चीर हरण लीला : Symbolism of Krishna और Gopis Love in bhagwatam
श्रीमद्भागवत महापुराण (दशम स्कंध, अध्याय २२) में वर्णित "चीर-हरण लीला" भगवान श्रीकृष्ण की अत्यन्त मधुर और अद्भुत बाल-लीलाओं में से एक है। इस प्रसंग में व्रज की कुमारिकाएँ माँ कात्यायनी की आराधना करती हैं, ताकि उन्हें श्रीकृष्ण ही पति रूप में प्राप्त हों। प्रभु उनके सच्चे भाव को स्वीकार करते हैं और उनकी भक्ति की परख करने हेतु एक अलौकिक लीला का आयोजन करते हैं।
हेमन्त ऋतु के प्रारम्भ में (मार्गशीर्ष मास में), नन्दग्राम की किशोरवयस्क गोपियाँ देवी कात्यायनी को पति रूप में श्रीकृष्ण को पाने के उद्देश्य से व्रत करने लगीं। उन्होंने सात्त्विक भोजन (हविष्य – बिना नमक, तेल, मसाले का यज्ञोपयोगी भोजन) का सेवन करते हुए, नित्य प्रातः काल यमुना में स्नान कर, रेत से देवी कात्यायनी की मूर्ति बनाकर पूजा-अर्चना की।
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चीर हरण लीला : Symbolism of Krishna और Gopis Love in bhagwatam |
🌼 गुण और रहस्य:
1. ऋतु और काल चयन का रहस्य:
- हेमन्त ऋतु में वातावरण शुद्ध, शांत और सात्त्विक होता है। यह साधना, तप और व्रतों के लिए उत्तम समय माना गया है।
- मार्गशीर्ष मास, जिसे श्रीकृष्ण ने गीता (10.35) में "मासानां मार्गशीर्षोऽहम्" कहकर विशेष बताया है, विशेष रूप से ईश्वर प्राप्ति के लिए उपयुक्त माना जाता है।
2. व्रजकुमारिकाओं की भावना:
- वे बाल्यावस्था में ही पूर्ण आत्मसमर्पण की भावना से प्रेरित थीं।
- उनका उद्देश्य सांसारिक नहीं, परमपुरुष श्रीकृष्ण को पति रूप में पाना था – जो केवल भक्तियोग से संभव है।
3. हविष्य का प्रयोग:
- सात्त्विक भोजन से इन्द्रिय संयम होता है, जिससे मन भगवान में एकाग्र होता है।
- इसका प्रयोग तप और व्रतों में आत्मशुद्धि के लिए किया जाता है।
4. कात्यायनी देवी का रहस्य:
- कात्यायनी महादेवी का रूप हैं, शक्ति की अधिष्ठात्री हैं।
- उन्हें कुमारियों द्वारा पूजना शक्ति, सौंदर्य, और भाग्य (विवाह) के लिए होता है।
- यहाँ वे साधना का माध्यम बनीं – परमप्रेम के लिए।
5. अर्चनव्रतम् की परंपरा:
- यह व्रत निर्मल प्रेम, निष्काम भाव और श्रद्धा से सम्पन्न हुआ, जिसमें उद्देश्य केवल कृष्ण प्राप्ति है।
- यह व्रत गोपियों की उत्तम भक्ति भावना को दर्शाता है – जिसमें तन, मन, प्राण समर्पित हैं।
व्रत को उद्यत गोपिकाएँ देवी कात्यायनी से भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने की प्रार्थना करती हैं जोकि बाल-भक्तियों के अत्यन्त उच्च भावों, ईश्वर की सौंदर्य-माधुरी और रहस्यात्मक राधा-भाव का गहरा संकेत देता है।
🔱 गूढ़ रहस्यात्मक विवेचना:
1. कात्यायनी व्रत की महिमा:
- यह व्रत हेमन्त ऋतु में मार्गशीर्ष मास में किया जाता है।
- बालिकाओं का यह व्रत सौम्यता, संयम, आस्था और एकनिष्ठ प्रेम का प्रतीक है।
- इसमें विवाह की नहीं, अपितु आत्मसमर्पण की कामना है।गोपियाँ श्रीकृष्ण को देह से नहीं, प्राण से पति मानती हैं।
2. 'महामाये' और 'महायोगिनि' शब्दों की गूढ़ता:
- यहाँ "महामाया" शब्द योगमाया के लिए प्रयुक्त है, जो भगवान की लीलाओं की आयोजिका हैं।
- गोपियाँ यह जानती थीं कि कृष्ण कोई सामान्य बालक नहीं, वे परब्रह्म हैं, और उन्हें प्राप्त करने हेतु माया की अधीश्वरी देवी से प्रार्थना आवश्यक है।
- "महायोगिनि" से संकेत है कि दैविक अनुकूलता, आध्यात्मिक शक्ति, और वियोग-संयोग का संचालन योगमाया के ही हाथ में है।
3. 'नन्दगोपसुतं' का चयन:
- गोपियाँ यहाँ कृष्ण को "नन्दगोप का पुत्र" कहकर बुलाती हैं — यह माधुर्यभाव को व्यक्त करता है।
- वे ईश्वर को 'गोपाल' रूप में चाहती हैं, नरलीला में पूर्णतः रमे हुए, साक्षात परमात्मा नहीं, बल्कि व्रज का श्यामसुंदर।
4. 'पतिं मे कुरु' – यह अनुरक्ति क्या है?
- यह कामनात्मक नहीं, उपासना की पराकाष्ठा है।
- "पति" शब्द यहां ‘स्वामी’, ‘जीवन का लक्ष्य’, ‘पूर्ण समर्पण का केन्द्र’ के अर्थ में है।
- यह ‘राधा भाव’ की अभिव्यक्ति है — जहाँ आत्मा (गोपिकाएँ) परमात्मा (कृष्ण) के संग पूर्णतया एकरूप होना चाहती है।
🕉️ भक्तिपूर्ण दृष्टिकोण:
- इस श्लोक में गोपिकाएँ अपनी बाल-सरलता, निष्कलुष प्रेम, और पूर्ण समर्पण के भाव से परब्रह्म को रिझा रही हैं।
- यह श्लोक ‘माधुर्य भक्ति रस’ का अद्भुत उदाहरण है।
- यह दिखाता है कि भक्त, जब पूर्ण हृदय से ईश्वर को अर्पित होता है, तो ईश्वर भी उसके अनुराग में बँध जाते
यहां गोपियाँ कह रही हैं:
“हे श्यामसुंदर! हम तो तुम्हारी दासियाँ हैं। हम तुम्हारे कहे अनुसार आचरण करेंगी। अतः हे धर्मज्ञ! हमारे वस्त्र हमें दे दो। नहीं तो हम जाकर राजा से शिकायत कर देंगे।”
🔹 गूढ़ भाव (Guḍha Bhāva):
1. माधुर्य-भक्ति का अभिनय रूप:
गोपियाँ स्वयं को "ते दास्यः" कहती हैं — यानी कृष्ण की दासी। यह दास्यभाव केवल सामाजिक नहीं, बल्कि आत्मिक प्रेम का उच्चतम रूप है, जिसमें अपने समर्पण की पूर्णता है। वे कहती हैं, “तुम जो कहो वह हम करेंगी” — यह केवल वस्त्र पाने का आग्रह नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण की उद्घोषणा है।
2. कृष्ण को ‘धर्मज्ञ’ कहना – एक व्यंग्ययुक्त विनम्रता:
यहां ‘धर्मज्ञ’ शब्द व्यंग्य और श्रद्धा का अद्भुत मिश्रण है। गोपियाँ कहती हैं – “हे धर्मज्ञ! यदि तुम वास्तव में धर्म को जानने वाले हो, तो हमारे वस्त्र लौटाओ।” इससे यह स्पष्ट होता है कि वे कृष्ण की चेष्टा को बाल-क्रीड़ा मानती हैं, किन्तु नारी की मर्यादा और प्रेम की लाज बनाए रखना भी धर्म का अंग मानती हैं।
3. ‘राज्ञे ब्रुवाम’ – प्रेम में रूठने की धमकी:
"हम राजा से कह देंगे" — यह वाक्य प्रेमभरे उलाहने के स्वर में है। यह कोई वास्तविक राजदण्ड की धमकी नहीं, बल्कि प्रेम में रुठे हुए हृदय की चंचल झलक है। यह प्रेम का वो रंग है जिसमें उलाहना भी आकर्षण का ही रूप होता है।
🔹 गुणविश्लेषण (Alaṅkāra & Rasa):
✅ शृंगार रस (माधुर्य):
- सम्पूर्ण दृश्य श्रृंगार रस से पूरित है, जिसमें विप्रलंभ और संकीर्ण हास्य-श्रृंगार दोनों झलकते हैं।
✅ व्याज स्तुति / व्यंग्यालंकार:
- ‘धर्मज्ञ’ शब्द में व्यंग्य अलंकार है, क्योंकि कृष्ण वस्त्र छीनकर धर्म का उल्लंघन कर रहे प्रतीत होते हैं, फिर भी गोपियाँ उन्हें ‘धर्मज्ञ’ कह रही हैं।
✅ श्रद्धा और अधिकार का संतुलन:
- गोपियाँ जहाँ अपने प्रेम-अधिकार को प्रकट कर रही हैं, वहीं कृष्ण के प्रति उनकी श्रद्धा और समर्पण भी स्पष्ट है।
🔹 आध्यात्मिक रहस्य (Spiritual Symbolism):
1. वस्त्र – अहंकार का प्रतीक:
वस्त्र यहां "अहंकार" या "कृतिम आवरण" का प्रतीक हैं। जब गोपियाँ उन्हें त्यागकर जल में आईं, तो वह दर्शाता है कि आत्मा जब अपने आडंबरों को छोड़ती है, तभी वह परमात्मा के साक्षात्कार के योग्य बनती है।
2. ‘राजा’ से शिकायत – अंतःकरण का न्यायालय:
‘राज्ञे ब्रुवाम’ में छिपा संदेश यह है कि यदि आत्मा को आत्मज्ञान न मिले, तो वह अंतःकरण के न्याय से प्रश्न करती है, जो स्वयं ईश्वर का ही प्रतिरूप है।
🔹नारी की भावप्रवणता और सम्मान का संदेश:
यह श्लोक यह भी दर्शाता है कि नारी भावुक हो सकती है, परंतु विवश नहीं। गोपियाँ यहाँ श्रृंगारिक प्रेम में समर्पित हैं, लेकिन अपने सम्मान और धर्म का आग्रह भी रखती हैं।
चीर हरण लीला का निष्कर्ष:
आधुनिक सन्दर्भ में शिक्षा:
- व्रत का उद्देश्य शरीर को नहीं, चित्त को संयमित करना है।
- जब भावना निष्कलंक हो, तब आयु या विधि बाधक नहीं होती।
- सच्चा प्रेम, आत्मसमर्पण और ईश्वर के प्रति अनुराग — यह भक्ति का मार्ग है।
- नारी शक्ति के इस उदाहरण से प्रेरणा मिलती है कि वेदकाल से ही नारी का आध्यात्मिक पुरुषार्थ कितना प्रबल रहा है।
- चीर हरण लीला हमें सिखाती है कि सच्ची कामना वही है, जिसमें आत्मा परमात्मा को पाने के लिए संकल्पित हो।
- आत्म-समर्पण, निष्कामता और निर्मलता से की गई प्रार्थना ही फलवती होती है।
- गोपियों की विनम्रता और निष्कामता दिखाती है कि सत्य और प्रेम के पथ पर चलने वालों के लिए सृष्टि की शक्तियाँ भी सहायक बन जाती हैं।