True Friendship like Sugarcane: संस्कृत श्लोक "इक्षोरग्रात्क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा विशेषरसः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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True Friendship like Sugarcane: संस्कृत श्लोक "इक्षोरग्रात्क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा विशेषरसः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

"इक्षोरग्रात्क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा विशेषरसः" संस्कृत श्लोक सिखाता है कि सच्चे मित्र की मित्रता गन्ने के रस जैसी होती है, जो हर हिस्से में मधुर रहती है। जानिए इस नीति श्लोक का हिन्दी अनुवाद, अर्थ, शब्दार्थ, आधुनिक संदर्भ और नीति कथा।

श्लोक

इक्षोरग्रात्क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा विशेषरसः ।
तद्वत् सज्जनमैत्री विपरीतानां च विपरीता ॥

English transliteration (IAST)

ikṣor agrāt kramashaḥ parvaṇi parvaṇi yathā viśeṣarasaḥ |
tad-vat sajjana-maitrī viparītānāṃ ca viparītā ||

(सरल/अक्षरलिपि रूप: ikshor agrat kramashah parvani parvani yatha vishesharasah | tadvat sajjanmaitri viparitanam cha viparita ||)

हिन्दी अनुवाद (सार)

ईख (गन्ना) के शीर्ष से नीचे की ओर क्रमशः हर गठान/खंड में विशेष रस जैसा मिलता है — उसी प्रकार सज्जनों (सद्गुणी लोगों) की मित्रता भी हर भाग में मीठी/विशेष होती है। और दुर्जनों की मित्रता उसका बिलकुल विपरीत (बेशक उथली/फरेबपूर्ण) होती है।

True Friendship like Sugarcane: संस्कृत श्लोक "इक्षोरग्रात्क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा विशेषरसः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
True Friendship like Sugarcane: संस्कृत श्लोक "इक्षोरग्रात्क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा विशेषरसः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 



शब्दार्थ (लघु — शब्द-दर-शब्द)

  • इक्षु- (इक्षु) — ईख, गन्ना (nom./stem)
  • इक्षोः / इक्षोर् — (इक्षु का) — यहाँ ‘इक्षोः’ = “गन्ने का/ईख का” (संबन्ध/प्रारम्भ का अर्थ)
  • अग्रात् — ऊपर से, शीर्ष से (अधिकरण/अप्रेरक — ablative/‘from the top’)
  • क्रमशः — क्रमशः, एक के बाद एक, धीरे-धीरे/अनुक्रमेण
  • पर्वणि पर्वणि — प्रत्येक गठान/खंड/इंटरनोड (गठ्ठा-गठ्ठा करके) — यहाँ “हर खंड/गठ्ठा” का भाव
  • यथा — जैसे, उदा. के रूप में
  • विशेषरसः — विशिष्ट/खास रस (विशेष-रसः = मीठापन/गुणवत्ता)
  • तद्वत् — वैसा ही, उसी प्रकार (तद् + वत्)
  • सज्जनमैत्री — सज्जनों की मैत्री/सज्जनों का मित्रभाव (f.)
  • विपरीतानां — विपरीतों / दुरात्माओं के (gen. pl.)
  • — और
  • विपरीता — विपरीता (मैत्र्ये के सम्बन्ध में विपरीत/उल्टा व्यवहार) — (यहाँ ‘मैत्री’ के समान लिंग में प्रयुक्त)

व्याकरणात्मक विश्लेषण (मुख्य बिंदु)

  1. समास/समुच्चय: सज्जनमैत्री—यह समास (सम्बन्ध) है: “सज्जन + मैत्री” = सज्जनों की मैत्री / सज्जनत्व से उत्पन्न मैत्री।
  2. इक्षोः अग्रात् क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा विशेषरसः — यहाँ क्रमिक निर्देश है: “ईख के शीर्ष से (अग्रात्) — क्रमशः — प्रत्येक गठ्ठे में — जैसे विशेष रस रहता है।” → क्रमानुसार-स्थित्यर्थक अभिव्यक्ति।
  3. तद्वत् — उपमा-सूचक (इसी प्रकार), जो मूलतः ‘इक्षु पर लागू होने वाले गुण का समरूपण’ बताता है।
  4. विपरीतानां च विपरीता — ‘विपरीतानां’ (जनों का) सम्बंध दिखाता है; ‘विपरीता’ (नारीलिङ्ग/मैत्री शब्द के अनुरूप) = “विपरीत (रूप) है” — अतः वाक्य का अर्थ स्पष्ट होता है कि सज्जनमैत्री मीठी/सदुपयोगी है, पर विपरीतजन की मैत्री विपरीत (अनर्थकारी) है।
  5. शुद्ध अर्थ-प्रवाह: उपमा (ईख/गन्ना) → तद्वत् (वैसे ही) → सज्जनमैत्री; समुच्चय सरल व प्रकट है।
  6. (नोट) — पर्वणि शब्द को यहाँ “गठ्ठा/खंड/इंटरनोड” के अर्थ में लिया गया है — लोकप्रयोग में ईख के गठ्ठों/नोड्स (gathaan) के बीच का भाग ही रसतमक माना जाता है। श्लोक का शैलीगत उपाय-उपमा स्पष्ट है।

दार्शनिक-भावार्थ (एक पंक्ति में)

सच्चे/सज्जन मित्रों की मित्रता बहुआयामी और हर खंड में मीठी/पोषक होती है; दुरात्माओं/विपरीत लोगों की मित्रता सतही या उल्टी-फेरी होती है।


आधुनिक संदर्भ (प्रयोगात्मक व्याख्या)

  • दोस्ती और चयन: सच्चे मित्र वे हैं जिनका स्नेह सतत (हर परिस्थिति में) और हर पहलू में लाभकारी/स्थितप्रज्ञ होता है — जैसे गन्ने के हर गठान में रस।
  • नेटवर्किंग / टीम-बिल्डिंग: सही लोगों से बनी टीम हर हिस्से में मजबूती देती है (हर कार्य-खंड में योगदान), जबकि गलत साथी कहीं-न-कहीं समस्या पैदा करते हैं।
  • मानव-व्यवहार: सतत परवरिश, नैतिकता और स्थायित्व—सज्जनता केवल शुरुआत तक सीमित नहीं होती, वह पूरे चरित्र में व्याप्त रहती है। विपरीत लोग अक्सर दिखावे पर टिके रहते हैं या उनके सम्बन्धों में अनिष्ट तत्व पाए जाते हैं।
  • मनोविज्ञान: भरोसेमंद संबंध समय के साथ हर “खंड/पल” में “रस” (संतोष, सहारा, वृद्धि) देते हैं; फरेबी संबंध अक्सर उपरी सतह पर कुछ देर मीठे लगते हैं पर अंदर सड़न/ख़ामियाँ रहती हैं।

संवादात्मक नीति-कथा (संक्षिप्त दृश्य)

स्थल: गाँव का आँगन — दो मित्र, अजय (अनुभवी) और विजय (युवा)।

विजय: अजय-भाई, मेरे काम के लिए दो साथी चाहिए — राम और श्याम। राम हमेशा साथ देता है और हर काम में मदद करता है; श्याम बड़े अच्छे शब्द बोलता है, पर काम में टिकता नहीं।
अजय: (हँसते हुए) गन्ने का जो सबसे ऊपर कांड में रस भर रहता है, वही स्थायी मीठा रहता है। जो केवल ऊपर से रंग-रोगन दिखता है, वह बाहर-बाहर का मीठा।
विजय: तो मुझे किसे नौकरी में लेना चाहिए?
अजय: जहाँ-जहाँ तुम्हें सच्चा सहारा और निरंतर योगदान चाहिए — राम जैसा साथी निर्धारित करो; श्याम जैसा दिखावा केवल उलझन देगा। मित्रता को परीक्षण से पहचानों — समय हर गठान का रस दिखा देता है।

(मोरल: सज्जनमैत्री पूरे कार्यकाल में सहायक होती है, दिखावटी मित्रता उलझनें लाती है।)


व्यवहारिक-निष्कर्ष (Takeaways)

  1. मित्रता की गुणवत्ता जाँचे-परखी जाती है — समय और कर्म दोनों में। जो हर खंड/परिस्थिति में सहायक रहे, वही सच्चा मित्र है।
  2. सतही मीठापन (दिखावे) पर विश्वास न करें — गहराई व स्थायित्व देखें।
  3. सज्जनता में निरंतरता (consistency) महत्वपूर्ण है — मित्र चुनते समय ‘समय पर और कष्ट में’ मिलने वाले मित्र को प्रधानता दें।


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