पिता पुत्र सम्बन्ध ज्योतिष | Father Son Relationship in Astrology by Lagnesh Panchamesh Yoga

Sooraj Krishna Shastri
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पिता पुत्र सम्बन्ध ज्योतिष | Father Son Relationship in Astrology by Lagnesh Panchamesh Yoga

 प्रस्तुत लेख जन्मकुण्डली में पिता-पुत्र संबंध (Pitā-Putra Sambandh) पर आधारित हैं। यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि ज्योतिषशास्त्र में लग्नेश (Lagnesh) और पंचमेश (Panchamesh) को पिता-पुत्र के बीच के सम्बन्ध का मूल आधार माना जाता है। मैं इन्हें क्रमशः, व्यवस्थित और विस्तार से प्रस्तुत कर रहा हूँ 👇


✨ पिता–पुत्र के संबंधों के ज्योतिषीय योग ✨

१. पिता–पुत्र में मित्रता, शत्रुता या समानता

श्लोक

लग्नपुत्रेश्वराभ्यांत मित्रत्वेर्तव मित्रता ।
शत्रुत्वे शात्रनं प्रोक्तं समत्वे समता भवेत् ।।

भावार्थ

  • यदि लग्नेश (Lagnesh = Ascendant Lord) और पंचमेश (Panchamesh = 5th Lord) की आपस में मित्रता हो → पिता और पुत्र में घनिष्ठ मित्रवत सम्बन्ध होता है।
  • यदि दोनों में शत्रुता हो → पिता और पुत्र में विरोध, दूरी और कटुता रहती है।
  • यदि दोनों का सम्बन्ध समभाव (Neutral) का हो → पिता-पुत्र में सामान्य या औपचारिक सम्बन्ध रहता है।

२. पिता की सेवा करने वाला पुत्र

श्लोक

लग्नपुत्रेश्वरी खेटौ परस्परनिरीक्षितौ ।
परस्परगृहांशस्थौ शुश्रूषां कारयेत्सुतः ।।

भावार्थ

  • यदि लग्नेश और पंचमेश एक-दूसरे को दृष्टि करते हों,
  • अथवा एक-दूसरे की राशि या नवांश में स्थित हों,

➡️ तो पुत्र सदैव पिता की सेवा करने वाला, आज्ञाकारी और सहयोगी होता है।

पिता पुत्र सम्बन्ध ज्योतिष | Father Son Relationship in Astrology by Lagnesh Panchamesh Yoga
पिता पुत्र सम्बन्ध ज्योतिष | Father Son Relationship in Astrology by Lagnesh Panchamesh Yoga



३. पिता की आज्ञा मानने वाला पुत्र

श्लोक

लग्नं पश्यति वा पुत्रनाथे लग्नान्विते यदि ।
लग्नेश्वरे सुतक्ष वा पुत्रो वाक्यवशानुगः ।।

भावार्थ

  • यदि पंचमेश लग्न को देखे या लग्न में स्थित हो,
  • अथवा लग्नेश पंचम भाव में स्थित हो,

➡️ तो पुत्र पिता की आज्ञा मानने वाला और वचनानुसार चलने वाला होता है।


४. पिता की निन्दा करने वाला पुत्र

श्लोक

पुत्रस्थानेश्वरे दुःस्थे लग्नेशेनापि वीक्षिते ।
संदृष्टे कुजराहुभ्यां नित्यं पितृविदूषकः ।।

भावार्थ

  • यदि पंचमेश दुष्टभाव (6, 8, 12) में हो,
  • और उस पर लग्नेश की दृष्टि हो,
  • साथ ही मंगल (कुज) और राहु का प्रभाव भी हो,

➡️ तो पुत्र पिता की आलोचना करने वाला, आज्ञा न मानने वाला और विद्रोही स्वभाव का होता है।


५. पिता का शत्रु समान पुत्र

श्लोक

सुतेश रिपुभावस्थे पप्ठेने गुरुसंयुते ।
व्ययेशे लग्नभावस्थे तस्य पुत्रो रिपुर्भवेत् ।।

भावार्थ

  • यदि पंचमेश षष्ठभाव (शत्रुस्थान) में हो और वहाँ गुरु के साथ युत हो,
  • और व्ययेश (12वें भाव का स्वामी) लग्न में स्थित हो,

➡️ तो जातक का पुत्र पिता का शत्रु समान होता है।


📊 पिता–पुत्र सम्बन्ध (Lagnesh–Panchamesh Yoga Table)

योग (Condition) ग्रह स्थिति (Graha Position) पिता–पुत्र सम्बन्ध (Result)
मित्रता योग लग्नेश और पंचमेश परस्पर मित्र ग्रह हों पिता और पुत्र में मित्रवत् घनिष्ठता
शत्रुता योग लग्नेश और पंचमेश शत्रु ग्रह हों पिता और पुत्र में विरोध/कटुता
समभाव योग लग्नेश और पंचमेश समभाव (Neutral) हों सामान्य/औपचारिक सम्बन्ध
सेवा योग लग्नेश और पंचमेश परस्पर दृष्टि करें, या एक-दूसरे की राशि/नवांश में स्थित हों पुत्र पिता की सेवा करता है
आज्ञापालन योग पंचमेश लग्न को देखे, या लग्न में स्थित हो; अथवा लग्नेश पंचम भाव में स्थित हो पुत्र पिता की आज्ञा मानने वाला, वाक्यवशानुगामी
विद्रोही योग पंचमेश 6/8/12 भाव में, लग्नेश से दृष्ट, तथा मंगल–राहु से दृष्ट पुत्र पिता की निन्दा करने वाला, विद्रोही स्वभाव
शत्रु समान पुत्र योग पंचमेश षष्ठभाव में + गुरु युति; व्ययेश लग्न में पुत्र पिता का शत्रु समान

🌸 इस तालिका से स्पष्ट हो जाता है कि—

  • अनुकूल योग → पुत्र आज्ञाकारी, सेवा करने वाला, मित्रवत।
  • प्रतिकूल योग → पुत्र विद्रोही, निन्दक या शत्रु समान।

🔎 समग्र निष्कर्ष

  1. लग्नेश और पंचमेश का सम्बन्ध पिता-पुत्र के रिश्ते की नींव है।

    • मित्रता → घनिष्ठता।
    • शत्रुता → दूरी व विरोध।
    • समभाव → सामान्य सम्बन्ध।
  2. अनुकूल दृष्टि/स्थिति → पुत्र सेवा-भाव, आज्ञाकारी और पिता का सम्मान करने वाला।

  3. दुष्टभाव व पापग्रह दृष्टि → पुत्र पिता का विरोधी, विद्रोही या निन्दा करने वाला।

  4. विशेष योग:

    • लग्नेश पंचमेश को देखे → पुत्र वाक्यवशानुगामी।
    • पंचमेश दुष्टभाव में + राहु/मंगल दृष्ट → पुत्र पिता को दुःख देने वाला।
    • पंचमेश षष्ठ भाव में + गुरु युति + व्ययेश लग्न में → पुत्र शत्रु के समान।

🌸 इस प्रकार शास्त्र कहता है कि लग्नेश–पंचमेश के परस्पर सम्बन्ध से ही पिता-पुत्र का स्वभाव, प्रेम, मित्रता या विरोध स्पष्ट हो जाता है।

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