ईश्वर-जीव भेद: Ishwar aur Jeev ka Rahasya | Geeta, Tulsi aur Kabir ke Vichar
ईश्वर और जीव का भेद (Ishwar aur Jeev ka Bhed) वेद, गीता और संत वचनों का मूल विषय है। जीव ईश्वर का सनातन अंश है, लेकिन कर्मबंधन और माया से ग्रसित होकर शोक, मोह और भ्रम में फँस जाता है। वहीं ईश्वर सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और माया के परे हैं। श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं – “ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः” अर्थात जीव मेरा सनातन अंश है। तुलसीदास ने कहा – “ईश्वर अंश जीव अविनाशी” यानी जीव अविनाशी है, किंतु ईश्वर के समान सर्वशक्तिमान नहीं। कबीर ने भी समझाया कि बाहरी आडंबर से सत्य ज्ञात नहीं होता, सच्चा ज्ञान आत्मबोध और ईश्वर भक्ति में है। इस लेख में पढ़ें – ईश्वर और जीव के भेद का गूढ़ रहस्य, माया, कर्म और मोक्ष का संबंध, तथा कैसे प्रभु चरणों में प्रेम (रति) से शोक-मोह मिटते हैं।
🌸 ईश्वर और जीव का भेद
हे प्रभो! कृपा कर ईश्वर और जीव का भेद समझाइए, जिससे आपके चरणों में मेरी प्रीति हो और मेरे भीतर का शोक, मोह और भ्रम नष्ट हो जाए।
👉 हमारे दृष्टि में ईश्वर और जीव में मुख्य भेद यह है कि –
- ईश्वर सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वव्यापी है।
- जीव सीमित शक्तियों वाला है, अल्पज्ञ है और अपने कर्मों के अनुसार बार-बार शरीर धारण करता है।
- ईश्वर ही सृष्टि का रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता है।
- जीव संसार का भोग करने वाला और कर्मों का फल भोगने वाला है।
- जीव आसक्ति में बंधा है; जब तक आसक्तियों का त्याग नहीं करता, तब तक कर्मबंधन से मुक्त नहीं हो सकता।
जीव अपने शरीर के प्रति सचेत रहता है, जबकि ईश्वर सभी शरीरों और जीवों के प्रति सचेत रहते हैं, क्योंकि वे प्रत्येक जीव के हृदय में निवास करते हैं।
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| ईश्वर-जीव भेद: Ishwar aur Jeev ka Rahasya | Geeta, Tulsi aur Kabir ke Vichar |
🌸 माया, जीव और ईश्वर
🌸 कर्मयोग और संन्यास
👉 जो केवल बाह्य रूप से संन्यासी बनकर कर्मों का त्याग कर देता है, किंतु मन में इन्द्रिय विषयों का चिंतन करता रहता है – वह मिथ्याचारी कहलाता है।
👉भगवान कहते हैं – कर्मसंन्यास और कर्मयोग दोनों ही कल्याणकारी हैं, परंतु कर्मयोग सुलभ होने के कारण संन्यास से श्रेष्ठ है।
🌸 कबीर और तुलसी की सीख
संत कबीर कहते हैं –
👉 अर्थात केवल बाह्य आडंबर से योगी नहीं बना जा सकता।
तुलसीदास जी भी कहते हैं –
👉 व्यर्थ दिखावे से आत्मा की भूख नहीं मिटती।
🌸 जीवन की क्षणभंगुरता
👉 यह संसार क्षणभंगुर है। जीवन कागज की पुड़िया की तरह है, जिस पर पानी की एक बूंद गिरते ही वह गल जाती है।
🌸 क्षेत्र और विकार
👉 हे अर्जुन! यह क्षेत्र (शरीर) पंचमहाभूत, अहंकार, बुद्धि, प्रकृति के गुण, दस इन्द्रियाँ, मन, पाँच विषय, इच्छा-द्वेष, सुख-दुःख, चेतना और धारणा से युक्त है।
🌸 क्या है सच्चा ज्ञान?
🌸 त्याग और भक्ति का महत्व
👉 सुख-दुःख, प्रिय-अप्रिय परिस्थिति में समभाव रखना ही साधना है।
🌸 "मैं कौन हूँ?"
जीवन का सबसे बड़ा प्रश्न है – मैं कौन हूँ?
- खेलते समय मैं कौन हूँ?
- गुस्से में मैं कौन हूँ?
- भावुक होने पर मैं कौन हूँ?
👉 उत्तम कुल, आचरण, ऐश्वर्य, रूप-चरित्र – सब व्यर्थ हैं यदि प्रभु के प्रति अनुराग नहीं है।
🌸 सुख-दुःख और मन की स्थिरता
👉 प्रभु भक्ति ही सर्वोच्च साधना है।

