ग्रहों की तात्कालिक (स्थानिक) मैत्री

Sooraj Krishna Shastri
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 आइए आज हम "ग्रहों की तात्कालिक मैत्री" को श्लोक, व्याख्या, सारणी (Chart) और उदाहरण सहित समझते हैं:


🌟 ग्रहों की तात्कालिक (स्थानिक) मैत्री

(Tātkālik Maitrī / Temporary Planetary Friendship)

ग्रहों की तात्कालिक (स्थानिक) मैत्री
ग्रहों की तात्कालिक (स्थानिक) मैत्री



📜 श्लोक – बृहज्जातक से

दशाय बन्धुसहज स्वान्त्यस्थास्ते परस्परम्‌ ।
तत्काले सुद्ददोष्न्यत्र संस्थिता: रिपवो मताः ॥५९॥


🧾 हिन्दी भावार्थ:

यदि कोई ग्रह किसी राशि में स्थित हो, तो उस राशि से 2वें (धन), 3वें (सहज), 4वें (सुख), 10वें (कर्म), 11वें (लाभ) और 12वें (व्यय) भाव में स्थित अन्य ग्रह उसके तात्कालिक मित्र कहलाते हैं।
बाकी भावों (1, 5, 6, 7, 8, 9) में स्थित ग्रह तात्कालिक शत्रु कहलाते हैं।


🧮 तात्कालिक मैत्री सारणी (Chart):

ग्रह A भाव में ग्रह B स्थित हो (ग्रह A से) संबंध
कोई भी ग्रह 2 (धन), 3 (सहज), 4 (सुख) तात्कालिक मित्र
10 (कर्म), 11 (लाभ), 12 (व्यय) तात्कालिक मित्र
1 (स्व), 5 (बुद्धि), 6 (ऋण), 7 (जाया), 8 (आयु), 9 (धर्म) तात्कालिक शत्रु
उसी भाव में स्थित ग्रह तात्कालिक शत्रु

🔍 उदाहरण:

मान लीजिए सूर्य कर्क राशि में है और चंद्रमा तुला में (यानी सूर्य से 4वें भाव में)।
👉 तुला, कर्क से 4वां भाव है, अतः चंद्रमा सूर्य का तात्कालिक मित्र कहलाएगा।

यदि मंगल वृश्चिक राशि में है (कर्क से 5वां भाव)
👉 मंगल तात्कालिक शत्रु होगा।


🔁 तात्कालिक और नैसर्गिक मैत्री का अंतर:

प्रकार आधार स्थायित्व उदाहरण
नैसर्गिक मैत्री ग्रहों की मूल प्रकृति स्थायी सूर्य-बुध मित्र
तात्कालिक मैत्री कुंडली में ग्रहों की स्थिति अस्थायी भावानुसार तय

🔄 समन्वित (पंचधा) मैत्री:

नैसर्गिक + तात्कालिक मैत्री का योग करके "समन्वित मैत्री" निकाली जाती है:
🔹 मित्र + मित्र = परम मित्र
🔹 मित्र + शत्रु = सम
🔹 शत्रु + शत्रु = परम शत्रु


📌 निष्कर्ष:

  • तात्कालिक मैत्री फलादेश में ग्रहों के क्षणिक प्रभाव को दर्शाती है।
  • यह कुंडली में ग्रहों की भावगत स्थिति से बनती है।
  • ज्योतिषीय निर्णय में इसे नैसर्गिक मैत्री के साथ मिलाकर पढ़ना चाहिए।

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