संस्कृत श्लोक: "यस्य धर्मविहीनानि दिनान्यायान्ति यान्ति च" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "यस्य धर्मविहीनानि दिनान्यायान्ति यान्ति च" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत श्लोक मानव जीवन के मूल उद्देश्य और धर्मप्रधान जीवन की अनिवार्यता को अत्यंत प्रभावशाली रूपक के माध्यम से स्पष्ट करता है।
संस्कृत श्लोक: "यस्य धर्मविहीनानि दिनान्यायान्ति यान्ति च" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "यस्य धर्मविहीनानि दिनान्यायान्ति यान्ति च" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद



श्लोक

यस्य धर्मविहीनानि दिनान्यायान्ति यान्ति च ।
स लोहारभस्त्रीव श्वसन्नपि न जीवति ॥


🪔 शब्दार्थ / व्याकरणीय विश्लेषण:

पद अर्थ व्याकरणिक विवरण
यस्य जिसके सम्बंधबोधक सर्वनाम, षष्ठी एकवचन
धर्मविहीनानि धर्म से रहित तद्वितीय समास (धर्म + विहीन), नपुंसकलिंग, बहुवचन
दिनानि दिन नपुंसकलिंग, बहुवचन, कर्ता
आयान्ति यान्ति च आते हैं और चले जाते हैं धातु – (गमन), लट् लकार, प्रथमा पुरुष बहुवचन
सः वह पुल्लिंग, प्रथमा
लोहारभस्त्रीव लोहार की भाँति भष्ट्रा (धौंकनी) के समान उपमा विभक्ति (तृतीया + “इव”)
श्वसन् साँस लेते हुए वर्तमान कृदन्त (present participle), “श्वस्” धातु से
अपि भी अव्यय
न जीवति नहीं जीता धातु – जिव्, लट् लकार, प्र. पु. एकवचन

🔍 भावार्थ:

जिस व्यक्ति के दिन धर्म (कर्तव्य, सदाचार, सत्य, सेवा) से रहित होकर केवल आते-जाते रहते हैं, वह व्यक्ति लोहार की धौंकनी की तरह केवल साँस तो लेता है पर वास्तव में "जीवित" नहीं कहलाता।


🌿 प्रेरणादायक कथा: “धौंकनी का जीवन” 🌿

एक दिन एक वृद्ध संत नगर के बाजार से निकल रहे थे। वहाँ एक लोहार लोहा पीट रहा था, और उसकी भष्ट्रा (धौंकनी) निरंतर चल रही थी — वह "श्वास" ले रही थी पर उसमें "जीवन" नहीं था।

संत के साथ एक युवक था। उसने पूछा,

“गुरुदेव! क्या धौंकनी भी जीवित है?”

संत बोले:

“बेटा, यही प्रश्न तुम खुद से पूछो —
यदि कोई व्यक्ति दिन-रात केवल खा-पीकर, सांस लेकर, संसार में घूमकर भी धर्म का कोई कार्य नहीं करता,
तो वह इस धौंकनी की तरह ही है — साँस लेता है पर वास्तव में जीता नहीं।

युवक ने पूछा:

“तो फिर जीवन किसे कहते हैं?”

संत मुस्कराकर बोले:

जो परहित में जिए, सत्य बोले, सेवा करे, धर्म का आचरण करे — वही जीवित है। शेष तो शरीर मात्र हैं जो श्वास लेते हैं, पर आत्मा सोई रहती है।”

उस दिन के बाद वह युवक ब्रह्ममुहूर्त में उठता, दीनों की सेवा करता, और अपना हर दिन धर्मपूर्ण कार्य में लगाता।
वह एक दिन समाज का प्रकाश बना।


🌟 शिक्षा / प्रेरणा:

  • जीवन केवल श्वास लेने का नाम नहीं, धर्ममय आचरण ही जीवन की सार्थकता है।
  • धौंकनी सांस लेती है पर कोई मूल्य नहीं देती। मनुष्य को अपना हर दिन मूल्यवान बनाना चाहिए।
  • धर्म का अर्थ केवल पूजा नहीं — सत्य, दया, सेवा, संयम, और सत्कर्म भी धर्म हैं।

🌸 आज का चिंतन वाक्य:

“प्रत्येक दिन को धर्ममय बना दो —
वही दिन तुम्हें जीवन में अमर बना देगा।”

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