Ayushya Jyotish: किसी की आयु कितनी होगी? बालारिष्ट से लेकर दीर्घायु और उपायों तक सम्पूर्ण विवेचन

Sooraj Krishna Shastri
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Ayushya Jyotish: किसी की आयु कितनी होगी? बालारिष्ट से लेकर दीर्घायु और उपायों तक सम्पूर्ण विवेचन


भूमिका

मानव जीवन का सबसे बड़ा रहस्य उसकी आयु (जीवनकाल) है। जन्म लेने के साथ ही मृत्यु निश्चित है, लेकिन कौन कब, किस अवस्था में और किस प्रकार से जीवन का अंत करेगा – यह अत्यंत जिज्ञासा और रहस्य का विषय है।
ज्योतिष शास्त्र इस जटिल प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करता है। महर्षि पराशर, जैमिनि तथा अन्य महान आचार्यों ने विभिन्न सूत्रों और सिद्धांतों के माध्यम से आयु निर्धारण की पद्धति बताई है।

जैमिनि सूत्र की तत्त्वदर्शन टीका तथा बृहत् पराशर होरा शास्त्र में आयु-विचार के सबसे स्पष्ट और मान्य सिद्धांत मिलते हैं। पराशर मुनि कहते हैं—

श्लोक:
“बालारिष्टं योगारिष्टं अल्पं मध्यं च दीर्घकम्।
दिव्यं चैवामितं चैवं सप्तधायुः प्रकीर्तितम्॥”

अर्थात्, मृत्यु का ज्ञान पाना अत्यंत दुष्कर है, तथापि शास्त्रों ने सात प्रकार की आयु का उल्लेख किया है—

  1. बालारिष्ट, 2. योगारिष्ट, 3. अल्पायु, 4. मध्यायु, 5. दीर्घायु, 6. दिव्यायु और 7. अमितायु।

सात प्रकार की आयु का विस्तृत विवेचन

1. बालारिष्ट मृत्यु (०–८ वर्ष तक)

  • परिभाषा: जन्म से आठ वर्ष तक की अवस्था में मृत्यु।
  • कारण:
    • लग्न से ६, ८, १२वें स्थान में पापग्रहों से युक्त चंद्रमा।
    • सूर्य-चंद्र-राहु एक ही राशि में होना।
    • लग्न पर शनि-मंगल की क्रूर दृष्टि।
    • जन्म के समय सूर्य या चंद्र ग्रहण।
  • विशेष दुर्योग:
    • लग्न में शनि, सप्तम में मंगल और छठे भाव में चंद्र होने से पिता संकटग्रस्त।
    • कभी-कभी माता-पुत्र का एक साथ मृत्यु-संयोग।
  • उपाय:
    • बालक को चांदी का चंद्रमा व मोती काले धागे में गले में पहनाना।
    • शांति हेतु नक्षत्र पूजा और ग्रह शांति।
Ayushya Jyotish: किसी की आयु कितनी होगी? बालारिष्ट से लेकर दीर्घायु और उपायों तक सम्पूर्ण विवेचन
Ayushya Jyotish: किसी की आयु कितनी होगी? बालारिष्ट से लेकर दीर्घायु और उपायों तक सम्पूर्ण विवेचन



2. योगारिष्ट मृत्यु (८–२० वर्ष तक)

  • परिभाषा: आठ से बीस वर्ष तक की मृत्यु।
  • कारण:
    • अष्टम भाव शनि-मंगल से दूषित।
    • लग्नेश विपरीत ग्रह या वक्री हो।
    • विशिष्ट अमावस्या, चतुर्दशी, अष्टमी तिथियों पर जन्म।
    • माता-पिता के पापकर्म (चोरी, हिंसा, हत्या)।
  • उपाय:
    • माता-पिता को सदाचार अपनाना।
    • शिवोपासना एवं महामृत्युंजय जाप।
    • दान-पुण्य एवं प्रायश्चित।

3. अल्पायु (२०–३२ वर्ष तक)

  • परिभाषा: बीस से बत्तीस वर्ष तक की मृत्यु।
  • कारण:
    • वृषभ, तुला, मकर, कुंभ लग्न में अशुभ ग्रह।
    • लग्नेश चर राशि में और अष्टमेश द्विस्वभाव राशि में।
    • सूर्य शत्रु राशिस्थ।
    • शनि-चंद्र विशेष स्थिति में।
  • उपाय:
    • प्रतिदिन महामृत्युंजय मंत्र की २१ माला।
    • दोनों अष्टमियों पर शिव अभिषेक।
    • नवग्रह ताबीज धारण करना।

4. मध्यायु (३२–६४ वर्ष तक)

  • परिभाषा: बत्तीस से चौसठ वर्ष तक का जीवन।
  • कारण:
    • मिथुन और कन्या लग्न।
    • लग्नेश व अष्टमेश की चर–स्थिर या स्थिर–द्विस्वभाव स्थितियाँ।
    • शनि-चंद्र विशेष राशियों में।
    • सामान्य बलयुक्त लग्नेश-अष्टमेश।
  • विशेष तथ्य:
    • मृत्यु प्रायः जन्मस्थान से दूर होती है।
  • उपाय:
    • चांदी का स्वस्तिक ताबीज धारण।
    • शनिवार को ३ गरीबों को काला कंबल व चप्पल दान।
    • शनि-चंद्र के उपाय।

5. दीर्घायु (६४–१२० वर्ष तक)

  • परिभाषा: दीर्घ जीवन, जिसे पूर्णायु भी कहते हैं।
  • कारण:
    • लग्नेश सूर्य का मित्र हो।
    • लग्नेश-अष्टमेश चर-चर या स्थिर-द्विस्वभाव में।
    • शुभग्रह केंद्र में हों।
    • गुरु-शुक्र की दृष्टि या संयोग।
    • तीन ग्रह उच्च या स्वग्रही होकर अष्टम में।
  • फल:
    • दीर्घायु जीवन सुखमय होता है, किंतु रोग बाधाएँ बीच-बीच में।
  • उपाय:
    • शिव और विष्णु की जीवनपर्यन्त उपासना।

6. दिव्यायु

  • परिभाषा: साधारण मानव से परे दिव्य जीवन।
  • कारण:
    • बुध, गुरु, शुक्र, चंद्र केंद्र-त्रिकोण में।
    • पापग्रह ३, ६, ११वें भाव में।
    • अष्टम भाव में शुभ ग्रह।
  • फल:
    • यज्ञ-जप-तप से हजारों वर्षों तक जीवित रहना।
    • ऐसी आयु केवल ऋषि-मुनियों को।
  • उदाहरण: भरद्वाज ऋषि, अगस्त्य ऋषि, देवरहवा बाबा।

7. अमितायु

  • परिभाषा: असीम आयु, देवताओं समान।
  • कारण:
    • गुरु अपने चतुर्वर्ग में केंद्रस्थ।
    • शुक्र षड्वर्ग में पारावतांश।
    • कर्क लग्न।
  • फल:
    • मृत्यु की सीमा नहीं, इच्छा-मृत्यु का वरदान।
    • भीष्म पितामह को यह योग प्राप्त था।

निष्कर्ष

मृत्यु अटल सत्य है, किंतु ज्योतिष शास्त्र हमें यह समझने की क्षमता देता है कि आयु के विभिन्न स्तर किन ग्रहयोगों पर आधारित होते हैं।

  • बालारिष्ट व योगारिष्ट मृत्यु से शिशु और किशोर आयु प्रभावित होती है।
  • अल्पायु व मध्यायु सामान्य मानव जीवन के उतार-चढ़ाव दर्शाते हैं।
  • दीर्घायु सुखद और सम्पन्न जीवन का संकेत देती है।
  • दिव्यायु और अमितायु मनुष्य के पारलौकिक और देवतुल्य स्वरूप की ओर संकेत करते हैं।

ग्रहों की शांति, दान-पुण्य, मंत्र-जप और भगवान शिव की उपासना जीवन को सुरक्षित और दीर्घ बनाने के उपाय हैं।

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