महाराजा सगर और कपिल मुनि कथा: The Secret of Ashwamedh Yagya and Ganga Avataran

Sooraj Krishna Shastri
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महाराजा सगर और कपिल मुनि कथा: The Secret of Ashwamedh Yagya and Ganga Avataran

(🌞 भविष्यवाणी और महाराजा सगर की कथा)

१. संतानहीनता का दुख

सूर्यवंशी सम्राट सगर (अयोध्या के राजा) की दो रानियाँ थीं—

  • केशिनी (विदेह की राजकन्या)
  • सुमति (अरिष्टनेमि की कन्या)

किन्तु वर्षों बीत जाने के बाद भी किसी के गर्भ से संतान उत्पन्न न हुई।
राजा का हृदय व्यथित रहने लगा। उन्हें चिंता सताने लगी—

  • वंश परम्परा लुप्त हो जाएगी।
  • पितरों को तर्पण देने वाला कोई न रहेगा।
  • विशाल साम्राज्य का उत्तराधिकारी कौन बनेगा?

राजा का यह दुख उनके कुलगुरु वशिष्ठ से छिपा न रहा।


२. गुरु वशिष्ठ का उपदेश

वशिष्ठ जी ने कहा—

“राजन! संतान का होना दैवाधीन है, परन्तु सत्कर्म और ऋषि-मुनियों की सेवा से पुण्य-फल अवश्य प्रकट होता है। निराश मत होइए। आप ब्राह्मणों का सम्मान और ऋषियों का सत्कार करते रहिए, ईश्वर अवश्य अनुकूल फल देंगे।”

राजा ने इसे हृदय से स्वीकार किया और अतिथि-सत्कार में स्वयं को समर्पित कर दिया।

महाराजा सगर और कपिल मुनि कथा: The Secret of Ashwamedh Yagya and Ganga Avataran
महाराजा सगर और कपिल मुनि कथा: The Secret of Ashwamedh Yagya and Ganga Avataran

३. महर्षि और्व का आगमन और वरदान

कुछ समय बाद महर्षि और्व पधारे।
राजा ने उनका अत्यन्त आदर-सत्कार किया। ऋषि प्रसन्न होकर बोले—

“राजन! आपकी आतिथ्य-सेवा से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ। कोई कामना हो तो कहिए।”

राजा ने निवेदन किया—

“मुझे सब सुख हैं, किन्तु संतान-सुख से वंचित हूँ।”

तब महर्षि और्व ने भविष्यवाणी की—

  • “राजन! आपकी एक रानी (केशिनी) से एक पुत्र उत्पन्न होगा—वह बुद्धिमान, बलवान और निष्ठावान होगा।
  • दूसरी रानी (सुमति) से साठ हजार पुत्र होंगे—वे वीर और साहसी होंगे, किन्तु उद्दंडता व अविवेक के कारण संकट में पड़ेंगे।

राजा और रानियों ने आशीर्वाद स्वीकार किया।


४. पुत्र जन्म और अश्वमेध यज्ञ

समय आने पर—

  • केशिनी से पुत्र हुआ, नाम रखा गया असमंजस
  • सुमति से साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए।

राजा असीम प्रसन्न हुए और उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का संकल्प लिया।
यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया और उसकी रक्षा की जिम्मेदारी राजकुमारों को दी गई।


५. इन्द्र की ईर्ष्या और घोड़े की चोरी

यज्ञ की सफलता से इन्द्र को भय हुआ—

  • “यदि सगर का यज्ञ सफल हो गया तो वे और भी सामर्थ्यवान हो जाएंगे और मेरा इन्द्रासन छिन सकता है।”

रात्रि में छिपकर इन्द्र ने घोड़े को चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया।
कपिल मुनि उस समय गहन ध्यान में लीन थे, उन्हें कुछ पता न चला।


६. राजकुमारों की खोज और उद्दंडता

सुबह जब राजकुमारों ने देखा कि घोड़ा गायब है, तो व्याकुल हो उठे।
बहुत खोजबीन की पर घोड़ा कहीं न मिला।

तब बड़े राजकुमार को स्वप्न में संकेत मिला—

“घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में है।”

सभी राजकुमार क्रोधित हो उठे और कपिल मुनि के आश्रम जा पहुँचे।

उन्होंने देखा—

  • घोड़ा वृक्ष से बँधा है।
  • कपिल मुनि पद्मासन में ध्यानस्थ हैं।

अविवेक और उद्दंडता में राजकुमार आपस में बोले—

“यही मुनि घोड़ा चुराकर बैठे हैं। पहले इन्हें दंड दो, फिर घोड़ा ले चलें।”

वे मुनि को धनुष से कोंचने लगे, अपशब्द कहने लगे।


७. कपिल मुनि का क्रोध और राजकुमारों का अंत

राजकुमारों के अपमान से ध्यान भंग हुआ।
कपिल मुनि ने जैसे ही नेत्र खोले, उनके तप-तेज की ज्वाला से
सारे साठ हजार राजकुमार क्षणभर में जलकर भस्म हो गए।

बाद में जब मुनि ने अपने योगबल से स्थिति जानी तो वे दुखी हुए।
उन्होंने संदेश भेजा—

“राजा! आपके पुत्रों का अंत उनके ही उद्दंड आचरण से हुआ। मैं निर्दोष हूँ।”


८. ऋषि का वचन सिद्ध

राजा सगर को ऋषि और्व का वचन स्मरण हो आया—

“ये राजकुमार अपनी ही उद्दंडता से संकट का कारण बनेंगे।”

वचन सत्य हुआ।
राजा ने गहन शोक के साथ यह स्वीकार किया कि—
अविवेक और उद्दंडता का परिणाम सदैव विनाश ही होता है।


✨ इस कथा का सार

  1. संतान-सुख दैवाधीन है, किन्तु पुण्य और सत्कर्म से अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
  2. ऋषि-मुनियों के आशीर्वाद का प्रभाव अटल होता है।
  3. अहंकार और उद्दंडता सदैव विनाश का कारण बनते हैं।
  4. धैर्य और विवेक जीवन को संकट से बचाते हैं।
  5. कपिल मुनि की तपशक्ति ने यह सिद्ध किया कि साधना से उत्पन्न शक्ति का अपमान करने वाले स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं।

🙏
।। हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे ।।
।। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।


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