संस्कृत श्लोक "यद्ददासि विशिष्टेभ्यो यच्चाश्नासि दिने दिने" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸 जय श्रीराम – सुप्रभातम् 🌸
यह श्लोक हमें संपत्ति के वास्तविक मूल्य का बोध कराता है।
📜 संस्कृत मूल:
यद्ददासि विशिष्टेभ्यो यच्चाश्नासि दिने दिने।
तत्ते वित्तमहं मन्ये शेषं कस्यापि रक्षसि॥
🔤 Transliteration (IAST):
yad dadāsi viśiṣṭebhyo yac cāśnāsi dine dine |
tat te vittam ahaṃ manye śeṣaṃ kasyāpi rakṣasi ||
🇮🇳 हिन्दी अनुवाद:
जो धन तुम योग्य जनों को दान करते हो और जो प्रतिदिन स्वयं तथा परिवार के भरण-पोषण में व्यय करते हो, वही तुम्हारा वास्तविक धन है। शेष जो तुम संग्रह कर रखते हो, उसकी रखवाली तुम किसी अज्ञात व्यक्ति के लिए कर रहे हो।
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संस्कृत श्लोक "यद्ददासि विशिष्टेभ्यो यच्चाश्नासि दिने दिने" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
📚 व्याकरण-विचार:
- यत् ददासि → "जो दान करते हो" (क्रिया: √दा, लट् लकार)
- विशिष्टेभ्यः → "योग्य/सज्जनों को" (चतुर्थी विभक्ति, बहुवचन)
- अश्नासि → "भोग करते हो" (क्रिया √अश् = खाना)
- वित्तम् → "धन" (नपुंसकलिंग, द्वितीया)
- शेषम् → "बाकी"
- कस्यापि → "किसी अज्ञात व्यक्ति का" (अनिश्चय)
- रक्षसि → "तुम रक्षा करते हो"
🌼 आधुनिक संदर्भ:
- बैंक-बैलेंस, ज़मीन-जायदाद, जमा पूँजी – ये सब हमारे सच्चे धन नहीं हैं, क्योंकि अंततः ये किसी और के पास चले जाते हैं।
- सच्चा धन वही है जो:
- दान (योग्य को सहायता, शिक्षा, सेवा)
- उपभोग (स्वयं और परिवार का पालन-पोषण, आवश्यक जीवन-निर्वाह)
👉 शेष धन मात्र उत्तराधिकारियों या अज्ञात के लिए संचित रह जाता है।
🪔 नीति-कथा (संवाद रूप में):
👦 शिष्य: गुरुजी! इतना धन इकट्ठा क्यों करते हैं लोग?
👨🦳 गुरु: बेटा! वही धन तुम्हारा है जो या तो सज्जनों को दान किया या जीवनोपयोग में खर्च हुआ।
👦 शिष्य: बाकी जो तिजोरी में पड़ा है?
👨🦳 गुरु: वह किसी और के लिए है। तुम तो बस चौकीदार हो।
✅ शिक्षा:
👉 “सच्ची संपत्ति वही है जो साझी और सदुपयोग में आये, बाकी तो केवल वहम है।”