Kubera aur Shri Ganesh Ki Kahani – धन, अहंकार और भक्ति की प्रेरक कथा

Sooraj Krishna Shastri
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Kubera aur Shri Ganesh Ki Kahani – धन, अहंकार और भक्ति की प्रेरक कथा

1. कुबेर का अभिमान

देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर के पास अपार धन-संपदा थी।
समय बीतने पर उन्हें इस अकूत संपत्ति का अभिमान हो गया।

उस अहंकार से प्रेरित होकर वे भगवान शिव के पास पहुंचे और बोले—

“महादेव! मैं एक भव्य भोज का आयोजन कर रहा हूं। उसमें देव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर—सभी आमंत्रित होंगे।
यदि आप और माता पार्वती भी वहाँ पधारें, तो मैं धन्य हो जाऊँगा।”

2. भगवान शिव का संकेत

भगवान शिव सर्वज्ञ थे। उन्होंने कुबेर का मंतव्य भाँप लिया कि यह आयोजन केवल दिखावे और अहंकारवश है।
इसलिए वे मुस्कुराते हुए बोले—

“कुबेर! हमारा प्रतिनिधित्व गणेश कर लेंगे।”

3. गणेशजी का भोज में आगमन

निर्धारित समय पर गणेशजी भोज में पहुँचे।
Kubera aur Shri Ganesh Ki Kahani – धन, अहंकार और भक्ति की प्रेरक कथा
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जैसे ही वे पहुँचे, उन्होंने कुबेर से कहा—

“मुझे बहुत जोर की भूख लगी है, कृपया भोजन शीघ्र परोसें।”

कुबेर ने आदरपूर्वक भोजन परोसना आरंभ किया।

4. गणेशजी का अद्भुत भोजन

गणेशजी खाने लगे और खाते ही चले गए।
एक के बाद एक, सभी व्यंजन समाप्त होते चले गए।

कुछ ही समय में कुबेर के यहाँ बना हुआ सारा भोजन समाप्त हो गया।

5. गणेशजी का क्रोध और कुबेर का पश्चाताप

कुबेर घबराए और परोसना बंद कर दिया।
तब गणेशजी क्रोध से बोले—

“यह कैसा दारिद्रों का भोज है?
यहाँ तो एक व्यक्ति का भी पेट नहीं भर सकता, फिर इतने सारे व्यक्तियों को क्यों आमंत्रित किया गया?”

यह सुनकर कुबेर का अहंकार चूर-चूर हो गया।
उन्होंने अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगी और विनम्र बनकर भगवान गणेश के चरणों में शरण ली।


🌸 स्तोत्र और प्रार्थना 🌸

(क)

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभकार्येषु सर्वदा॥

भावार्थ

हे वक्रतुंड (तुंड = सूँड़ वाले), महाकाय (विशालकाय) भगवान गणेश!
आपका तेज सूर्य की करोड़ों किरणों के समान है।
आप सदा मेरे सभी कार्यों को बिना विघ्न के पूर्ण करें और जीवन में शुभता प्रदान करें।


(ख)

नमामि देवं सकलार्थदं तं
सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्।
गजाननं भास्करमेकदन्तं
लम्बोदरं वारिभावसनं च॥

भावार्थ

मैं उन भगवान गजानन की वन्दना करता हूँ—

  • जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं।

  • सुवर्ण और सूर्य के समान देदीप्यमान हैं।

  • सर्प का यज्ञोपवीत धारण करते हैं।

  • एकदन्त हैं, लम्बोदर हैं।

  • और कमलासन पर विराजमान हैं।


🌼 निष्कर्ष

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि—

  • धन और वैभव का अहंकार शीघ्र नाश कर देता है।

  • सच्चा वैभव विनम्रता, भक्ति और सेवा में है।

  • श्रीगणेशजी विघ्नहर्ता हैं, वे भक्त का अभिमान हरकर उसे सच्चे मार्ग पर ले आते हैं।

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