यह विवरण भाषाविकास के क्रम को अत्यंत रोचक, विश्लेषणात्मक और एक विशिष्ट वैदिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है। इसमें मानव प्रजातियों के विकास, ध्वनि-संप्रेषण की प्रारंभिक प्रेरणाएँ, वर्णमाला की उत्पत्ति, व्याकरणिक संरचनाओं के क्रमिक विकास, तथा वैदिक साहित्य की रचना को एक कालक्रम में बांधने का अत्यंत गूढ़ प्रयास है।
मैं इस संपूर्ण कालक्रम को स्पष्ट, संरचित एवं पाठयोग्य रूप में यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ:
भाषा विकास का कालक्रम: एक विश्लेषणात्मक परिचय
भाषा का चरण – 1
🕰 कालावधि:
प्रारंभ: 28 लाख वर्ष पूर्व से पहले नहीं (होमो की उत्पत्ति)
अंत: 10 लाख वर्ष पूर्व से पहले नहीं तथा 5000 वर्ष पूर्व से बाद में नहीं
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भाषा विकास का कालक्रम: एक विश्लेषणात्मक परिचय|Chronology of Language Development: An Analytical Introduction |
मुख्य बिंदु:
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प्रभुत्व-अधीनता संचार की उत्पत्ति:
- ध्वनि-संप्रेषण एक प्राकृतिक संघर्ष से बचने का माध्यम बना।
- “ऋ” और “लृ” जैसे ध्वनियाँ – सत्ता व अधीनता के मिथकीय प्रतिनिधि।
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वर्ण पहचान और अर्थ-संलग्नता:
- सभी वर्ण एक साथ नहीं उभरे, किंतु अंततः 47 वर्ण का गठन हुआ।
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वर्ण-शिक्षण की परंपरा:
- शिव सूत्र तथा वर्ण-चिह्नों का उदय।
- वर्गीकृत व्याकरणिक प्रयोग की दिशा में पहला कदम।
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वाकेतर विषयों के सूत्रों का निर्माण।
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संयुक्त वर्णों की उत्पत्ति।
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‘धातु’ की संकल्पना विकसित होती है।
- क्रियाओं की मूल जड़ें परिभाषित होने लगती हैं।
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स्वर का बाज़ार के प्रतीक रूप में प्रयोग:
- अर्थों का अमूर्त संप्रेषण।
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सूत्रों की प्रक्रियात्मक समझ:
- इन्हें केवल रटने की नहीं, क्रियान्वयन योग्य प्रक्रियाओं के रूप में देखा गया।
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शारीरिक रचना में परिवर्तन:
- कुछ ध्वनियों का उच्चारण कठिन होता गया।
- पाणिनि द्वारा एकमात्र व्यवस्थित भाषा-शिक्षण प्राप्त।
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श्रुति, ब्राह्मण, संहिता आदि ग्रंथों का निर्माण:
- देवताओं को परिणाम-उत्पन्न प्रक्रियाएँ माना गया।
- इनका कोई संशोधन नहीं, केवल संरक्षण।
- “कर्ता – कर्म” विनिमेय, “कर्म” = इप्सितम् (वांछनीय)
- काल की समझ तो थी, लेकिन भाषा में समाहित नहीं।
- षष्ठी विभक्ति पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुई थी।
भाषा का चरण – 2
🕰 कालावधि:
प्रारंभ: 10 लाख वर्ष पूर्व से पहले नहीं
अंत: 4000 वर्ष पूर्व से पहले नहीं (सरस्वती का पूर्ण लोप)
मुख्य बिंदु:
- दु-कृष्ण क्रांति का आरंभ।
- संभवतः द्वैत और विवेक की चेतना।
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संस्कृतिक क्रांति का विस्फोट।
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काल भाषा में समाहित:
- विशेषकर कृषि और कालक्रमिक गणना के लिए।
- विभक्ति व्यवस्था का विकास:
- कर्ता, कर्म, करण, अपादान, सम्बोधन, संयुग्मन आदि।
- अब यह संधानिक ढांचे में संलग्न हो गया।
- धातु-प्रत्यय संरचना का विकास:
- भाषा अब प्रतीकात्मक नहीं, अमूर्त संप्रेषण का माध्यम।
- वर्ण > धातु > पद > शब्द > वाक्य
- मूल प्रक्रिया लुप्त, केवल क्रियात्मक प्रयोग शेष।
- “सूत्र” और “धातु” के भौतिक अर्थ विस्मृत।
- निघंटु और निरुक्त:
- मूल पद और शब्दों के अर्थों को संरक्षित करने का प्रयास।
- सरस्वती का सूख जाना:
- एक प्राकृतिक और सांस्कृतिक मोड़।
- वेदों का व्यासीकरण प्रारंभ:
- ग्रंथों को समेटकर संहिता रूप दिया गया।
- सरस्वती क्षेत्र से बड़े पैमाने पर विस्थापन।
🔍 संक्षिप्त निष्कर्ष:
- यह कालक्रम भाषा के विकास को केवल एक शब्दात्मक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, जैविक, और सामाजिक प्रक्रिया के रूप में देखता है।
- पाणिनि और व्यास जैसे महापुरुष इस क्रम के चिंतन और संरक्षक के रूप में प्रकट होते हैं।
- भाषा की प्रकृति क्रिया-प्रेरक, देव-संप्रेरित, और समष्टि-संचालित प्रक्रिया के रूप में देखी गई है।