्रभाव
(i) कारण:
- ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि, जंगलों की कटाई, औद्योगिकीकरण, ऊर्जा की असंतुलित खपत।
(ii) प्रभाव:
- तापमान वृद्धि, ग्लेशियर पिघलना, समुद्र स्तर में वृद्धि, चरम मौसमी घटनाएँ (बाढ़, सूखा)।
5. सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक आयाम
(क) सामाजिक आयाम:
- जनस्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव, प्रवास (जलवायु शरणार्थी), जल व खाद्यान्न संकट।
(ख) आर्थिक आयाम:
- कृषि उत्पादन में गिरावट, आपदा प्रबंधन पर व्यय वृद्धि, ऊर्जा संकट, विकासशील देशों की आर्थिक असमानता।
(ग) राजनीतिक आयाम:
- वैश्विक जलवायु सम्मेलन (जैसे पेरिस समझौता), पर्यावरणीय न्याय की मांग, विकसित बनाम विकासशील देशों के बीच उत्तरदायित्व का विवाद।
6. समाधान के उपाय:
- स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग (सौर, पवन),
- जनजागरूकता अभियान,
- कठोर पर्यावरणीय कानूनों का अनुपालन,
- 3R (Reduce, Reuse, Recycle) नीति का प्रसार,
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं दायित्व का संतुलन।
7. उपसंहार:
पर्यावरण संरक्षण आज केवल वैज्ञानिक या नीति का विषय नहीं है, यह मानवता के अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न बन चुका है। यदि हम स्थानीय स्तर से लेकर वैश्विक स्तर तक समन्वित प्रयास करें तो पर्यावरणीय संकटों से न केवल निपटा जा सकता है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ, सुरक्षित व संतुलित पर्यावरण सुनिश्चित किया जा सकता है।
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