मानव और पर्यावरण संव्यवहार: नृजातीय क्रियाकलाप और पर्यावरण पर उनके प्रभाव, UGC NET/JRF,PAPER I,UNIT IX,POINT II,भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री
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मानव और पर्यावरण संव्यवहार: नृजातीय क्रियाकलाप और पर्यावरण पर उनके प्रभाव, UGC NET/JRF,PAPER I,UNIT IX,POINT II,भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री |
मानव और पर्यावरण संव्यवहार: नृजातीय क्रियाकलाप और पर्यावरण पर उनके प्रभाव
1. भूमिका (Introduction)
मानव और पर्यावरण का संबंध आदिकाल से ही परस्पर आश्रित और संवादात्मक रहा है। मानव समाज की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संरचनाएँ पर्यावरण से गहराई से प्रभावित होती रही हैं, वहीं दूसरी ओर मानव की नृजातीय (ethnic) गतिविधियाँ पर्यावरणीय स्वरूप और संतुलन पर दूरगामी प्रभाव डालती रही हैं। इस अध्ययन में हम मानव समाज के नृजातीय क्रियाकलापों और उनके पर्यावरण पर प्रभाव का बहुआयामी विश्लेषण करेंगे।
2. नृजातीय क्रियाकलापों की परिभाषा और प्रकृति
नृजातीय क्रियाकलाप वे सांस्कृतिक, धार्मिक, पारंपरिक तथा सामाजिक व्यवहार हैं जो किसी विशेष मानव समूह या जातीय समुदाय द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी किए जाते हैं। इन क्रियाकलापों में शामिल होते हैं:
- पारंपरिक कृषि प्रणालियाँ
- वनों का दोहन
- पशुपालन व शिकारी जीवन
- जल स्रोतों का उपयोग
- आवासीय और धार्मिक स्थानों का निर्माण
- जीवन-यापन के लिए संसाधनों का संग्रह
3. पर्यावरण पर नृजातीय क्रियाकलापों का प्रभाव
(क) सकारात्मक प्रभाव
- स्थायी जीवन शैली: कई आदिवासी और नृजातीय समुदाय पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखते हुए जीवन-निर्वाह करते हैं।
- परंपरागत पारिस्थितिकी ज्ञान: औषधीय पौधों, जैव विविधता, जलवायु आदि का गहरा ज्ञान।
- प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण दोहन: उदाहरण – झूम खेती, वनों से चुनिंदा संग्रह।
- पुनर्संवेदनशीलता (Resilience): जलवायु परिवर्तन या आपदाओं में पारंपरिक समुदायों की अनुकूलन क्षमता अधिक होती है।
(ख) नकारात्मक प्रभाव (विशेषकर जनसंख्या वृद्धि और वैश्वीकरण के संदर्भ में)
- वनों की अत्यधिक कटाई
- वन्य जीवों का शिकार और जैव विविधता की हानि
- भूमि क्षरण और जल स्रोतों का अत्यधिक दोहन
- धार्मिक आयोजनों में जल व वायु प्रदूषण
- प्लास्टिक और आधुनिक कचरे की मात्रा में वृद्धि (परंपरागत क्रियाओं में आधुनिक साधनों की घुसपैठ)
4. अध्ययन के विविध पहलू
(i) भौगोलिक दृष्टिकोण से
- पर्वतीय क्षेत्रों में झूम कृषि और उसकी पारिस्थितिकी पर प्रभाव
- मरुस्थलीय समुदायों द्वारा जल संरक्षण की पद्धतियाँ
- तटीय समुदायों का समुद्री संसाधनों पर आश्रय
(ii) सांस्कृतिक दृष्टिकोण से
- पारंपरिक पर्वों में प्रकृति पूजन की संस्कृति
- प्रकृति संरक्षण से जुड़े लोक विश्वास
(iii) आर्थिक दृष्टिकोण से
- पर्यावरणीय संसाधनों पर आधारित जीविका
- बाजारवाद और उपभोक्तावाद के कारण परंपरागत संतुलन का टूटना
5. वैश्वीकरण और नृजातीय पर्यावरण संबंध
वैश्वीकरण ने नृजातीय समाजों की पारंपरिक जीवनशैली पर गहरा प्रभाव डाला है।
- आधुनिक कृषि व औद्योगिकरण से पारंपरिक ज्ञान का ह्रास
- पर्यटन के कारण स्थानीय पारिस्थितिकी पर दबाव
- नृजातीय समुदायों का विस्थापन और सांस्कृतिक क्षरण
6. संरक्षण और पुनर्स्थापन की दिशा में प्रयास
- पर्यावरणीय शिक्षा और जागरूकता
- पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित कर नीति में समावेश
- स्थानीय समुदायों को पर्यावरण प्रबंधन में सहभागी बनाना
- सतत विकास लक्ष्य (SDGs) के अंतर्गत सांस्कृतिक विविधता और पारिस्थितिक संतुलन पर बल
7. निष्कर्ष (Conclusion)
नृजातीय समुदायों की पारंपरिक जीवनशैली और पर्यावरण के साथ उनका संतुलित संबंध हमारे लिए सतत विकास की प्रेरणा है। तथापि, जब ये क्रियाकलाप जनसंख्या वृद्धि, तकनीकी हस्तक्षेप या बाज़ार-चालित होते हैं, तो वे पर्यावरणीय संकट को जन्म दे सकते हैं। आवश्यक है कि हम नृजातीय ज्ञान का सम्मान करते हुए उसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संयोजित करें और पर्यावरण संरक्षण की ओर बढ़ें।
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