ज्ञान क्या है? | Gyaan ka Arth aur Mahatva Geeta, Ramcharitmanas aur Sant Vani ke Sandarbh me

Sooraj Krishna Shastri
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ज्ञान क्या है? | Gyaan ka Arth aur Mahatva Geeta, Ramcharitmanas aur Sant Vani ke Sandarbh me

"ज्ञान" का अर्थ केवल उपदेश या जानकारी नहीं है, बल्कि आत्मा तक पहुँचा देने वाली साधना है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि ज्ञान से बढ़कर पवित्र कुछ नहीं। रामचरितमानस में तुलसीदास जी बताते हैं कि ज्ञानी भक्त भगवान को सबसे प्रिय है। कबीरदास जी ने भी प्रेम और आत्मबोध को ही सच्चा ज्ञान माना। असली ज्ञान कोई किसी को दे नहीं सकता, बल्कि यह साधना, सात्त्विक धृति और ईश्वर की कृपा से आत्मा के भीतर ही प्रकट होता है। इस लेख में गीता, रामचरितमानस और संतों की वाणी के आधार पर ज्ञान के वास्तविक स्वरूप, उसके प्रकार और महत्व को समझाया गया है। पढ़ें और जानें कि सच्चा ज्ञान क्या है और क्यों यह मानव जीवन को सार्थक बनाता है।


ज्ञान क्या है? | गीता, रामचरितमानस और संत वाणी के प्रकाश में सच्चे ज्ञान का रहस्य

प्रस्तावना

आजकल अक्सर हम सुनते हैं – "ज्ञान मत दीजिए", "फेसबुक-व्हाट्सएप पर सब ज्ञान बाँटते रहते हैं" या "ज्ञान देना बहुत आसान है"। लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि वास्तव में ज्ञान है क्या?
ज्ञान केवल शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि वह आत्मा तक पहुँचा देने वाली एक गहन साधना है।

ज्ञान क्या है? | Gyaan ka Arth aur Mahatva Geeta, Ramcharitmanas aur Sant Vani ke Sandarbh me
ज्ञान क्या है? | Gyaan ka Arth aur Mahatva Geeta, Ramcharitmanas aur Sant Vani ke Sandarbh me



ज्ञान की परिभाषा

ज्ञान का अर्थ है –
"किसी विषय, वस्तु, तथ्य, तत्व या अवस्था को जानने, समझने और अनुभव द्वारा उसका बोध प्राप्त करने की विधा।"

साधारण भाषा में कहें तो, ज्ञान केवल पढ़ने-सुनने से नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभव से ही पूर्ण होता है।


गीता में ज्ञान का महत्व

अध्याय ४, श्लोक ३८

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।
"इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला कुछ भी नहीं है।"

भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट कहते हैं कि ज्ञान से बढ़कर कुछ भी पवित्र नहीं है। कर्मयोग के द्वारा शुद्ध हुआ मनुष्य अंततः आत्मा में उसी ज्ञान को पा लेता है।

अध्याय १३, श्लोक ११

यहाँ कहा गया है कि – "अध्यात्मज्ञान" वह है जो आत्मा और अनात्मा में भेद कराए।
अर्थात सच्चा ज्ञान वही है जो मनुष्य को परमात्मा की ओर ले जाए।

अध्याय १८, श्लोक २०-२२

गीता में तीन प्रकार के ज्ञान बताए गए हैं:

  • सात्त्विक ज्ञान – जो सबमें एक ही परमात्मा को देखे।
  • राजस ज्ञान – जो विभिन्न रूपों और भेदों में उलझा रहे।
  • तामस ज्ञान – जो शरीर या तुच्छ विषयों तक सीमित हो जाए।

रामचरितमानस में ज्ञान

गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं –

"चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥"

अर्थात, भक्त चाहे किसी भी प्रकार का हो, आधार केवल भगवान का नाम है, किंतु ज्ञानी भक्त भगवान को विशेष प्रिय होता है।


संतों की वाणी में ज्ञान

कबीरदास जी

  • "ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग॥"
    👉 इसका भाव यह है कि जैसे तिल में तेल और पत्थर में आग छिपी होती है, वैसे ही ईश्वर हमारे भीतर ही विद्यमान है।

  • "पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥"
    👉 यहाँ कबीरदास कहते हैं कि ग्रंथों का अध्ययन करके कोई सच्चा ज्ञानी नहीं बनता। सच्चा ज्ञान केवल प्रेम और भक्ति में है।


सच्चा ज्ञान और अज्ञान का भेद

  • सच्चा ज्ञान – आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाला, सात्त्विक, कल्याणकारी और अनुभवजन्य होता है।
  • अज्ञान – जो केवल बाहरी दिखावा, तर्क-वितर्क या भौतिक जानकारियों तक सीमित हो।

निष्कर्ष

ज्ञान को लेकर दुनिया में बहुत भ्रांतियाँ हैं।
👉 भौतिक ज्ञान – जिसे हम पुस्तक, विद्यालय, अनुभव या व्याख्यान से पा सकते हैं, वह नश्वर और सीमित है।
👉 आध्यात्मिक ज्ञान – जो आत्मा की शुद्धि, साधना, सात्त्विक धृति और ईश्वर की कृपा से भीतर जागृत होता है, वही अमूल्य और जीवन को सार्थक करने वाला है।

इसलिए कहा गया है कि –
"सच्चा ज्ञान दिया नहीं जा सकता, केवल भीतर से जागृत किया जा सकता है।"



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