Maa Parvati Ki Karuna Katha – माँ पार्वती की करुणा और त्याग की अद्भुत कथा
1. पार्वती का तप
2. बालक की करुण पुकार
अचानक पार्वती के कानों में एक आर्त बालक की चीख सुनाई दी –
"हाय-हाय! मैं छोटा-सा बच्चा हूँ, मुझे एक ग्राह (मगरमच्छ) ने पकड़ लिया है। अभी यह मुझे चबा जाएगा। मैं अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र हूँ। कोई है जो मुझे बचा ले? हाय! मैं मरा!"
उस मासूम की दयनीय पुकार सुनकर माँ पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। वे तत्क्षण उसकी ओर दौड़ीं।
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Maa Parvati Ki Karuna Katha – माँ पार्वती की करुणा और त्याग की अद्भुत कथा |
3. ग्राह और बालक
"हे ग्राहराज! यह बालक बड़ा ही दीन है, इसे तुरंत छोड़ दो।"
ग्राह बोला –
"देवि! मुझे नियम है कि दिन के छठे भाग में जो मेरे पास आता है, वही मेरा आहार होता है। यह बालक उसी समय यहाँ आया है। अतः यह ब्रह्मा द्वारा नियत किया गया मेरा आहार है। इसे मैं नहीं छोड़ सकता।"
4. पार्वती का त्याग
पार्वती बोलीं –
"ग्राहराज! मैंने हिमालय की चोटी पर कठोर तप किया है। उसी तप के बल से तुम इसे छोड़ दो।"
ग्राह ने उत्तर दिया –
"देवि! यदि आप अपना तप मुझे अर्पित कर दें, तभी मैं इस बालक को छोड़ सकता हूँ।"
तब माँ पार्वती ने करुणा से भरकर कहा –
"ग्राहराज! केवल इस तप की ही बात नहीं, मैंने जन्म-जन्मान्तर में जो भी पुण्य और तप संचय किया है, सब तुम्हें अर्पण करती हूँ। किंतु इस ब्राह्मण-बालक को छोड़ दो।"
5. ग्राह का विस्मय और वरदान
"देवि! आपने यह क्या कर दिया? इतना कठोर तप, जिसे आपने बड़े कष्ट सहकर किया और इतना महान उद्देश्य जिसके लिए साधना की—उसका त्याग क्या उचित है?फिर भी, आपकी ब्राह्मण-भक्ति और दीन-सेवा देखकर मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।आपको वरदान देता हूँ कि — आप अपना तप भी पुनः प्राप्त करें और यह बालक भी जीवित रहे।"
लेकिन पार्वती ने दृढ़ता से कहा –
"ग्राहराज! प्राण देकर भी इस दीन बालक को बचाना मेरा कर्तव्य था। तप तो मैं पुनः कर लूँगी, पर यह बालक यदि मर गया तो फिर कैसे आएगा?मैंने सोच-समझकर ही अपना तप तुम्हें अर्पण किया है। अब दी हुई वस्तु को मैं वापस नहीं ले सकती। अतः तुम इसे छोड़ दो।"
यह सुनकर ग्राह ने बालक को छोड़ दिया और अन्तर्धान हो गया।
6. भगवान शंकर का प्रकट होना
"देवि! तुम्हें पुनः तप करने की आवश्यकता नहीं है।वास्तव में वह बालक मैं ही था और ग्राह भी मैं ही था।तुम्हारी दया, त्याग और करुणा की परीक्षा लेने के लिए मैंने यह लीला रची थी।दान के प्रभाव से तुम्हारी तपस्या अब हजार गुनी होकर अक्षय हो गई है।"
🌸 कथा का संदेश
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माता पार्वती की करुणा – किसी भी साधक की सर्वोच्च पहचान उसका त्याग और करुणा है।
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त्याग की महिमा – तप, पुण्य और साधना का वास्तविक मूल्य तभी है जब उसका उपयोग किसी दीन-दुखी की रक्षा के लिए किया जाए।
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शिव-पार्वती की परीक्षा – भगवान अपने भक्तों की दया और त्याग की परीक्षा लेते हैं।
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दान का फल – जो दान किया जाता है, वह कभी नष्ट नहीं होता, बल्कि हजार गुना होकर लौटता है।
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धर्म का आधार – प्राण देकर भी दीन-दुखियों की रक्षा करना ही सच्चा धर्म है।
👉 यह कथा हमें सिखाती है कि ईश्वर तप और साधना से अधिक, हृदय की करुणा और सेवा से प्रसन्न होते हैं।