संस्कृत श्लोक "न हि पापकृतं कर्म सद्यः पचति क्षीरवत्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
आज का श्लोक पापकर्म की गुप्त एवं धीमी प्रतिक्रिया पर आधारित अत्यंत गंभीर और शिक्षाप्रद नीति-सूक्ति है। इसमें एक शक्तिशाली प्रतीक के माध्यम से यह समझाया गया है कि पाप कभी निष्फल नहीं होता, वह भीतर-ही-भीतर मनुष्य को जलाता रहता है।
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संस्कृत श्लोक "न हि पापकृतं कर्म सद्यः पचति क्षीरवत्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
✨ श्लोक ✨
न हि पापकृतं कर्म सद्यः पचति क्षीरवत् ।निगूढं दहतीहैव भस्मच्छन्नाग्निवच्चिरम् ॥
na hi pāpakṛtaṁ karma sadyaḥ pacati kṣīravat ।nigūḍhaṁ dahatīhaiva bhasmacchannāgnivac ciram ॥
🔍 शब्दार्थ एवं व्याकरणीय विश्लेषण:
पद | अर्थ | व्याकरणिक टिप्पणी |
---|---|---|
न हि | नहीं ही | निषेध + बल |
पापकृतं कर्म | पाप से किया गया कर्म | कर्म + बहुव्रीहि समास |
सद्यः | तुरंत, उसी समय | अव्यय |
पचति | पचता है / परिणाम देता है | लट् लकार |
क्षीरवत् | दूध के समान | उपमा |
निगूढं | छुपा हुआ | विशेषण |
दहति | जलाता है | सक्रिय रूप |
इह एव | यहीं पर | लोकविशेष |
भस्मच्छन्नाग्निवत् | भस्म से ढंकी हुई अग्नि के समान | उपमा समास |
चिरम् | बहुत समय तक | अव्यय |
🪷 भावार्थ:
"पाप से किया गया कर्म दूध की तरह तुरंत पचता नहीं।
बल्कि यह भस्म से ढँकी हुई आग की भाँति यहीं (इस लोक में) भीतर ही भीतर दीर्घकाल तक जलाता है।"
🔥 दूध तो जल्दी पच जाता है,पर पाप — गुप्त रूप से देर तक जलाता है, भीतर घुन की तरह।
🌿 प्रेरणादायक दृष्टांत: “वह अग्नि जो भीतर जलती है” 🌿
एक व्यक्ति ने वृद्धावस्था में शांति पाने के लिए साधु का वेश धारण किया, लेकिन भीतर ही भीतर उसके पिछले छल-कपट के कर्म उसे कचोटते रहते थे।
उसने रोते हुए एक ऋषि से कहा:
“मैंने बहुत कुछ त्याग दिया, फिर भी आत्मा शांत नहीं होती।”
ऋषि बोले:
“वत्स, तूने बाहर वस्त्र बदले,लेकिन भीतर जो भस्म में छिपी अग्नि है — वह तेरे ही पाप की है।जब तक प्रायश्चित और प्रकट प्रायश्चित नहीं होगा, यह अग्नि जलाती रहेगी।”
🌟 शिक्षा / प्रेरणा:
- पाप कभी नष्ट नहीं होता, वह भीतर जलता है।
- जब तक प्रायश्चित नहीं किया जाए, मन की शांति संभव नहीं।
- अपराध से बंधन नहीं होता,अस्वीकार और छुपाने से बंधन होता है।
- भस्म के नीचे की आग धीमे-धीमे जलाती है — उसे बाहर निकालो, बुझाओ, और मुक्त हो जाओ।
🕯️ मनन योग्य कथन:
"पाप से पीड़ित व्यक्ति दूसरों से नहीं, स्वयं से ही छिपता है।और वही छुपा हुआ पाप, अंततः आत्मा को भस्म कर देता है।"