SUBHASHITANI: संस्कृत श्लोक "कृत्वा पापं हि सन्तप्य तस्मात् पापात् प्रमुच्यते" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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SUBHASHITANI: संस्कृत श्लोक "कृत्वा पापं हि सन्तप्य तस्मात् पापात् प्रमुच्यते" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

🌸 जय श्रीराम – सुप्रभातम् 🌸

आपका प्रस्तुत श्लोक अत्यंत गहन आध्यात्मिक और नैतिक संदेश देता है। 🙏


📜 संस्कृत मूल

कृत्वा पापं हि सन्तप्य तस्मात् पापात् प्रमुच्यते ।
नैवं कुर्यां पुनरिति निवृत्त्या पूयते तु सः ॥


🔤 IAST Transliteration

kṛtvā pāpaṁ hi santapya tasmāt pāpāt pramucyate ।
naivaṁ kuryāṁ punar iti nivṛttyā pūyate tu saḥ ॥


🇮🇳 हिन्दी भावार्थ

कोई व्यक्ति यदि पाप कर बैठता है और उसके बाद सच्चा पश्चाताप करता है तो वह उस पाप से मुक्त हो जाता है।
परंतु वास्तविक शुद्धि तब होती है जब वह दृढ़ निश्चय कर ले कि – “मैं पुनः ऐसा कृत्य कभी नहीं करूँगा।” 

SUBHASHITANI: संस्कृत श्लोक "कृत्वा पापं हि सन्तप्य तस्मात् पापात् प्रमुच्यते" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
 SUBHASHITANI: संस्कृत श्लोक "कृत्वा पापं हि सन्तप्य तस्मात् पापात् प्रमुच्यते" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण



📚 व्याकरणिक विश्लेषण

  • कृत्वा – कृ धातु, तुमुन् प्रत्यय, “करके”
  • पापम् – नपुंसकलिंग, द्वितीया एकवचन।
  • सन्तप्यसन्तप् धातु, लिट् भावे प्रयोग, “पश्चाताप करके”।
  • प्रमुच्यतेप्र + मुच्, लट् लकार, प्रथमपुरुष एकवचन, “मुक्त होता है”
  • नैवं कुर्यांन + एवम् + करिष्यामि, भविष्यकालीन संकल्प।
  • निवृत्त्यानिवृत्ति शब्द, तृतीया विभक्ति, “निवृत्ति द्वारा, रोकने से”
  • पूयतेपु धातु, लट् लकार, “शुद्ध होता है”

🌼 नीति संदेश

👉 केवल पश्चाताप करना ही पर्याप्त नहीं है।
👉 वास्तविक पवित्रता और सुधार तब आती है जब व्यक्ति भविष्य में वही गलती न दोहराने का दृढ़ संकल्प ले।
👉 पाप से मुक्ति का मार्ग है –

  1. स्वीकार – अपनी गलती को मानना।
  2. पश्चाताप – दिल से दुखी होना।
  3. निवृत्ति – पुनः वही न करने का निश्चय।
  4. प्रायश्चित्त – अपने आचरण को सुधारना।

🪔 आधुनिक सन्दर्भ

  • आज समाज में अक्सर लोग गलती करने के बाद “Sorry” कहकर भूल जाते हैं।
  • लेकिन यह श्लोक हमें बताता है कि गलती स्वीकारना, सुधारना और भविष्य में न दोहराना ही सच्चा पश्चाताप है।
  • यह जीवन प्रबंधन, शिक्षा और सामाजिक संबंधों में भी उतना ही आवश्यक है जितना धर्म में।

✅ प्रेरणादायक कथा

एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा –
“गुरुदेव! क्या केवल पश्चाताप करने से पाप धुल जाता है?”

गुरु बोले –
“मान लो किसी ने जलते अंगारे को हाथ में ले लिया और जल गया।
वह रोया, पछताया – यह पश्चाताप है।
लेकिन यदि वह दोबारा उसी अंगारे को उठा ले तो घाव और गहरा होगा।
सच्चा बुद्धिमान वही है जो पछताने के बाद निश्चय करता है – ‘अब कभी ऐसा नहीं करूँगा।’
तभी उसके भीतर की शुद्धि और शांति स्थिर रहती है।”


🌷 सार
👉 पश्चाताप आधा उपचार है।
👉 परंतु दृढ़ निश्चय और आचरण-सुधार ही पूर्ण उपचार है।

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