संस्कृत श्लोक: "मनस्वी म्रियते कामं कार्पण्यं न तु गच्छति" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
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संस्कृत श्लोक: "मनस्वी म्रियते कामं कार्पण्यं न तु गच्छति" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
स्पष्ट और प्रेरणास्पद अद्भुत नीति-श्लोक —
मनस्वी म्रियते कामं कार्पण्यं न तु गच्छति ।अपि निर्वाणमायाति नानलो याति शीतताम् ॥
इसका हम निम्नलिखित क्रम में गहराई से विश्लेषण करें:
🪔 1. शुद्ध हिन्दी अनुवाद:
"स्वाभिमानी व्यक्ति इच्छा से मर सकता है, पर कभी भी हीनता की ओर नहीं झुकता। जैसे अग्नि बुझ सकती है, पर वह कभी शीतल नहीं हो सकती।"
📘 2. शाब्दिक विश्लेषण:
पद | शब्दार्थ |
---|---|
मनस्वी | स्वाभिमानी, आत्मबल से युक्त, दृढ़चित्त |
म्रियते | मरता है, प्राण त्यागता है |
कामम् | इच्छा से, स्वेच्छा से |
कार्पण्यं | हीनता, कायरता, आत्मगौरव का त्याग |
न तु गच्छति | किंतु नहीं जाता/प्रवृत्त होता |
अपि | भी |
निर्वाणम् | बुझना, समाप्त हो जाना |
आयाति | प्राप्त करता है |
न | नहीं |
अनलः | अग्नि |
याति | जाती है, प्राप्त करती है |
शीतताम् | शीतलता, ठंडक |
🧠 3. व्याकरणिक विश्लेषण:
- मनस्वी — प्रथम पुरुष, एकवचन, पुल्लिङ्ग, विशेषण (कर्मवाच्य वाक्य में कर्ता)
- म्रियते — धातु: मृ (मरना), आत्मनेपदी, लट् लकार, प्रथम पुरुष एकवचन
- कामं — क्रियाविशेषण रूप में प्रयुक्त (इच्छा से), सप्तमी विभक्ति, नपुंसकलिङ्ग
- कार्पण्यं — नपुंसकलिंग, एकवचन, द्वितीया विभक्ति
- गच्छति — धातु: गम् (जाना), परस्मैपदी, लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- अनलः — अग्नि, प्रथमा विभक्ति, एकवचन, पुल्लिंग
- शीतताम् — शीत (ठंडा) + ताच् प्रत्यय (भाववाचक), स्त्रीलिंग, द्वितीया विभक्ति
💡 4. भावार्थ:
यह श्लोक आत्मसम्मान और स्वाभिमान के उच्चतम आदर्श को प्रतिपादित करता है। मनस्वी अर्थात् जो आत्मबोध, आत्मबल और आत्मगौरव से युक्त होता है — वह कभी भी परिस्थितियों के आगे आत्मसमर्पण नहीं करता।
वह जीवन से हार सकता है, किंतु अपने आत्मसम्मान को नहीं त्यागता। जैसे अग्नि बुझ सकती है (निर्वाण), पर वह शीतल (ठंडी) नहीं हो सकती — उसका स्वभाव ही उष्णता है। इसी प्रकार मनस्वी का स्वभाव सम्मान और धैर्य है।
🌍 5. आधुनिक सन्दर्भ में विवेचना:
🔸 a. व्यक्तित्व विकास में
यह श्लोक युवाओं को सिखाता है कि आत्मसम्मान का अर्थ घमण्ड नहीं, बल्कि स्वयं के मूल्यों को न खोना है। आज की प्रतियोगी दुनिया में जहाँ समझौता और अवसरवादिता को बुद्धिमत्ता माना जाता है, वहीं यह श्लोक हमें ‘नैतिक रीढ़’ का महत्व समझाता है।
🔸 b. प्रशासनिक और राजनीतिक संदर्भ में
एक सच्चे नेता या अधिकारी वही होता है जो अपने मूल्य और सिद्धांतों को बनाए रखे। चापलूसी या भ्रष्टाचार में गिरकर कोई दीर्घकालिक नेतृत्व नहीं कर सकता। मनस्वी अधिकारी परिस्थितियों से समझौता नहीं करता, अपितु उन्हें अपने अनुसार मोड़ता है।
🔸 c. स्त्री-शक्ति के परिप्रेक्ष्य में
इतिहास में झाँकें — झाँसी की रानी, रजिया सुल्तान, इंदिरा गांधी — सभी ने इस श्लोक के आदर्शों को जिया। कठिनाइयों में झुकीं नहीं, पर अपना आदर्श बनाए रखा।
🔸 d. शिक्षा एवं विद्यार्थियों के लिए
छात्रों के लिए यह प्रेरणा है कि परीक्षा, प्रतिस्पर्धा, असफलता से घबराकर मूल्यों से समझौता न करें। पेपर कठिन हो सकता है, लेकिन चरित्र सरल और निष्कलंक रहना चाहिए।
🪔 6. दृष्टांत/प्रसंग:
🏁 7. निष्कर्ष:
यह श्लोक हमें एक महान जीवन सूत्र देता है —
"सम्मानपूर्ण मृत्यु, अपमानजनक जीवन से श्रेष्ठ है।""परिस्थिति बुझा सकती है, पर मन की अग्नि नहीं।"
📜 संवादात्मक नीति-कथा
🪔 पात्रः
- गुरु वाचस्पति – ज्ञानी, गंभीर व स्वाभिमानी गुरु
- चातक – युवा शिष्य, विचारशील व जिज्ञासु
- विक्रम – धैर्यवान किंतु संघर्षरत
- मालव – संदेहशील, व्यावहारिक दृष्टिकोण वाला
🏞️ प्रारंभ – गुरुकुल का आंगन
(गुरुजी शिष्यों को नीति का पाठ पढ़ा रहे हैं।)
🔥 नीति-दृष्टांत
🌟 निष्कर्ष संवाद
🧠 सारांश व शिक्षण बिंदु:
- आत्मसम्मान ही आत्मा का तेज है।
- स्वाभिमान को बचाना ही असली ‘धर्म’ है।
- आग बुझ सकती है, पर कभी ठंडी नहीं होती — यह अग्नि मनस्विता की प्रतीक है।