ज्यामिति का इतिहास : भारतीय परिप्रेक्ष्य में (History of Geometry in the Indian Context)

Sooraj Krishna Shastri
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ज्यामिति का इतिहास : भारतीय परिप्रेक्ष्य में (History of Geometry in the Indian Context)
ज्यामिति का इतिहास : भारतीय परिप्रेक्ष्य में (History of Geometry in the Indian Context)


 📐 ज्यामिति का इतिहास : भारतीय परिप्रेक्ष्य में (History of Geometry in the Indian Context)


🔷 प्रस्तावना:

ज्यामिति (Geometry) का विकास केवल पश्चिम में ही नहीं, बल्कि प्राचीन भारत में भी अत्यंत समृद्ध और मौलिक रूप में हुआ। भारतीय ज्यामिति का मूल वैदिक युग में है, जहाँ यह यज्ञ, वास्तुशास्त्र, छाया-गणित, खगोलशास्त्र आदि से गहराई से जुड़ी थी। भारत ने न केवल आकारों की संरचना, बल्कि बीजगणितीय रूपांतरणों, अनुपात, और कोणमापन में भी महान योगदान दिया।


🇮🇳 भारतीय ज्यामिति का इतिहास – कालानुक्रमिक रूप में:

🕉️ 1. वैदिक काल (1500–500 BCE): यज्ञ और रेखागणित

  • शुल्ब सूत्र (Shulba Sutras) — विशेषकर बौधायन, आपस्तम्ब, कात्यायन, मानव आदि ऋषियों द्वारा रचित।

  • ये सूत्र यज्ञवेदियों के निर्माण हेतु विविध आकृतियों (वर्ग, आयत, वृत्त, समचतुर्भुज, समकोण त्रिभुज आदि) की माप और रूपांतरण की विधियाँ बताते हैं।

✨ उल्लेखनीय तथ्य:

  • बौधायन शुल्बसूत्र में पाइथागोरस प्रमेय का उल्लेख

    "दीर्घचतुरश्रस्याक्षणया रज्जुः पार्श्वमानी तिर्यग्मानी च यत् पृथग्भूते कुरुतः तदुभयं करोति।"
    🔁 (समकोण त्रिभुज में कर्ण का वर्ग = आधार² + लम्ब²)

  • वृत्त और वर्ग के क्षेत्रफल को समान करने की विधियाँ (क्वाड्रेटर ऑफ सर्कल)


📏 2. उत्तरवैदिक और जैन परंपरा (500 BCE – 200 CE):

  • जैन गणितज्ञों ने ज्यामिति को और अधिक विकसित किया।

  • वे घन, बेलन, पिरामिड, गोला जैसी त्रिविम आकृतियों की परिमिति, क्षेत्रफल और आयतन की गणना करते थे।

  • उन्होंने π (पाई) का मान 3.162 तक अनुमानित किया।


📚 3. सिद्धान्त काल (200 – 1200 CE): खगोल-ज्यामिति और त्रिकोणमिति

  • आर्यभट (5वीं सदी)
    ▸ त्रिकोणमिति की नींव रखी – “ज्या”, “कोटिज्या”, “उत्क्रमज्या” जैसे शब्दों का प्रयोग।
    ▸ चाप और जीवा (Chord and Sine) के संबंधों का वर्णन।
    ▸ वृत्त की परिधि = 
    2πr2\pi r
    जैसा समीकरण अनुमानित।

  • वराहमिहिर (6वीं सदी)
    'बृहत्संहिता' में वास्तु, मण्डल योजना, दिशा-निर्धारण, कोणों की गणना।

  • भास्कराचार्य (12वीं सदी)
    ▸ ‘लीलावती’ और ‘सिद्धान्तशिरोमणि’ में क्षेत्रमिति, त्रिकोणमिति, गति और छाया की ज्यामिति।
    ▸ वृत्त, त्रिभुज, चतुर्भुज की विस्तृत ज्यामितीय व्याख्या।


🧱 4. वास्तुशास्त्र और स्थापत्य कला में ज्यामिति का प्रयोग

  • भारतीय मंदिर निर्माण, यज्ञशालाएं, वेदियाँ, नगर नियोजन आदि सख्त ज्यामितीय नियमों पर आधारित रहे हैं।

  • मंडल, यंत्र, और श्रीचक्र जैसी संरचनाएँ गहन ज्यामिति और प्रतीकवाद की उदाहरण हैं।


🔍 भारतीय ज्यामिति की विशेषताएँ:

विशेषता विवरण
आध्यात्मिक दृष्टिकोण आकृतियाँ केवल मापन की वस्तुएँ नहीं, बल्कि दिव्य एवं ब्रह्मांडीय प्रतीक थीं।
कार्यात्मक उपयोगिता यज्ञ, खगोलशास्त्र, भवन निर्माण आदि में प्रत्यक्ष उपयोग।
मौलिक सोच सूत्रों, प्रमेयों और सृजनात्मक पुनर्रचना की परंपरा थी।

🌍 तुलना में भारत का योगदान:

क्षेत्र भारत यूनान
प्रमेय पहले मौखिक सूत्र रूप में बाद में सिद्धांतिक रूप
व्यावहारिकता यज्ञ-वेदियों, वास्तु, खगोलशास्त्र में दर्शन और प्रमाण-आधारित
त्रिकोणमिति आर्यभट से पूर्व संकेत यूक्लिड के बाद विकसित

📘 निष्कर्ष:

भारतीय ज्यामिति केवल गणना नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन थी। यह आध्यात्मिकता, विज्ञान और कला का संगम रही है। आधुनिक गणित की कई नींव प्राचीन भारत में रखी गई थीं, जिन्हें अब वैश्विक मान्यता मिल रही है।



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