संस्कृत श्लोक "कुशो यथा दुर्गृहीतो हस्तमेवानुकृन्तति" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक "कुशो यथा दुर्गृहीतो हस्तमेवानुकृन्तति" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

🌞 🙏 जय श्रीराम 🌹 सुप्रभातम् 🙏

 आज का श्लोक अत्यंत गंभीर चेतावनी से युक्त है — यह वैराग्य और तपस्विता के बाह्य आवरण को आंतरिक समझ और अभ्यास के बिना अपनाने के ख़तरों को उजागर करता है। यह श्लोक किसी भी गंभीर मार्ग को अपनाने से पहले विवेकपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल देता है।

संस्कृत श्लोक "कुशो यथा दुर्गृहीतो हस्तमेवानुकृन्तति" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "कुशो यथा दुर्गृहीतो हस्तमेवानुकृन्तति" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 



श्लोक

कुशो यथा दुर्गृहीतो हस्तमेवानुकृन्तति।
श्रामण्यं दुष्परामृष्टं निरयायोपकर्षति॥

kuśo yathā durgṛhīto hastam evānukṛntati ।
śrāmaṇyaṁ duṣparāmṛṣṭaṁ nirayāyopakārṣati ॥


🔍 शब्दार्थ व व्याकरणीय विश्लेषण:

पद अर्थ व्याकरणिक टिप्पणी
कुशः कुश घास (दर्भा) पुल्लिंग
यथा जैसे उपमा
दुर्गृहीतः ठीक से न पकड़ा गया “दुर्” + “गृहीतः” (धातु: ग्रह्, कृत्य प्रयोग)
हस्तम् एव हाथ को ही द्वितीया एकवचन
अनुकृन्तति काटता है लट् लकार
श्रामण्यं संन्यास / श्रमण जीवन नपुंसकलिंग
दुष्परामृष्टं बिना विचार के छुआ गया / अपनाया गया “दुष्” + “परामृष्ट” (अविवेचित रूप से ग्रहण)
निरयाय नरक के लिए चतुर्थी विभक्ति
उपकर्षति खींचता है लट् लकार

🪷 भावार्थ:

"जैसे यदि कुशा (दर्भा) को गलत ढंग से पकड़ा जाए तो वह हाथ को ही काट लेती है,
उसी प्रकार श्रमण जीवन (साधु या संन्यासी जीवन) को बिना विवेकपूर्वक अपनाना
व्यक्ति को नरक की ओर खींच ले जाता है।"


🌿 प्रेरणादायक दृष्टांत: “बाह्य वैराग्य बनाम आंतरिक साधना” 🌿

प्राचीन काल में एक युवक ने एक महान तपस्वी को देखकर संन्यास लेने का निश्चय कर लिया।
उसने घर त्याग दिया, वस्त्र बदल दिए, परंतु उसका मन वासना, क्रोध, अहंकार और लोभ से भरा रहा।

कुछ ही वर्षों में वह क्रूर, लोभी और ढोंगी कहलाया। जब उसने अपने गुरु से कारण पूछा, उन्होंने कहा:

"बेटा, तपस्विता केवल वस्त्रों से नहीं आती
जैसे दर्भा को गलत तरीके से पकड़ने पर वह हाथ को काटती है,
वैसे ही **वैराग्य को बिना आत्मविचार के अपनाना आत्मविनाश का कारण बनता है।"

संन्यास त्याग नहीं, आत्मदर्शन है।


🌟 शिक्षा / प्रेरणा:

  • सत्य मार्ग पर चलने से पहले उसकी गहराई को समझना आवश्यक है।
  • बाह्य आचरण की नकल बिना अंतरात्मा की समझ के घातक हो सकती है।
  • प्रत्येक आध्यात्मिक निर्णय विवेक और गुरु-मार्गदर्शन से ही होना चाहिए।
  • श्रमणत्व एक मानसिक परिपक्वता है, केवल भिक्षा-पात्र और गेरुए वस्त्र नहीं।

🕯️ मनन योग्य वाक्य:

"बिना तैयारी के लिया गया वैराग्य, त्याग नहीं — त्याग का अपमान होता है।"

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