योगमाया की भविष्यवाणी और Kakasure Vadh | Shri Krishna Childhood Leela Story in Hindi

Sooraj Krishna Shastri
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योगमाया की भविष्यवाणी और Kakasure Vadh | Shri Krishna Childhood Leela Story in Hindi


🌸 योगमाया की भविष्यवाणी और काकासुर का अंत 🌸

१. कंस का भय और देवकी की विनती

कंस जब यह जान चुका कि उसका काल जन्म ले चुका है, तब उसका मन भय से व्याकुल हो उठा। वह तुरन्त कारागार पहुँचा और क्रोध से चिल्लाकर बोला—
“देवकी! वह बालक कहाँ है? आज मैं अपनी तलवार से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।”

देवकी भय और करुणा से काँप उठी। उसने अपनी गोद में कन्या को छिपाते हुए आँसुओं भरी आँखों से कहा—
“भैया! यह तो कन्या है, तुम्हारी पुत्री समान। इसे मारने से तुम्हें क्या मिलेगा? मेरे छह पुत्रों को तुमने निर्दयता से मार डाला, मैंने कुछ नहीं कहा। परंतु अब मैं तुमसे इसके जीवन की भीख माँगती हूँ। यह मेरी अंतिम संतान है, मेरी अंतिम निशानी। मैं तुम्हारी छोटी बहन हूँ, तुम पर दया माँगती हूँ।”

देवकी हाथ जोड़कर प्रार्थना करती रही, किंतु कंस के पत्थर जैसे हृदय पर कोई असर न हुआ। उसने निर्दयतापूर्वक कन्या को देवकी की गोद से छीन लिया।

योगमाया की भविष्यवाणी और Kakasure Vadh | Shri Krishna Childhood Leela Story in Hindi
योगमाया की भविष्यवाणी और Kakasure Vadh | Shri Krishna Childhood Leela Story in Hindi



२. योगमाया का दिव्य रूप और भविष्यवाणी

कंस ने जैसे ही उस कन्या को चट्टान पर पटकने का प्रयास किया, वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में जा पहुँची और योगमाया देवी के रूप में प्रकट हुई।

आकाशवाणी गूँज उठी, देवगणों ने स्तुति की और अप्सराएँ पुष्प-वृष्टि करने लगीं। देवी ने कंस से कहा—

“अरे मूर्ख! मुझे मारकर तुझे क्या मिलेगा? तेरा संहारक कहीं और जन्म ले चुका है। तू अब निर्दोष शिशुओं की हत्या मत कर। व्यर्थ में पाप का भागी मत बन।”

ऐसा कहकर योगमाया देवी अंतर्धान हो गईं और विंध्याचल में जाकर विन्ध्येश्वरी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।


३. कंस और उसके दुष्ट मंत्री

कंस का भय और भी बढ़ गया। उसने दूसरे दिन दरबार में अपने दैत्य मंत्रियों को बुलाकर योगमाया की सारी बातें बताईं।

मंत्रियों ने सलाह दी—
“राजन! यदि तुम्हारा शत्रु कहीं और जन्म ले चुका है तो हमें देर नहीं करनी चाहिए। आज ही नगरों, गाँवों, अहीरों की बस्तियों और गोपों के घरों में जन्मे सभी शिशुओं का संहार कर देना चाहिए। शत्रु को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए, उसे जड़ से उखाड़ फेंकना ही उचित है।”

कंस वैसे ही क्रूर था, मंत्रियों की यह दुष्ट सलाह उसे भा गई। उसने आदेश दिया और दैत्य पूरे प्रदेश में निर्दोष शिशुओं की हत्या करने लगे।


४. पूतना का वध

गोकुल में भी उत्पात होने लगा। अभी छठी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का जातकर्म-संस्कार हुआ ही था कि कंस ने पूतना नामक राक्षसी को भेजा।

वह सुंदर गोपी का रूप धारण कर नंदबाबा के घर पहुँची। ममतामयी दिखने वाली उस स्त्री को देखकर किसी को संदेह न हुआ। उसने श्रीकृष्ण को गोद में उठा लिया और विष से भरे स्तनों से दूध पिलाने लगी।

परंतु श्रीकृष्ण कोई साधारण बालक नहीं थे। उन्होंने दूध के साथ उसके प्राण भी चूस लिए। पूतना अपने असली विकराल रूप में प्रकट होकर यमलोक गमन कर गई।


५. काकासुर का अंत

कुछ दिन बाद कंस ने फिर एक दैत्य को भेजा। वह राक्षस कौवे का रूप धारण करके गोकुल पहुँचा।
उसका नाम था काकासुर

नन्हें-से श्रीकृष्ण पालने में लेटे खेल रहे थे। काकासुर ने पहले अपने विकराल पंख फड़फड़ाकर उन्हें डराने का प्रयास किया, परंतु कृष्ण केवल मुस्कुराते रहे। यह देखकर वह क्रोध से झपटा और बालकृष्ण को मारने का प्रयत्न करने लगा।

तभी बालकृष्ण ने अपने बाएँ हाथ से उसका गला कसकर पकड़ लिया। दैत्य छटपटाने लगा, किंतु श्रीकृष्ण ने उसे घुमाकर इतनी जोर से फेंका कि वह सीधा कंस के सभा-मंडप में जा गिरा।

कंस ने सैनिकों की सहायता से किसी प्रकार उसे होश में लाया और पूछा—
“बताओ! तुम्हारी यह दशा किसने की?”

काकासुर भय से काँपते हुए बोला—
“राजन! जिसने मेरी गर्दन मरोड़कर मुझे यहाँ फेंक दिया, वह कोई साधारण बालक नहीं। निश्चित ही भगवान श्रीहरि ने अवतार ले लिया है।”


✨ उपसंहार ✨

इस प्रकार योगमाया की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध होने लगी।
कंस के बार-बार भेजे हुए दैत्य—कभी पूतना, कभी काकासुर—सबका नाश हो रहा था।
गोकुल में नन्हें-से श्रीकृष्ण अपने बाल-लीलाओं के साथ संसार का भार उतारने के लिए धीरे-धीरे बढ़ रहे थे।

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