चार वेद और उनके चार उपवेद (Four Vedas and Upavedas in Hinduism)

Sooraj Krishna Shastri
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चार वेद और उनके चार उपवेद (Four Vedas and Upavedas in Hinduism)

चार वेद (Rigveda, Yajurveda, Samaveda, Atharvaveda) और उनके चार उपवेद (Ayurveda, Dhanurveda, Gandharvaveda, Arthaveda) वेदों के ज्ञान और जीवनोपयोगी विद्याओं का आधार हैं। ऋग्वेद से आयुर्वेद, यजुर्वेद से धनुर्वेद, सामवेद से गान्धर्ववेद और अथर्ववेद से अर्थवेद का संबंध है। इनका विषय क्रमशः स्वास्थ्य-चिकित्सा, युद्धकला, संगीत-नृत्य और तंत्र-नीति है। वेद और उपवेद केवल धर्म और यज्ञ की विधि ही नहीं बताते बल्कि जीवन के हर क्षेत्र – स्वास्थ्य, शिक्षा, कला, अर्थ और मोक्ष – को संतुलित रूप से निर्देशित करते हैं। इस लेख में चारों वेदों और उपवेदों का विस्तार, महत्त्व और प्रयोजन सरल भाषा में समझाया गया है।


चार वेद और उनके चार उपवेद लक्षण सहित 


✨ वेदों की महिमा

👉 वेद सनातन धर्म का मूल आधार हैं।
महर्षि वेदव्यास ने वेदों को चार भागों में विभाजित करके प्रत्येक भाग को विशिष्ट ऋषियों को प्रदान किया।

शास्त्र वचन :
"आध्वर्यवं यजुर्भिस्तु ऋग्भिर्होत्रं तथा मुनिः ।
औद्गात्रं सामभिश्चक्रे ब्रह्मत्वं चाप्यथर्वभिः ।।"

➡ इससे स्पष्ट है कि

  • यजुर्वेद = अध्वर्यु (यज्ञ का आयोजन व संचालन)
  • ऋग्वेद = होता (यज्ञ में मंत्रों का पाठ)
  • सामवेद = उद्गाता (गायन)
  • अथर्ववेद = ब्रह्मा (यज्ञ की शुद्धता की रक्षा)

🌺 चार वेदों का स्वरूप

1. ऋग्वेद

शास्त्र वचन :
"ऋग्रूपा यत्र ये मन्त्राः पादयोऽर्द्धर्चशोऽपि वा ।
येषां होत्रं स ऋग्भागः हमाख्यानं च यत्र वा ।।"

  • जिसमें ऋचा-स्वरूप स्तुतिपरक मंत्र हों।
  • जिनके द्वारा होम, आहुति और आख्यान कहे जाते हों।
  • होत्रप्रयोग का संपादक

👉 यह ऋग्वेद कहलाता है।
विषय = देवताओं की स्तुति एवं यज्ञीय मंत्र।

चार वेद और उनके चार उपवेद (Four Vedas and Upavedas in Hinduism)
चार वेद और उनके चार उपवेद (Four Vedas and Upavedas in Hinduism)



2. यजुर्वेद

शास्त्र वचन :
"प्रश्लिष्टपठिता मन्त्रा वृतगीतिविवर्जिताः ।
आध्वर्यवं यत्र कर्म त्रिगुणं यत्र पाठनम् ।।
मन्त्रब्राह्मणयोरेव यजुर्वेदः स उच्यते ।।"

  • जिसमें मंत्र स्वर-ताल से रहित हों।
  • अलग-अलग पढ़े जाने वाले मंत्र हों।
  • यज्ञ के लिए आध्वर्यप्रयोग का संपादक
  • इसमें मंत्र और ब्राह्मण भाग का त्रिवार पाठन होता है।

👉 यह यजुर्वेद कहलाता है।
विषय = यज्ञ-विधि और अनुष्ठान


3. सामवेद

शास्त्र वचन :
"उद्गीथं यस्य शस्त्रादेर्यज्ञे तत्सामसंज्ञितम् ।।"

  • जिसमें मंत्रों को स्वर और गान के साथ गाया जाता हो।
  • यह औद्गात्रप्रयोग का संपादक है।

👉 यह सामवेद कहलाता है।
विषय = गायन, संगीत और उपासना में रस


4. अथर्ववेद

शास्त्र वचन :
"अथर्वाङ्गिरसो नाम ह्युपास्योपासनात्मकः ।
इति वेदचतुष्कन्तु ह्युद्दिष्टञ्च समासतः ।।"

  • जिसमें उपासनीय देवताओं और उपासना का वर्णन है।
  • यज्ञ में ब्रह्मा की भूमिका निभाता है।

👉 यह अथर्ववेद कहलाता है।
विषय = उपासना, तंत्र, चिकित्सा और लोकहितकारी प्रयोग


⭕ चार उपवेद

1. आयुर्वेद (ऋग्वेद का उपवेद)

  • विषय : रोगों के कारण, लक्षण, औषधि और चिकित्सा।
  • प्रवर्तक : ब्रह्मा – प्रजापति – अश्विनीकुमार – धन्वंतरी।
  • ग्रंथ : चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वाग्भट्ट संहिता
  • विशेष : कामशास्त्र (वात्स्यायन कृत) भी आयुर्वेद का अंग माना गया है क्योंकि इसमें वाजीकरण-स्तंभनादि का वर्णन है।

👉 प्रयोजन = शरीर की शुद्धि और औषधदान से पुण्य एवं अंतःकरण की पवित्रता


2. धनुर्वेद (यजुर्वेद का उपवेद)

  • विषय : युद्धकला, शस्त्र और अस्त्र-विद्या।
  • प्रवर्तक : ब्रह्मा → महर्षि विश्वामित्र।
  • आयुध के चार प्रकार :
    1. मुक्त – चक्र, बाण आदि (फेंककर चलाए जाने वाले)।
    2. अमुक्त – तलवार, खड्ग आदि (हाथ से चलाए जाने वाले)।
    3. मुक्तामुक्त – बरछी आदि (दोनों प्रकार से प्रयुक्त)।
    4. यंत्रमुक्त – तीर, गोली आदि (यंत्र से चलाए जाने वाले)।

👉 प्रयोजन = धर्म की रक्षा, प्रजा का पालन और अंतःकरण की शुद्धि


3. गान्धर्ववेद (सामवेद का उपवेद)

  • विषय : संगीत, नृत्य, स्वर, ताल।
  • प्रवर्तक : भरतमुनि
  • सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
  • वाद्य : वीणा, मृदंग, नृत्य।

👉 प्रयोजन = देवाराधन, ध्यान, समाधि और अंतःकरण की एकाग्रता


4. अर्थवेद (अथर्ववेद का उपवेद)

  • नाम : तंत्र या आगम।
  • विषय :
    • देवताओं के मंत्र एवं तंत्र प्रयोग।
    • मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तंभन आदि प्रयोग।
    • नीतिशास्त्र, शिल्पशास्त्र, अश्वशास्त्र, सूपकारशास्त्र, धन प्राप्ति के उपाय।

👉 प्रयोजन = धन-संपत्ति की प्राप्ति, लोककल्याण और वैराग्य की ओर प्रवृत्ति


📊 चार वेद और उनके उपवेद

वेद प्रमुख विषय यज्ञ में भूमिका उपवेद उपवेद का विषय प्रयोजन / लक्ष्य
ऋग्वेद स्तुति, ऋचाएँ, देवताओं की प्रार्थना होता (मंत्रपाठक) आयुर्वेद रोग-निदान, औषधि, चिकित्सा, कामशास्त्र स्वास्थ्य, औषधदान से पुण्य, अंतःकरण की शुद्धि
यजुर्वेद यज्ञ-विधि, अनुष्ठान अध्वर्यु (यज्ञ आयोजक) धनुर्वेद अस्त्र-शस्त्र, युद्धकला, प्रजापालन धर्मरक्षा, क्षत्रिय का कर्तव्य, अंतःकरण शुद्धि
सामवेद स्तोत्रों का गायन, संगीत उद्गाता (गायक) गान्धर्ववेद स्वर, ताल, वाद्य, नृत्य, संगीत देवाराधन, ध्यान, समाधि, अंतःकरण की एकाग्रता
अथर्ववेद उपासना, तंत्र, लोककल्याण ब्रह्मा (यज्ञ की रक्षा) अर्थवेद (तंत्र/आगम) नीतिशास्त्र, शिल्प, तंत्र-मंत्र प्रयोग, धन प्राप्ति लोककल्याण, अर्थसिद्धि, वैराग्य की प्रेरणा

👉 इस सारणी से स्पष्ट है कि –

  • वेद आध्यात्मिक आधार हैं।
  • उपवेद व्यावहारिक विज्ञान हैं।
  • दोनों का लक्ष्य केवल धर्म, लोककल्याण और अंततः मोक्ष है।

🌿 निष्कर्ष

  • वेद = ज्ञान का मूल स्रोत
  • उपवेद = जीवनोपयोगी विद्याओं का व्यावहारिक रूप
  • चारों वेद और उपवेद का अंतिम उद्देश्य = धर्मपालन, अंतःकरण शुद्धि और मोक्षप्राप्ति


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