संस्कृत श्लोक "न कदापि बहिर्यान्ति मानिनां प्रार्थनागिरः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌞 🙏 जय श्रीराम। सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत श्लोक एक गंभीर आत्मसम्मान और मर्यादा की भावना को दर्शाने वाला गूढ़ और प्रेरणादायक नीति-सूक्त है। आइए इसका व्यवस्थित एवं गहराई से विश्लेषण करें:
🟨 1. संस्कृत मूल श्लोक:
न कदापि बहिर्यान्ति मानिनां प्रार्थनागिरः ।यदि निर्यातुमिच्छन्ति तदा प्राणपुरस्सराः ॥
🔤 2. Transliteration (IAST):
na kadāpi bahiryānti mānināṁ prārthanāgiraḥ |yadi niryātumicchanti tadā prāṇapurassarāḥ ||
🇮🇳 3. हिन्दी अनुवाद (भावार्थ सहित):
स्वाभिमानी व्यक्तियों की प्रार्थनाएँ (मिन्नतें) कभी बाहर नहीं आतीं। यदि कभी निकलने को होती हैं, तो वे उनके प्राणों के साथ ही बाहर आती हैं।
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संस्कृत श्लोक "न कदापि बहिर्यान्ति मानिनां प्रार्थनागिरः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
🔸 अर्थात्, आत्मसम्मान से युक्त व्यक्ति दूसरों के सामने विनती या याचना नहीं करते। यदि किसी कारण से उन्हें ऐसा करना पड़े, तो वह उनके लिए अत्यंत पीड़ादायक और प्राण-त्याग तुल्य होता है।
🧠 4. व्याकरणिक विश्लेषण:
पद | प्रकार | अर्थ |
---|---|---|
न कदापि | अव्यय | कभी नहीं |
बहिर्यान्ति | क्रिया (3P, प्र.क., बहुवचन) | बाहर जाती हैं |
मानिनाम् | पुं., षष्ठी बहुवचन | स्वाभिमानी व्यक्तियों का |
प्रार्थना-गिरः | स्त्री + स्त्री (षष्ठी बहुवचन) | प्रार्थना करनेवाली वाणियाँ (मिन्नतें) |
यदि | अव्यय | यदि (if) |
निर्यातुम् | धातु रूप (infinitive) | बाहर निकलना |
इच्छन्ति | क्रिया (3P, प्र.क., बहु.) | इच्छा करते हैं |
तदा | अव्यय | तब |
प्राण-पुरस्सराः | पुं., बहुवचन | प्राणों के साथ अग्रसर होनेवाले (अर्थात प्राणों के साथ निकलनेवाले) |
🌐 5. आधुनिक सन्दर्भ (Modern Relevance):
- आत्मसम्मान और स्वाभिमान आज के युग में भी व्यक्ति की गरिमा का आधार हैं।
- यह श्लोक हमें सिखाता है कि आत्मगौरव रखने वाला व्यक्ति कभी याचक नहीं बनता, वह सहायता मांगने से पूर्व स्वावलम्बन और प्रयास करता है।
- आज की व्यावसायिक दुनिया में भी, कुछ लोग सम्मान के साथ हार मानना पसंद करते हैं, पर चापलूसी या गिड़गिड़ाना नहीं।
🎭 6. संवादात्मक नीति कथा (एक शिक्षाप्रद लघु कथा):
राजकुमार और तपस्वी
एक समय की बात है, एक स्वाभिमानी तपस्वी कष्ट में था – वर्षों की तपस्या से वह दुर्बल हो गया था।
राजा को ज्ञात हुआ कि यह तपस्वी किसी सहायता की याचना नहीं करता।
राजा स्वयं उससे मिलने गया और बोला,
“महात्मन! क्यों कुछ नहीं कहते? आपके कष्ट देखकर हृदय विदीर्ण होता है।”
तपस्वी मुस्काया:
"हे राजन्! याचना तो तब निकलेगी जब प्राण निकलें। और यदि प्राण ही नहीं रहेंगे, तो प्रार्थना का क्या प्रयोजन?"
राजा ने हाथ जोड़कर कहा:
"स्वाभिमानी व्यक्ति की मौन याचना भी वज्र के समान प्रभावी होती है।"
उसी दिन से तपस्वी की सेवा राज्य की ओर से होने लगी।
🧘♂️ 7. नैतिक सन्देश (Moral Insight):
- आत्मसम्मान जीवन की सबसे मूल्यवान पूँजी है।
- स्वाभिमानी व्यक्ति याचक नहीं बनता — वह या तो स्वनिर्माण करता है या मौन में तप करता है।
- यदि कभी आत्मसम्मान वाले व्यक्ति की वाणी प्रार्थना बन जाए, तो वह उनकी अंतिम पुकार होती है — अत्यधिक मूल्यवान और मार्मिक।
📌 निष्कर्ष:
यह श्लोक केवल भाषा नहीं, जीवनदर्शन है।
यह हमें सिखाता है कि आत्मगौरव रखने वालों के शब्द बहुत कीमती होते हैं। वे जब बोलते हैं, तो वह साधारण प्रार्थना नहीं, बल्कि प्राणों की पुकार होती है।