प्रस्तुत श्लोक “पंचधा मैत्री” (पाँच प्रकार की ग्रह मैत्री) का यह विचार ज्योतिषीय फल निर्णय में अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइए इसे व्यवस्थित रूप में श्लोक, शुद्ध अनुवाद, सारणी और उदाहरण सहित समझते हैं:
🌟 ज्योतिष शास्त्र में पंचधा मैत्री (पाँच प्रकार की ग्रह मैत्री)
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ज्योतिष शास्त्र में पंचधा मैत्री (पाँच प्रकार की ग्रह मैत्री) |
📜 श्लोक – बृहज्जातक
तत्काले च निसर्गे च मित्र स्यादधिमित्रकम् ।मित्र मित्रसमत्वेतु शत्रुः शत्रुसमत्वके ॥६०॥
समो मित्ररिपुत्वे तृभयत्राधिरिपू रिपौ ।एवं विविच्य दैवज्ञो जातकस्य फलं वदेत् ॥६१॥
🧾 शब्दार्थ और हिन्दी भावार्थ:
- तत्काले = तात्कालिक (स्थानीय) मैत्री
- निसर्गे = नैसर्गिक (स्वाभाविक) मैत्री
- मित्र = मित्र
- अधिमित्र = परम मित्र (Atimitra)
- शत्रु = शत्रु
- अधिशत्रु = परम शत्रु (Atishatru)
- समत्वे = सम (neutral)
📖 भावार्थ:
- जब कोई ग्रह तात्कालिक (तात्कालिक भाव स्थिति) और नैसर्गिक (स्वभावजन्य) दोनों प्रकार से मित्र हो, तो वह ग्रह परम मित्र (अधिमित्र) कहलाता है।
- जब दोनों प्रकार से शत्रु हो, तो वह परम शत्रु (अधिशत्रु) कहलाता है।
- यदि किसी एक स्थान पर मित्र व दूसरे स्थान पर सम हो तो मित्र,
- एक स्थान पर शत्रु व दूसरे पर सम हो तो शत्रु,
- एक स्थान पर मित्र और दूसरे स्थान पर शत्रु हो तो सम कहलाता है।
📊 पंचधा मैत्री सारणी:
नैसर्गिक मैत्री | तात्कालिक मैत्री | पंचधा मैत्री का प्रकार |
---|---|---|
मित्र | मित्र | परम मित्र (अधिमित्र) |
मित्र | सम | मित्र |
मित्र | शत्रु | सम |
सम | मित्र | मित्र |
सम | सम | सम |
सम | शत्रु | शत्रु |
शत्रु | मित्र | सम |
शत्रु | सम | शत्रु |
शत्रु | शत्रु | परम शत्रु (अधिशत्रु) |
🔍 उदाहरण:
मान लीजिए –
- सूर्य और मंगल – नैसर्गिक रूप से मित्र हैं
- यदि कुंडली में सूर्य से मंगल तीसरे भाव में बैठा है, तो वह तात्कालिक मित्र भी होगा।
🔹 अतः परम मित्र (अधिमित्र) कहलाएगा।
अब मानिए –
- सूर्य और शनि – नैसर्गिक रूप से शत्रु हैं
- यदि कुंडली में शनि, सूर्य से 7वें भाव में बैठा है, तो वह तात्कालिक शत्रु भी होगा।
🔸 अतः परम शत्रु (अधिशत्रु) कहलाएगा।
🧠 नोट:
- यह पाँचवाँ स्तर “पंचधा मैत्री” वास्तव में फलनिर्णय में निर्णायक भूमिका निभाता है।
- केवल नैसर्गिक मैत्री देखकर निर्णय करना पूर्ण नहीं होता, इसलिए यह समन्वित विचार आवश्यक है।
📌 निष्कर्ष:
मैत्री प्रकार | फल प्रभाव |
---|---|
परम मित्र | पूर्ण शुभता, सहकारिता |
मित्र | मध्यम शुभता |
सम | उदासीन, न निषेध न सहयोग |
शत्रु | मध्यम दोष |
परम शत्रु | पूर्ण विरोध, विघ्न, विपत्ति |