यह कथा अत्यंत शिक्षाप्रद और हृदय को स्पर्श करने वाली है। इसे यहां व्यवस्थित, विस्तारपूर्ण तथा प्रवाहपूर्ण रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है—
🌸 कुसंग का प्रभाव | Kusang ka Prabhav Motivational Story in Hindi 🌸
एक बार की बात है। एक चित्रकार था, जिसकी चित्रकला अद्भुत और अद्वितीय थी। लोग उसकी कला की तारीफ करते न थकते। उसके बनाए चित्र इतने जीवंत होते कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता।
इसी बीच, एक दिन कृष्ण मंदिर के भक्त उसके पास पहुँचे और उन्होंने निवेदन किया –
“आप भगवान श्रीकृष्ण और कंस का एक चित्र बनाइए।”
चित्रकार तुरंत राज़ी हो गया, क्योंकि यह कार्य भगवान से जुड़ा हुआ था। किंतु उसने एक शर्त रखी –
“मुझे चित्र बनाने के लिए उपयुक्त पात्र चाहिए। बालकृष्ण के चित्र हेतु एक सुंदर, मासूम और नटखट बालक, तथा कंस के चित्र हेतु एक ऐसा व्यक्ति चाहिए, जिसके चेहरे पर क्रूरता और अत्याचार की झलक हो।”
🎨 बालकृष्ण का चित्र
भक्त लोग एक सुन्दर बालक को लेकर आए। उस बालक के चेहरे पर मासूमियत, चंचलता और बाल-सुलभ नटखटपन था। चित्रकार ने उसे सामने बैठाया और कुछ ही समय में उसने एक अद्वितीय बालकृष्ण का चित्र बना दिया।
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कुसंग का प्रभाव | Kusang ka Prabhav Motivational Story in Hindi |
🎨 कंस का चित्र
अब बारी आई कंस का चित्र बनाने की। भक्त लोग बहुत प्रयास करने लगे, किंतु कोई ऐसा व्यक्ति उन्हें नहीं मिल पाया, जिसके चेहरे पर क्रूरता, निर्दयता और पाप का भाव हो।
चित्रकार बार-बार कहता –
“नहीं, इसमें वह भाव नहीं है। मुझे असली कंस जैसा व्यक्ति चाहिए।”
समय बीतता गया, वर्ष निकल गए।
⛓ अपराधी से कंस
आखिरकार, कई साल बाद मंदिर के भक्त चित्रकार को जेल ले गए। वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे अपराधियों की भीड़ थी। उन अपराधियों में से एक को देखकर चित्रकार की आँखें ठहर गईं। उसके चेहरे पर वही क्रूरता, वही पाप और निर्दयता झलक रही थी।
उसे सामने बैठाकर चित्रकार ने कंस का चित्र बना दिया। इस प्रकार वर्षों बाद श्रीकृष्ण और कंस की वह अद्भुत तस्वीर पूर्ण हुई।
💔 अपराधी की पीड़ा
जब कृष्ण मंदिर में वह चित्र लगाया गया तो भक्तजन उसे देखकर आनंद से भर गए। उसी समय जेल का वह अपराधी भी यह चित्र देखना चाहता था।
जब उसकी नजर उस चित्र पर पड़ी, तो वह फूट-फूटकर रो पड़ा।
सभी लोग चकित रह गए। चित्रकार ने उससे कारण पूछा –
“तुम क्यों रो रहे हो?”
अपराधी ने उत्तर दिया –
“शायद आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं वही बच्चा हूँ जिसे आप वर्षों पहले बालकृष्ण का चित्र बनाने के लिए लेकर आए थे। तब मैं मासूम और नटखट था, परंतु कुसंगति में पड़कर मैंने अपराध का रास्ता चुना। उन्हीं कुकर्मों ने मुझे आज कंस जैसा बना दिया। इस चित्र में मैं ही कृष्ण हूँ, और मैं ही कंस हूँ।
🌿 शिक्षा
यह कथा हमें एक गहन सत्य का बोध कराती है—
👉 मनुष्य का स्वभाव और जीवन उसके संग से निर्मित होता है।
👉 सत्संग हमें भगवान के समीप ले जाता है, वहीं कुसंग हमें अंधकार, पाप और विनाश की ओर धकेल देता है।
👉 इसीलिए तुलसीदासजी ने भी कहा है –
“को न कुसंगति पाइ नसाई, रहइ न नीच मतें चतुराई।”
अतः सदैव उत्तम संगति, श्रेष्ठ विचार और पुण्य कर्मों का चयन करें, क्योंकि—
हमारे कर्म ही हमें अच्छा या बुरा इंसान बनाते हैं।