पूजा और जप में सिर ढकना क्यों है शास्त्र-विरुद्ध? | Why Covering Head in Pooja & Jap is Prohibited in Shastra

Sooraj Krishna Shastri
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पूजा और जप में सिर ढकना क्यों है शास्त्र-विरुद्ध? | Why Covering Head in Pooja & Jap is Prohibited in Shastra

 वास्तव में आजकल पूजा-पद्धति में आई हुई एक कुप्रथा है कि लोग पूजन शुरू करते ही तुरन्त रूमाल, गमछा या कपड़ा सिर पर रख लेते हैं। शास्त्र इसके विपरीत निर्देश देते हैं। अब हम इसे प्रमाणों सहित प्रस्तुत करते हैं:


✨ 1. पूजा और जप में सिर ढकने का निषेध

शास्त्रों में बार-बार कहा गया है कि देवपूजन, जप, ध्यान, प्रणाम आदि करते समय सिर खुला होना चाहिए।

📖 कुर्म पुराण (अध्याय 13, श्लोक 9):

शिर: प्रावृत्य कण्ठं वा मुक्तकच्छशिखोऽपि वा ।
अकृत्वा पादयोः शौचमाचांतोऽप्यशुचिर्भवेत् ॥

भावार्थ:
यदि सिर या गले को ढककर, कच्छ (लांग) खोले हुए, शिखा खोलकर, अथवा बिना पाँव धोए आचमन किया जाए, तो वह शुद्ध नहीं माना जाता।
👉 अर्थात पहले सिर व कण्ठ से वस्त्र हटाएँ, शिखा और कच्छ बाँधें, पाँव धोकर आचमन करें तभी व्यक्ति देवपूजन योग्य बनता है।
पूजा और जप में सिर ढकना क्यों है शास्त्र-विरुद्ध? | Why Covering Head in Pooja & Jap is Prohibited in Shastra
पूजा और जप में सिर ढकना क्यों है शास्त्र-विरुद्ध? | Why Covering Head in Pooja & Jap is Prohibited in Shastra



✨ 2. जप का निष्फल होना (ढके सिर से)

📖 कुर्म पुराण (अध्याय 13, श्लोक 9-10):

उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।
प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥

भावार्थ:
सिर ढककर, सिला हुआ वस्त्र पहनकर, शिखा खोले हुए, गले में वस्त्र बाँधकर, बोलते हुए, या काँपते हुए किया गया जप निष्फल होता है।

📖 कुर्म पुराण (अध्याय 13, श्लोक 10 अर्ध):

सोपानस्को जलस्थो वा नोष्णीषी वाचमेद् बुधः।

भावार्थ:
बुद्धिमान व्यक्ति को जूते पहनकर, जल में खड़े होकर, या सिर ढककर आचमन नहीं करना चाहिए।


✨ 3. ध्यान और उपासना के विषय में

📖 कर्मठगुरुः वचन:

शिरः प्रावृत्य वस्त्रोण ध्यानं नैव प्रशस्यते।

भावार्थ:
सिर ढककर वस्त्र से भगवान का ध्यान करना प्रशंसनीय नहीं है।


✨ 4. अन्य शास्त्रीय प्रमाण

📖 शब्द कल्पद्रुम:

उष्णीशी कञ्चुकी नग्नो मुक्तकेशो गलावृत ।
अपवित्रकरोऽशुद्धः प्रलपन्न जपेत् क्वचित् ॥

भावार्थ:
सिर ढककर, सिला हुआ वस्त्र पहनकर, नग्न होकर, शिखा खोलकर, गले में वस्त्र बाँधकर, अपवित्र हाथों से या बोलते हुए किया गया जप कभी भी शुद्ध नहीं होता।

📖 योगी याज्ञवल्क्य:

न जल्पंश्च न प्रावृतशिरास्तथा।

भावार्थ:
न तो बातचीत करते हुए और न ही सिर ढककर जप करना चाहिए।

📖 रामार्चनचन्द्रिका:

अपवित्रकरो नग्नः शिरसि प्रावृतोऽपि वा ।
प्रलपन् प्रजपेद्यावत्तावत् निष्फलमुच्यते ॥

भावार्थ:
यदि कोई व्यक्ति अपवित्र हाथों से, नग्न होकर, सिर ढककर अथवा बात करते हुए जप करता है, तो वह जप निष्फल होता है।


✨ 5. निष्कर्ष (आधुनिक कुप्रथा का खण्डन)

  • पूजा, जप, ध्यान और प्रणाम करते समय सिर खुला रखना चाहिए।
  • शास्त्रों में केवल शौचकाल (अपवित्रता की अवस्था) में सिर ढकने की बात कही गई है।
  • रूमाल या गमछा सिर पर रखकर पूजा करना शास्त्रविरुद्ध है और इससे जप-पूजन का फल नष्ट हो जाता है।
  • वास्तविक शुद्धता आती है — सिर, शिखा और कच्छ को व्यवस्थित करके, हाथ-पाँव धोकर, मन को शांत कर भगवान का ध्यान करने से।

अतः जो लोग आजकल रूमाल सिर पर रखकर पूजा करते हैं, वे अज्ञानवश शास्त्र-विरुद्ध आचरण कर रहे हैं।
👉 यदि सही फल चाहिए तो सिर खुला रखकर ही पूजा, जप और ध्यान करना चाहिए।

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