ज्ञान क्या है? | Gyaan ka Arth aur Mahatva Geeta, Ramcharitmanas aur Sant Vani ke Sandarbh me
"ज्ञान" का अर्थ केवल उपदेश या जानकारी नहीं है, बल्कि आत्मा तक पहुँचा देने वाली साधना है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि ज्ञान से बढ़कर पवित्र कुछ नहीं। रामचरितमानस में तुलसीदास जी बताते हैं कि ज्ञानी भक्त भगवान को सबसे प्रिय है। कबीरदास जी ने भी प्रेम और आत्मबोध को ही सच्चा ज्ञान माना। असली ज्ञान कोई किसी को दे नहीं सकता, बल्कि यह साधना, सात्त्विक धृति और ईश्वर की कृपा से आत्मा के भीतर ही प्रकट होता है। इस लेख में गीता, रामचरितमानस और संतों की वाणी के आधार पर ज्ञान के वास्तविक स्वरूप, उसके प्रकार और महत्व को समझाया गया है। पढ़ें और जानें कि सच्चा ज्ञान क्या है और क्यों यह मानव जीवन को सार्थक बनाता है।
ज्ञान क्या है? | गीता, रामचरितमानस और संत वाणी के प्रकाश में सच्चे ज्ञान का रहस्य
प्रस्तावना
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ज्ञान क्या है? | Gyaan ka Arth aur Mahatva Geeta, Ramcharitmanas aur Sant Vani ke Sandarbh me |
ज्ञान की परिभाषा
साधारण भाषा में कहें तो, ज्ञान केवल पढ़ने-सुनने से नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभव से ही पूर्ण होता है।
गीता में ज्ञान का महत्व
अध्याय ४, श्लोक ३८
भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट कहते हैं कि ज्ञान से बढ़कर कुछ भी पवित्र नहीं है। कर्मयोग के द्वारा शुद्ध हुआ मनुष्य अंततः आत्मा में उसी ज्ञान को पा लेता है।
अध्याय १३, श्लोक ११
अध्याय १८, श्लोक २०-२२
गीता में तीन प्रकार के ज्ञान बताए गए हैं:
- सात्त्विक ज्ञान – जो सबमें एक ही परमात्मा को देखे।
- राजस ज्ञान – जो विभिन्न रूपों और भेदों में उलझा रहे।
- तामस ज्ञान – जो शरीर या तुच्छ विषयों तक सीमित हो जाए।
रामचरितमानस में ज्ञान
अर्थात, भक्त चाहे किसी भी प्रकार का हो, आधार केवल भगवान का नाम है, किंतु ज्ञानी भक्त भगवान को विशेष प्रिय होता है।
संतों की वाणी में ज्ञान
कबीरदास जी
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"ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग॥"👉 इसका भाव यह है कि जैसे तिल में तेल और पत्थर में आग छिपी होती है, वैसे ही ईश्वर हमारे भीतर ही विद्यमान है।
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"पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥"👉 यहाँ कबीरदास कहते हैं कि ग्रंथों का अध्ययन करके कोई सच्चा ज्ञानी नहीं बनता। सच्चा ज्ञान केवल प्रेम और भक्ति में है।
सच्चा ज्ञान और अज्ञान का भेद
- सच्चा ज्ञान – आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाला, सात्त्विक, कल्याणकारी और अनुभवजन्य होता है।
- अज्ञान – जो केवल बाहरी दिखावा, तर्क-वितर्क या भौतिक जानकारियों तक सीमित हो।